Thursday, May 14, 2009

जाते समय झार पर छोड़ आई थी,वह माँ कहकर आई थी अभी आती हूँ ज...ल्दी बस्स.....तेरे लिए, एक नई जमीन,एक नई हवा, नया पानी ले आऊं ले आऊं नई फसल, नया सूरज, नई रोटी अब्बी आई....बस्स पास के गांधी-चारे तक ही तो जाना है,झल्लूस में चलते समय एक नन्ही हथेली, उठी होगी हवा में- विदा ! मां विदा!! खुशी दमकी होगी,दोनो के चेहरे पर माथा चूमा होगा मां ने- उन होठो से, जिनसे निकल रहे थे नारे वह मां सोई पडी़ है सड़क पर पत्थर होंठ है,पत्थर हाथ पैर पथराई आँखे पहाडों की रानी को, पहाड़ देखता है अवा्क - चीड़ देवदार, बाँज -बुराँस, खडें हैसन्न- आग लगी है आज.आदमी के दिलो में खूब रोया दिन भर बादल रखकर सिर पहाड़ के कन्धे पर नही जले चूल्हे, गांव घरो में उठा धुआ उदास है खिलखिलाते बच्चे, उदास है फूल वह बेटा भी रो-रोकरसो गया है- अभी नही लौटी मां...... लौटेगी तो मैं नही बोलूंगा लौटी क्यों नही अभी तक....! उसे क्या पता, बहरे लोकतन्त्र में वह लेने गई है,अपने राजा बेटे का भविष्य

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