Monday, May 18, 2009

जब वो शरारत भरी आंखों से मुझे छेड़ जाया करती है,


वो अक्सर मद्धम मद्धम सा मुस्कुराया करती है,शरारत भरी आंखों से मुझे छेड़ जाया करती है,सताके मुझे जब वो अपना प्यार जताया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,देख के मुझे वो अक्सर मुस्कुराया करती है,झील सी गहरी आंखों से कुछ कह जाया करती है,हँसते हँसते जब वो झूठ मूठ का रूठ जाया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,जब कभी वो उदास हो जाया करती है,अपनी आंखों से मोती बरसाया करती है,फिर सुनके मेरी कोई बेवकूफी वो हंस जाया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,कभी करती है बातें बड़ों सी और कभी बच्ची बन जाया करती है,अपनी अदाओं से वो अक्सर मुझे रिझाया करती है,आंखों में छुपाके मोहोब्बत जब लबों से इंकार कर जाया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,

1 comment:

Nalin Mehra said...

HArish Bisht Ji, yeh Jo Kavita apne yahan post kari hai, kam se kam apko yahan pe poem likhne wale ka toh zikr karna chahiye................

is kavita ko maine hi likha hai....... Kripya karke, ap isay apne blog me na post karein aur gara aisa karein toh kam se kam likhne wale ke naam zarur dijiye.......

yeh raha meri likhi poem ka original link

http://nalin-mehra.blogspot.com/2009/05/jab-kabhi-woh-udaas-ho-jaya-karti-hai.html

Nalin Mehra