Thursday, May 14, 2009

ज...य ..उ..त्त..रा...खण्ड


सीमा पर जो नही आ सके अचूक निशाने की जद़ मेनही आ सके जो मिसाइलों -टैंकों और राँकेटो की रेंज मे,वे आ गये बिना निशाना सधी गोलियो की चपेट मेंजो देश कि सीमा पर मुस्तैदी से रहे तैनात,मार गिराया जिन्होने न जाने कितने दुश्मनो को,वो काम आ गये अपनी ही जमीन परअपने ही लोगो के बीच निहत्थे थेअस्मिता की तलाश मे निकले,मुटिठ्या तनी थी,जिसमे थी इच्छायें,इच्छाओ से पटी थी आग,आग से जले थे शब्द,और उन शब्दो से डरा हुआ था तानाशांह,एक जद के खिलाफ निहत्थे खडे़ थेहजारो के बीच वे तीन या तेरह,पांच या सात,और इस जिद के खिलाफगिरते-गिरते भी उन्होनेअपने खून से लिख दिया ज...य ..उ..त्त..रा...खण्ड

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