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Wednesday, November 16, 2011
दुनिया से गरीबी केवल बंदूक से नहीं हट सकती
मेरा ऐसा मानना है कि दुनिया से गरीबी केवल बंदूक से नहीं हट सकती। इसलिए मैं फिर जोर देकर कहता हूं कि किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी का गठन हो जो अहिंसात्मक रूप से गरीबी हटाने का प्रयास करे।
दुनिया में अगर सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है गरीबी। भारत की 70 फीसदी आबादी अभी भी भरपेट खाना नहीं खा पाती। अमीरी-गरीबी का फासला बढ़ते ही जा रहा है। देश में व्याप्त गरीबी और भुखमरी को राजनीतिक पार्टियां ही खत्म कर सकती हैं। मगर इस समय कोई ऐसी पार्टी नहीं दिखती जो इस समस्या को खत्म करने के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करे। इसलिए देश में व्याप्त गरीबी, भुखमरी आदि को खत्म करने के लिए एक नई पार्टी का गठन होना चाहिए जिसका मुख्य लक्ष्य गरीबी हटाना हो।
Wednesday, October 12, 2011
**********देश को लूटने के साथ हराम का खाने की आदत**********
**********देश को लूटने के साथ हराम का खाने की आदत**********
क्या कई करोड़ रुपये खर्च कर की गयी यात्रा के बाद फोर्व्स मैगजीन के लिए फोटो सेशन करबाने और वोटो की फसल काटने के लिए दलित के घर जा कर खाने से गरीबो की समस्या ख़तम हो जाएगी ..आजदी के 64 साल बाद भी अगर देश का आम इंसान झोपडी में भुखमरी के हालातो में रह रहा है और उसके नेताओ के स्विस बैंक में खाते है तो असली गुनाहगार कौन है ... मम्मी जी इलाज के लिए अमेरिका जा कर 20 लाख रुपये प्रतिदिन के कमरे में रूकती है और दुनिया का सबसे महंगा इलाज करवाती है और अपनी विदेश यात्राओ की रिपोर्ट लोकसभा सचिबलाया को भी नहीं देती ..पापा जी बहुत साल पहले ही स्विस बैंक में खाता खोल कर कमीशन का पैसा जमा कर गए ...और बेटा बबलू यहाँ की जनता को ठगने का काम कर रहा है ...बबलू को भारत के प्रधानमंत्री के बराबर की सुरक्षा प्राप्त है जिसे SPG के नाम से जाना जाता है SPG के बजट के बारे में देश की जनता को कुछ भी नहीं बताया जाता ........... पिछले दिनों जब संसद में महंगाई पर चर्चा चल रही थी तब बबलू विदेश में अपने दोस्तों के साथ अपना जन्म दिन मना रहे थे ..... बबलू को कोई बार अपनी विदेशी गर्ल फ्रेंड के साथ रंरेलिया मानते हुए विदेशी मीडिया ने दिखाया है |
Tuesday, September 20, 2011
जल्दी नहीं पिघलेंगें हिमालय के ग्लेशियर
जल्दी नहीं पिघलेंगें हिमालय के ग्लेशियर
भारत के डॉ राजेंद्र पचौरी की अगुवाई में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित आईपीसीसी को अब अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. आईपीसीसी की चेतावनी न्यू सांइंटिस्ट नाम की पत्रिका के एक लेख पर आधारित थी जो 1999 में प्रकाशित की गई थी. 2007 में जारी की गई उस रिपोर्ट में आईपीसीसी ने कहा था कि हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक पूरी तरह पिघल जाएंगे.
इस भविष्यवाणी के बाद पानी के अभाव और जलवायु में भारी बदलाव की अटकलों ने एक नया पैमाना ले लिया और अंतरराष्ट्रीय बैठकों का केंद्रीय मुद्दा बन गई.Bildunterschrift: Großansicht des Bildes mit der Bildunterschrift: ग़लत निकला दावा
लापरवाही इस हद की थी कि न्यू साइंटिस्ट की रिपोर्ट दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ सैयद हस्नैन से टेलीफ़ोन पर बातचीत पर आधारित थी. डॉ हस्नैन ने अब भी इस बात को मानते हैं कि यह महज़ एक विचार था और इस पर किसी भी तरह का संशोधन नहीं हुआ था.
सच्चाई सामने आने के बाद ग्लेशियर वैज्ञानिकों ने आईपीपीसी और उसके दावे की निंदा की है और कहा है कि हिमालय के कई ग्लेशियर औसतन 300 मीटर मोटे हैं और कई किलोमीटर लंबे हैं. इन्हें पूरी तरह पिघलने में 60 साल तक लग सकते हैं. डॉ पचौरी ने पहले दूसरे धड़े के वैज्ञानिकों के दावों को 'जादू-टोना विज्ञान' कहते हुए खारिज किया था. फ़िलहाल आईपीसीसी ने इस मामले पर अब तक कोई बयान नहीं दिया है. सोचने वाली बात यह है कि आईपीसीसी का गठन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूनेप के तहत जलवायु परिवर्तन संशोधन में सबसे उम्दा सलाह हासिल करने के लिए किया गया था.
रिपोर्टः एजेंसियां/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः ओ सिंह
क्यों आते है हिमालय में ज्यादा भूकंप
जमीन के भीतर मची उथल पुथल बताती है कि भारत हर साल करीब 47 मिलीमीटर खिसक कर मध्य एशिया की तरफ बढ़ रहा है. करोड़ों साल पहले भारत एशिया में नहीं था. भारत एक बड़े द्वीप की तरह समुद्र में 6,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक तैरता हुआ यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट से टकराया. करीबन साढ़े पांच करोड़ साल से पहले हुई वह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हिमालय का निर्माण हुआ. हिमालय दुनिया की सबसे कम उम्र की पर्वत श्रृंखला है.
भारतीय प्लेट अब भी एशिया की तरफ ताकतवर ढंग से घुसने की कोशिश कर रही है. वैज्ञानिक अनुमान है कि यह भूगर्भीय बदलाव ही हिमालयी क्षेत्र को भूकंप के प्रति अति संवेदनशील बनाते हैं. दोनों प्लेटें एक दूसरे पर जोर डाल रही है, इसकी वजह से क्षेत्र में अस्थिरता बनी रहती है.Bildunterschrift:
विज्ञान मामलों की पत्रिका 'नेचर जियोसाइंस' के मुतबिक अंदरूनी बदलाव एक खिंचाव की स्थिति पैदा कर रहे हैं. इस खिंचाव की वजह से ही भारतीय प्लेट यूरेशिया की ओर खिंच रही है. आम तौर पर टक्कर के बाद दो प्लेटें स्थिर हो जाती हैं. आश्चर्य इस बात पर है कि आखिर भारतीय प्लेट स्थिर क्यों नहीं हुई.
'अंडरवर्ल्ड कोड' नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए करोड़ों साल पहले हुई उस टक्कर को समझने की कोशिश की जा रही है. सॉफ्टवेयर में आंकड़े भर कर यह देखा जा रहा है कि टक्कर से पहले और उसके बाद स्थिति में कैसे बदलाव हुए. उन बदलावों की भौतिक ताकत कितनी थी. अब तक यह पता चला है कि भारतीय प्लेट की सतह का घनत्व, भीतरी जमीन से ज्यादा है. इसी कारण भारत एशिया की तरफ बढ़ रहा है.Bildunterschrift:
वैज्ञानिक कहते हैं कि घनत्व के अंतर की वजह से ही भारतीय प्लेट अपने आप में धंस रही है. धंसने की वजह से बची खाली जगह में प्लेट आगे बढ़ जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान जमीन के भीतर तनाव पैदा होता है और भूकंप आते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक हर बार तनाव उत्पन्न होने से भूकंप पैदा नहीं होता है. तनाव कई अन्य कारकों के जरिए शांत होता है.
भूकंप के खतरे के लिहाज से भारत को चार भांगों में बांटा गया है। उत्तराखंड, कश्मीर का श्रीनगर वाला इलाका, हिमाचल प्रदेश व बिहार का कुछ हिस्सा, गुजरात का कच्छ और पूर्वोत्तर के छह राज्य अतिसंवेदनशील हैं. इन्हें जोन पांच में रखा गया है. जोन पांच का मतलब है कि इन इलाकों में ताकतवर भूकंप आने की ज्यादा संभावना बनी रहती है. 1934 से अब तक हिमालयी श्रेत्र में पांच बड़े भूकंप आ चुके हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: महेश झा
Thursday, July 14, 2011
नैनादेवी के नाम पर पडा नैनिताल
नैनादेवी के नाम पर पडा नैनिताल। बैरन नामक एक अग्रेज ने इस हील स्टेशन कि खोज कि, वो इतना आकर्षित हुआ कि १८४१ में नैनीताल शहर का निर्माण शुरू हो गया। सबसे पहले बैरन ने अपने लिए एक कोठी बनायी। इसके बाद कुमांऊ के तत्कालीन कमिश्नर लाशिंगटन ने १८४१ में अपने लिए एक कोठी का निर्माण करवाया। नैनीताल तीन ओर पहाड़ों से घिरा है, बीच में झील है। इसका अर्थ है नैनी झील के चारो और शहर बसा है। पुरा नैनिताल वन पहाड़ियों से घिरा हुआ है। १८६७ में शेर का डांडा और १९ सितंबर १८८० को विक्टोरिया होटल के पास भीषण भूस्खलन हुआ। इसमें १५१ लोग मारे गए। मरने वालों में ४३ विदेशी नागरिक भी थे।
रामप्यारी के ब्लोग मे जो क्लु दिया गया है वह हॉकि का मैदान है (नैनिताल)। ठिक उसके पिछे सुन्दर मस्जिद है। इस मैदान मे राम प्यारी के ब्लोग मे LIC OF INDIA का विज्ञापन दिखाई पड रहा है वो अब हटा दिया गया है अब STATE BANK OF INDIA का विज्ञापन ट्न्गा हुआ है। नैनीताल उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ग्रीष्मकालीन राजधानी है। प्रर्यटक साफ सफाई का ध्यान नही देने कि वजह से गन्दगी भी दिख जाती है। आबादी बढने के कारण पहाडियो एवम पेडो कि कटाई ने नैनिताल के रुप को नुकशान पहुचा है। अब वो दिन दुर नही जब इन्ह हिल स्टेशनो मे पखे लग जाऐ। कृपया प्रकृति को बचाओ ताकि हमारी भावी पीढी भी इन्ह खुबसुरत वादियो के नजारे को देख सके।
प्रकृति के साथ हम खिलवाड करेगे तो प्रकृति हमे माफ नही करेगी। हम सभी को इसका खामियाजा भुगतना पडेगा।
"माधो सिंह "काळू" भंडारी"
"माधो सिंह "काळू" भंडारी"
आमू का बागवान मलेथा, लसण प्याज की क्यारी,
कूल बणैक अमर ह्वैगि, वीर माधो सिंह भंडारी.
बुबाजी भड़ सोंणबाण "काळू" भंडारी, ब्वै थै देवी भाग्यवान,
कथ्गा प्यारु तेरु मलेथा, माधो जख केळौं का बगवान.
दगड़्या थौ चम्पु हुड्क्या, देवी जनि उदिना थै कुटमदारी,
नौनु प्यारु गजे सिंह, जू छेंडा मूं कूल का खातिर मारी.
बांजा पुंगड़ौं अन्न निहोन्दु, पेण कु निथौ बल पाणी,
उदिना बोदि माधो जी कू, मेरा मलेथा ल्य्हवा पाणी.
दिनभर निर्पाणि का पुंगड़ौं, करदा छौं हम धाण,
भात खाण की टरकणी छन, मेरी बात लेवा माण.
मलेथा की की तीस बुझौलु, ल्ह्योलु अपणा मलेथा मां पाणी,
निहोंणु ऊदास प्यारी ऊदिना, दूर होलि हमारा गौं की गाणी.
चंद्रभागा गाड बिटि कूल बणायी, कोरी मलेथा मूं छेंडू,
पाणी छेंडा पार नि पौंछि, माधो सिंह चिंता मां नि सेंदु.
भगवती राजराजेश्वरी रात मां, माधो सिंह का सुपिना आई,
कूल कू पाणी पार ह्वै जालु, मन्खि की बलि देण का बाद बताई.
मलेथा की कूल का खातिर, माधो सिंह न करि गजे सिंह कू बलिदान,
गजे सिंह का दुःख मां रोन्दि बिब्लान्दि, ब्वै ऊदिना ह्वैगि बोळ्या का समान.
ऊदिना न तै दिन दुःख मां ख्वैक, दिनि थौ बल मलेथा मां श्राप,
ये वंश मां क्वी भड़ अब पैदा नि ह्वान, जौन गजे सिंह मारि करि पाप.***हिमांशु बिष्ट***
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Bisht G
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