Tuesday, May 19, 2009

एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ


एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ एक भयंकर विचारकी बणी जौँ मैं फिर सी ब्योला अर फिर सी साजो मेरी तिबारब्योली हो मेरी छड़छड़ी बान्द जून सी मुखडी माँ साज सिंगारबीती ग्येन ब्यो का आठ बरस जगणा छ फिर उमंग और उलारपैली बैठी थोऊ मैं पालंकी पर अब बैठण घोड़ी पकड़ी मूठतब पैरी थोऊ मैन पिंग्लू धोती कुरता अब की बार सूट बूटबामण रखण जवान दगडा ,बूढया रखण घर माँदरोलिया रखण काबू माँ न करू जू दारू की हथ्या-लूटमैन यु सोच्यु च पैली धरी च बंधी कै गिडाकखोळी माँ रुपया दयाणा हजार नि खापौंण दिमाकफेरो का बगत अडूनु मैन मांगण गुन्ठी तोलै ढाईपर डरणु छौं जमाना का हाल देखि नहो कखी हो पिटाईपैली होई द्वार बाटू ,बहुत ह्वै थोऊ टैम कु घाटूगौं भरी माँ घूमी कें औंण, पुरु कन द्वार बाटूरात भर लगलू मंड़ाण तब खूब झका-झोर कुचतरू दीदा फिर होलू रंगमत घोड़ा रम पीलू जूतब जौला दुइया जणा घूमणा कें मंसूरी का पहाडू माँदुइया घुमला खूब बर्फ माँ ठण्ड लागु चाई जिबाडू माँब्यो कु यन बिचार जब मैन अपनी जनानी थैं सुणाईटीपी वीँन झाडू -मुंगरा दौड़ी पिछने-२ जख मैं जाईकन शौक चढी त्वै बुढया पर जरा शर्म नि आईअजौं भी त्वैन जुकुडी माँ ब्यो की आग च लगांईनि देख दिन माँ सुप्नाया, बोलाणी च जनानीदस बच्चो कु बुबा ह्वै गे कन ह्वै तेरी निखाणीमैं ही छौं तेरी छड़छड़ी बान्द देख मैं पर तांणीअपनी जनानी दगडा माँ किले छ नजर घुमाणीतब खुल्या मेरा आँखा-कंदुड़ खाई मैन कसमतेरा दगडी रौलू सदानी बार बार जनम जनम


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