Thursday, May 21, 2009



मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलूअपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणीहमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान खाड़ जम्युं छ चौक माँ, कन बनी ग्ये हम सब अंजानयाद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंनयाद बौत औंदन वू प्यारा दिन जब होदू थौंकाली चाय मा गुडु कु ठुंगार पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार कोदा की रोटी पयाजा कु साग बोडा कु हुक्का अर तार वाली साजचैता का काफल भादों की मुंगरी जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिंगोरी पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आम हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धामअसुज का मैना की धन की कटाई बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई बल्दू का खंकार गौडियो कु राम्णु घट मा जैकर रात भरी जगाणुडाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याटडाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु सुन्सेयाट सौंण भादो की बरखा, बस्काल की कुरेडी घी-दूध की परोठी अर छांच की परेडीहिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवालभैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रंदी जग्वाल चैता का मैना का कौथिग और मेला बेडू- तिम्लौ कु चोप अर टेंटी कु मेलाब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु संग मस्क्बजा की बीन दगडा मा रणसिंग दासा कु ढोल दमइया कु दमोऊ कन भालू लगदु मेरु रंगीलो गढ़वाल-छबीलो कुमोऊबुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलारआवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जावा तुम भी तैयार

Source:http://www.nalin-mehra.blogspot.com/

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