Thursday, August 6, 2009

''बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश''


बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश.....

वीर भड़ु की भूमि,प्यारु गढ़देश,
देवभूमि तपोभूमि,जख ब्रह्मा विष्णु महेश.
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश.....

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जख राज करिग्यन,गढ़वाल नरेश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जौनसारी, गढ़वाली बोलि,रौ रिवाज, परिवेश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
बांज, बुरांश, देवदार,डाडंयौं मा ढेस,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जख नाचदा देवता,भूत अर् खबेस,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
देवतों का धाम,हरिद्वार ढेस,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश..

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
गंगा यमुना कू मैत,वीर भड़ु कू देश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश..

2.हळ्या दिदा का मन मा लगिं छ,
हौळ लगाण की झौळ,कथ्गै मौ कू हौळ लगाण,
ऊठणि छ मन मा बौळ.

बल्दु की जोड़ी हळ्या गौं मा,
खोजिक छन द्वी चार,
सैडा गौं कू हौळ लगान्दा,
मुलाजु या लाचार.

कथ्गै मौ की पुंगड़ी बांजी,हौळ भी कैन लगाण,
हल्यौं कु अकाळ होयुं छ,कैन बोण आर बाण.

हल्सुंगी ढ़गड्याण लगिं छ,पड़नी छन ढळ डामर,
हळ्या दिदा तंगत्याण लग्युं छ,जन हो ज्युकड़ी मा जर.

हळ्या का मन मा कपट निछ,मन मा छ हौळ की झौळ,
सुबर ब्याखना हौळ लगैक,ऊठण लगिं छ बौळ.

हळ्या दिदा सोच्दु छ मन मा,दग्ड़या मेरा सैरू बाजारू मा,
मैं बंण्यु छौं हळ्या,गौं वाळौं मैं जु चलि जौलु,
गौं छोड़िक दूर देश,चुचौं! तब तुम क्या कल्या.

बल्द हर्चिगिन, हळ्या भि हर्चला,
देखण लग्युं छ "जिग्यांसु",
पुंगड़्यौं मा कबरी हौळ लगै थौ,
आज औणा छन आँसू.......

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