Monday, December 7, 2009

''मेघ कृपा''

जिन पर मेघों के नयन गिरे
वे सबके सब हो गए हरे।
पतझड का सुन कर करुण रुदन
जिसने उतार दे दिए वसन
उस पर निकले किशोर किसलय
कलियां निकलीं, निकला यौवन।
जिन पर वसंत की पवन चली
वे सबकी सब खिल गई कली।
सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
जिसने अपने छायाश्रित जन
के लिए बनाई मधुर मही
लख उसे भरे नभ के लोचन।
लख जिन्हें गगन के नयन भरे
वे सबके सब हो गए हरे।

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