''अबकी बार राखी में जरुर घर आना''
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
न चाहती धन-दौलत न कोई गहना
आकर पास बैठ, दो बोल मीठे सुनाना
अब न बनाना फिर से कोई बहाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
गाँव के खेत-खलियान तुम्हें बुलाते हैं
कभी खेले-कूदे अब क्यों भूले कहते हैं
जरा अपना बचपन का स्कूल देखते जाना
अपने बचपन के दिनों को याद करना
भूले-बिसरे साथियों की सुध लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
गाँव-घर छोड़ अब तू परदेश जा बसा है
बिन तेरे घर अपना सूना-सूना पड़ा है
बूढ़ी दादी और माँ का भी यही कहना है
अपने परदेशी नाती-पूतों को देखना है
आकर घर हसरत उनकी पूरी करना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
खेती-पाती में अब लोगों का मन कम लगता है
गाँव में रहकर उन्हीं शहर का सपना दिखता है
उजडे घर, बंजर खेती आसूं बहा रहे हैं
कब सुध लोगे देख आसमां पुकार रहे हैं
आकर अपनी आखों से हाल देखते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
(हरीश बिष्ट )
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