Tuesday, March 1, 2011

फिर मुड़कर नहीं देखा उत्तराखंड

देहरादून उत्तराखंड के लोग अपने सांसदों की तलाश में हैं। जब से वे उत्तराखंड से राज्यसभा के लिए चुने गए हैं, लोगों ने उन्हें देखा तक नहीं है। यह बात अलग है कि इन सांसदों की विकास निधि निरंतर आ रही है, लेकिन उसकी बंदरबांट कुछ ऊंची पहुंच वालों के माध्यम से ही हो रही है। कांग्रेस शासनकाल में उत्तराखंड कोटे से पहले कै. सतीश शर्मा उसके बाद सत्यव्रत चतुर्वेदी राज्यसभा के लिए चुने गए थे। राज्यसभा के लिए बाहरी नेताओं को चुने जाने का दबी जुबान में विरोध भी हुआ था, लेकिन हाईकमान के सामने यह नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई। चुने जाने के बाद उन्होंने बड़े-बड़े दावे किए थे। उत्तराखंड के प्रतिनिधित्व की कीमत दिल्ली में चुकाने का वादा करने वाले उत्तराखंड की तरफ एक बार भी लौटकर नहीं आए। हालांकि कांग्रेस नेता रामशरण नौटियाल दावा करते हैं कि सतीश शर्मा दून, उत्तरकाशी तथा टिहरी में कई बार आ चुके हैं। यह तय है कि इन जन प्रतिनिधियों को उत्तराखंड से कोई लेना देना नहीं है। ये सिर्फ हाईकमान की मर्जी से राज्य पर थोपे गए हैं लेकिन जब तक ये उत्तराखंड के जनप्रतिनिधि हैं, इनकी सांसद निधि पर तो उत्तराखंड का हक है। सतीश शर्मा 04-05 में चुने गए थे। इस वित्तीय वर्ष में उनकी निधि से 88.316 लाख रुपये मंजूर हुए थे। इसमें देहरादून को सबसे अधिक 22.90 लाख, टिहरी को 20.80 लाख, उत्तरकाशी को 17.50 लाख, नैनीताल को 11.986 लाख, ऊधमसिंह नगर को 9.58 लाख और चमोली को 5.55 लाख रुपये दिए गए हैं। कन्या कुमारी को 11 लाख दिए गए हैं। वर्ष 05-06 में भी 190.200 लाख रुपये श्री शर्मा की निधि से स्वीकृत हुए हैं। इस वर्ष भी देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी को टॉप प्रायरिटी दी गई। हरिद्वार तथा चमोली जिले को कुछ नहीं मिला, अन्य जिलों के हिस्से कुछ आया है। 06-07 में भी वही कहानी दोहराई गई है। 07-08 में देहरादून के हिस्से कम आया है लेकिन उत्तरकाशी और टिहरी फिर भी आगे रहे हैं। सत्यव्रत चतुर्वेदी 06-07 में राज्य सभा के लिए चुने गए। इस वर्ष उन्होंने 196.9 लाख रुपये मंजूर किए। पौड़ी, देहरादून, ऊधमसिंह नगर, अल्मोड़ा उनकी सूची में सबसे ऊपर हैं। वर्ष 07-08 में उन्होंने दो करोड़ से अधिक की स्वीकृतियां दी। नैनीताल, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और हरिद्वार को उन्होंने प्राथमिकता दी।

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