Wednesday, August 26, 2009

अब तो यादों में बस गया "पहाड़ पर बचपन"

अब तो यादों में बस गया है,
पहाड़ पर बिताया, प्यारा बचपन,
सोचणु छौं, कनुकै बतौँ, आज, अतीत मां ख्वैक,
कनु थौ अपणु बचपन.

दादी, खाणौं खलौन्दि वक्त, बोल्दि थै,
एक टेंड खाणौं कू नि खत्यन,
नितर तुमारा आंख फूटला, रुसाड़ा का भीतर,
चूल्ला तक जाण की, इजाजत कतै नि थै,
संस्कार माणा, या अनुशासन समझा.

स्कूल दूर थौ, अर् ऊकाळि कू बाटु,
बगल मां पाटी, हाथ मां बोद्ग्या,
जै फर घोळिक रखदा था,
कमेड़ा की माटी.

चैत का मैना ल्ह्योंदा था,
अर् देळ्यौं मां चढ़ौन्दा था,
सुबेर काळी राति,पिंगळा फ्यौंलि का फूल,
कौदे की कर करी रोठ्ठी खैक,
फ़िर जांदा था स्कूल.

अपणा सगोड़ा की, मांगिक या चोरिक,
छकि छकिक खांदा था, काखड़ी, मुंगरी, आम, आरू,
बण फुंड हिंसर, किन्गोड़, करौंदु,
खैणा, तिमला, घिंगारू.

कौथिग जांदा था, बैसाख का उलार्या मैना,
झीलु सुलार अर् कुरता पैरिक,
देखदा था खुदेड़, अफुमां रोन्दि,
बेटी-ब्वारी, चाची, बोडी, कै जोड़ी ढोल-दमौं,
बगछट ह्वैक नाचदा बैख, गोळ घूम्दी चर्खी,
चूड़ी, झुमकी,माळा की दुकान,
हाथु मां चूड़ी पैरदी, बेटी -ब्वारी, चाची, बोडी,
ज्वान शर्मान्दि नौनि हेरदा लोग,
जैन्कि मांगण की बात चनि छ,
स्वाळि,पकोड़ी,खांदा लोग, आलु पकोड़ी,


जलेबी की दुकान, अहा!


कथ्गा खुश होन्दा था, बचपन मां


हेरि-हेरिक.
--
Bisht G

2 comments:

tension point said...

ab to uttrakhand ka haal bahut bura hai dost.kahin varsha itni jyada ho rahi hai ki pura ganv bah ja raha hai aur kahin itni bhi nahin ho rahi ki janvaron ke pine ke liye gaddhe bhi bhar jayen, khair acchhi bat hai ki aapne uttrakhand se dur rah kar bhi uttrakhand ko yaad rakha. mera blog pata hai tensionpoint.blogspot.com jo dilli aur uttrakhand se hi sanchalit karta hun.

jagmohan singh bisht said...

wah bhai haresh very 2 good i like u too much .do smoe thing new .