Thursday, May 14, 2009

हँसते खेलते बांटते थे अपना अमनो चैन



पीडा
आज की शाम
वो शाम थी
जिसके आगोश में अपने पराये
हँसते खेलते बांटते थे अपना अमनो चैन
दुख दर्द , कल के सपने !
घर की दहलीज़ पर देती दस्तख
आज की सांझ ,वो सांझ थी ... आज की

दूर छितिज पर ढलती लालिमा
आज सिन्दूरी रंग की अपेक्षा
कुछ ज्यादा ही गाडी लाल रेखाएं देखाई दे रही थी
उस के इस रंग में बदनीयती की बू रही थी
जो अहसाश दिला रही थी
दिन के कत्ल होने का ?
आज की फिज़ा ,वो फिज़ा थी .... आज की शाम

चौक से जाती गलियां
उदास थी ...
गुजरता मोड़ ,
गुमसुम था
खेत की मेंड भी
गमगीन थी
शहर का कुत्ता भी चुप था
ये शहर , आज वो शहर था ... आज की शाम

धमाकों के साथ चीखते स्वर
सहारों की तलाश में भटकते
लहू में सने हाथ ......
अफरा तफरी में भागते गिरते लोग
ये रौनकी बाजार पल में शमसान बनगया
यहां पर पहिले एसा मौहोल तो कभी था
ये क्या होगया ? किसके नजर लग गयी ... आज की शाम

बरसों साथ रहने का वायदा
पल में टूटा
कभी जुदा होनेवाला हाथ
हाथ छुटा
सपनो की लड़ी बिखरी
सपना टूटा
देखते देखते भाई से बिछुड़ी बहिना
बाप से जुदा हुआ बेटा
कई मां की गोदे हुई खाली
कई सुहागिनों का सिन्दूर लुटा
शान्ति के इस शहर में किसने ये आग लगाई
ये कौन है ? मुझे बी तो बताऊ भाई ... ! ... आज

पराशर गौर
कनाडा १५ सितम्बर २००८ श्याम बजे

7 comments:

Anonymous said...

भावपूर्ण रचना।

दिगम्बर नासवा said...

भाव भरी रचना.............दिल को छू गयी

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

बहुत सुंदर.हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मेरे ब्लोग पर भी आने की जहमत करें।

Yamini Gaur said...

well done....