जाण च भई जाण च , मिन त गौं जाण च, आफ़िस बिटी छुट्टी ल्याली, अब त बस जाण च।दिल मा उमंग च, मिन त गौं जाण च ,मन मा तरंग च, अब त बस जाण च ।आफ़िस बिटी जल्दी ऐग्यों, और समान पैक करी,सारु समान पैक हुवेगी , अब त बस जाण च ।गौं जाण की रट मा ,बितगी रात अधनिन्द मा,फ़िर सुबेरी बस पकड़ी , और गौ कु तै निकल पड़ी ,आज जाण मिन अपड़ा घर, सोची तै शुरु हुवेगी सफ़र,ऋषिकेश पहुँची कन मिलदु सुक, लग्दु जन ऐगिनी हम अपड़ा मुल्क ।यख बिटी शुरु हुवे पहाड़ कु सफ़र, मन मा बढ़ण लगी खुशी की लहर,कि आज त मिन जाण च , जाण च अपड़ा घर ।खिड़की बिटी देखण लग्युँ, भैर कु हाल, तब्रया पहुँच ग्याँ हम आगराखाल ।कैन तख खाणु खायी, कैन पकोड़ी और चा,कैन भुटवा कु मजा लिणी, त कैन ठंडी हवा ।सबुन खायी पेट भर, फ़िर शुरु हुवेगी गौं कु सफ़र ।चम्बा मा हिमाल देखी , मन और गुदगुदाई ,फ़िर पता नि कब औलु यख, सोचण लग्यु भाई ।टिहरी पहुँची देखी बदल्युँ थौ नजारु,जख तक थौ राजा कु महल, सब जल मा समाई ।थोड़ी ही देर मा, मेरु गौं भी ऎ ग्यायी,बस सी उतरयुँ मी, और ली जोर की अँगड़ाई ।पहुँची ग्यों मैं देवभूमी, पहुँची ग्यों मैं स्वर्ग मापहुँची ग्यों मैं अपड़ा गौं, यख बिटी जाण अब कखी ना ।नि चांदा भी , जाण पड़लु खैर ,फ़िर औलु कन्नु कु तै, मी "अपड़ा गौं की सैर" ।
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