नवरात्रा के प्रथम तीन दिन
प्रथम शैलपुत्री
माँ भगवती की मूर्ति नौ रूपों में है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इनके पृथक-पृथक नाम संसार में प्रचलित हैं, जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है तथा विभिन्न रूपों का चमत्कार विभिन्न प्रकार से अनन्य भक्तों द्वारा अनुभूत किया जाता है। इन रूपों में से प्रथम रूप शैल-पुत्री के नाम से जाना जाता है। गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती देवी को ही शैलपुत्री कहा गया है। हिमालय की तपस्या व प्रार्थना से भगवती ने हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था जिस कारण शैलपुत्री कहा जाता है।
द्वितीय ब्रम्हाचारिणी
माँ भगवती का द्वितीय रूप ब्रम्हाचारिणी उपनिषदों में कहा गया है। "चाररियितुं शील यस्या: सा ब्रम्हाचारिणी" सच्चिदानन्दमय ब्रम्हा की प्राप्ति करना चाहता है, जिन्हें ब्रम्हा (ईश्वर) की प्राप्ति करना है, वे भगवती के ब्रम्हाचारिणी स्वरूप का घ्यान करके साधना करें, निश्चित रूप से भगवती कृपा से ब्रम्हा मुहूर्त में भगवती के इस स्वरूप का घ्यान करें, पूजा अर्चना के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी।
त्वां स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।
ब्रम्हा की प्राप्ति तो होगी और उसके साथ में भक्त की इच्छाओं की भी पूर्ति होती है। पूर्ण श्रद्धा, पवित्रता और संयम से की गई साधना निश्चित रूप से फलीभूत होती है।
तृतीय चन्द्रघण्टा
माँ भगवती का तृतीय रूप चन्द्रघण्टा देवी के रूप में है। "चन्द्र: घण्टायास्या: सा" आहलादकारी चन्द्रमा जिनकी घण्टा में स्थित हो उन देवी का नाम चन्द्रघण्टा है।
साधक भगवती के इस रूप का घ्यान कारता है तो वह समृद्धि, भौतिक सम्पन्नता तथा संसार के समस्त भौतिक सुख प्राप्त करता है। पूजन व घ्यान का समय सूर्योदय से पूर्व का है जो भक्त नवरात्रा में 4 वर्ष की सुन्दर निरोगी कन्या का पूजन करता है उसे शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। इस साधना के लिये निम्न मंत्र है-
क, ए, ई, ल, ह्नीं, ह, स, क, ह, ल, ह्नीं, स, क, ल, ह्नीं
माँ चन्द्रघण्टा का पन्द्रह अक्षर का मंत्र है, जो भी भक्त नवरात्रा के प्रथम दिन से नवमी तक पूर्ण विधि-विधान से करता है उसकी सभी प्रकार की मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है। इस विधान में प्रतिदिन चार वर्ष की आयु सुन्दर व निरोगी कन्या का पूजन करना अनिवार्य है।
प्रथम शैलपुत्री
माँ भगवती की मूर्ति नौ रूपों में है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इनके पृथक-पृथक नाम संसार में प्रचलित हैं, जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है तथा विभिन्न रूपों का चमत्कार विभिन्न प्रकार से अनन्य भक्तों द्वारा अनुभूत किया जाता है। इन रूपों में से प्रथम रूप शैल-पुत्री के नाम से जाना जाता है। गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती देवी को ही शैलपुत्री कहा गया है। हिमालय की तपस्या व प्रार्थना से भगवती ने हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था जिस कारण शैलपुत्री कहा जाता है।
द्वितीय ब्रम्हाचारिणी
माँ भगवती का द्वितीय रूप ब्रम्हाचारिणी उपनिषदों में कहा गया है। "चाररियितुं शील यस्या: सा ब्रम्हाचारिणी" सच्चिदानन्दमय ब्रम्हा की प्राप्ति करना चाहता है, जिन्हें ब्रम्हा (ईश्वर) की प्राप्ति करना है, वे भगवती के ब्रम्हाचारिणी स्वरूप का घ्यान करके साधना करें, निश्चित रूप से भगवती कृपा से ब्रम्हा मुहूर्त में भगवती के इस स्वरूप का घ्यान करें, पूजा अर्चना के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी।
त्वां स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।
ब्रम्हा की प्राप्ति तो होगी और उसके साथ में भक्त की इच्छाओं की भी पूर्ति होती है। पूर्ण श्रद्धा, पवित्रता और संयम से की गई साधना निश्चित रूप से फलीभूत होती है।
तृतीय चन्द्रघण्टा
माँ भगवती का तृतीय रूप चन्द्रघण्टा देवी के रूप में है। "चन्द्र: घण्टायास्या: सा" आहलादकारी चन्द्रमा जिनकी घण्टा में स्थित हो उन देवी का नाम चन्द्रघण्टा है।
साधक भगवती के इस रूप का घ्यान कारता है तो वह समृद्धि, भौतिक सम्पन्नता तथा संसार के समस्त भौतिक सुख प्राप्त करता है। पूजन व घ्यान का समय सूर्योदय से पूर्व का है जो भक्त नवरात्रा में 4 वर्ष की सुन्दर निरोगी कन्या का पूजन करता है उसे शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। इस साधना के लिये निम्न मंत्र है-
क, ए, ई, ल, ह्नीं, ह, स, क, ह, ल, ह्नीं, स, क, ल, ह्नीं
माँ चन्द्रघण्टा का पन्द्रह अक्षर का मंत्र है, जो भी भक्त नवरात्रा के प्रथम दिन से नवमी तक पूर्ण विधि-विधान से करता है उसकी सभी प्रकार की मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है। इस विधान में प्रतिदिन चार वर्ष की आयु सुन्दर व निरोगी कन्या का पूजन करना अनिवार्य है।
1 comment:
Harish Bhulla, I appreciate your posting on your Blogspot, I have given copy of Jai Ho Nanda Devi Song to a Devotee of Maa Bhagwati, he have forwarded his blessings through me to you. With Love & regards from Your Bhaiji SHISH RAM UNIYAL
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