Thursday, May 21, 2009

दिन हुआ है तो रात भी होगी,हो मत उदास कभी तो बात भी होगी,


दिन हुआ है तो रात भी होगी,हो मत उदास कभी तो बात भी होगी, इतने प्यार से दोस्ती की हैखुदा की कसम जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी. कोशिश कीजिए हमें याद करने कीलम्हे तो अपने आप ही मिल जायेंगेतमन्ना कीजिए हमें मिलने कीबहाने तो अपने आप ही मिल जायेंगे .महक दोस्ती की इश्क से कम नहीं होतीइश्क से ज़िन्दगी ख़तम नहीं होतीअगर साथ हो ज़िन्दगी में अच्छे दोस्त का तो ज़िन्दगी जन्नत से कम नहीं होतीसितारों के बीच से चुराया है आपकोदिल से अपना दोस्त बनाया है आपकोइस दिल का ख्याल रखनाक्योंकि इस दिल के कोने में बसाया है आपको अपनी ज़िन्दगी में मुझे शरिख समझनाकोई गम आये तो करीब समझनादे देंगे मुस्कराहट आंसुओं के बदलेमगर हजारों दोस्तो में अज़ीज़ समझना.. हर दुआ काबुल नहीं होती , हर आरजू पूरी नहीं होती ,जिन्हें आप जैसे दोस्त का साथ मिले ,उनके लिए धड़कने भी जरुरी नहीं होती दिन हुआ है तो रात भी होगी, हो मत उदास कभी तो बात भी होगी, इतने प्यार से दोस्ती की हैखुदा की कसम जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी

आज अचानक दिल ने दस्तक दी,

आज अचानक दिल ने दस्तक दी, पुरानी यादो को ताज़ा कर एक हवा दी, कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए,क्या सोचा और क्या कर गए?वादियों की गोद में जो बचपन बीता था,शहर की भीड़ में वो आज गुमनाम है, जिनसे बिछड़ने में कभी डर लगता था,आज उन्ही के लिए हम अनजान हैं, अपना प्रदेश छोड़ा , छोड़ी अपनी माटी,उनसे हम दूर हुए, जहाँ से सीखी परिपाटी, आज भावः विभोर मन उदास हो आया है,बीती यादो में आज अपना बचपन याद आया है, याद आता है वो बचपन जब पाटी पर लिखा करते थे,और बात बात पर रूठ कर माटी से लिपटा करते थे,बढ़ते बच्चे जब पड़ने लगे अ आ बाराखडी,फ़िर वही एक उदासी मन में आने लगी ,की पढ़ लिखकर जायेंगे कहाँ, और कहाँ करेंगे नौकरी,इसी सोच और पीड़ा ने न जाने कब बड़ा बना दिया,और गाँव की माटी ने परदेश के लिए विदा कर दिया,शहर के हालत भी देखे और देखि यहाँ की ज़िन्दगी,पर रस न आई वो बानगी और बन्दिगी,अब तो बस रह रह कर यही विचार आता है,की कब लौट चले अपने पहाडो पर, जो मेहनत की और पसीना बहाया है यहाँ पर, अपने मुल्क में जाकर उसी को बनाये अपना सहारा



मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलूअपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणीहमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान खाड़ जम्युं छ चौक माँ, कन बनी ग्ये हम सब अंजानयाद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंनयाद बौत औंदन वू प्यारा दिन जब होदू थौंकाली चाय मा गुडु कु ठुंगार पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार कोदा की रोटी पयाजा कु साग बोडा कु हुक्का अर तार वाली साजचैता का काफल भादों की मुंगरी जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिंगोरी पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आम हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धामअसुज का मैना की धन की कटाई बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई बल्दू का खंकार गौडियो कु राम्णु घट मा जैकर रात भरी जगाणुडाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याटडाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु सुन्सेयाट सौंण भादो की बरखा, बस्काल की कुरेडी घी-दूध की परोठी अर छांच की परेडीहिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवालभैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रंदी जग्वाल चैता का मैना का कौथिग और मेला बेडू- तिम्लौ कु चोप अर टेंटी कु मेलाब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु संग मस्क्बजा की बीन दगडा मा रणसिंग दासा कु ढोल दमइया कु दमोऊ कन भालू लगदु मेरु रंगीलो गढ़वाल-छबीलो कुमोऊबुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलारआवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जावा तुम भी तैयार

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कुछ रिश्ते होते हैं "हवाओं" की तरह, बनके "खुशबू" ज़िन्दगी मैं घुल जाया करते हैं,


कुछ रिश्ते होते हैं "हवाओं" की तरह, बनके "खुशबू" ज़िन्दगी मैं घुल जाया करते हैं, कुछ शख्स होते हैं "धुन" की तरह, बनके "ग़ज़ल" ज़िन्दगी सुरमई कर जाया करते हैं, जाने क्यूँ जब भी ज़िक्र होता है नाम का आपके, हम "ग़ज़ल" की "धुन" और "हवाओं" की "खुशबू" को महसूस कर जाया करते हैं.......


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यह जो हो रही है दो दिलों के दरमियान



यह जो हो रही है दो दिलों के दरमियान ,यह अजब सी गुफ्तगू क्या है,कभी होता था मौसम गुलाबों का जहाँ ,आज वहां काटों सी चुभन क्या है,मुस्कुराहटों का दौर हुआ करता था जिन होटों पे कभी,आज उन होटों पे गम-ऐ-ग़ज़ल क्या है,किसी ज़माने में हंसा करती थी जो आँखें,उन आंखों मैं यह आंसू क्या है,मानके खुदा तुझे किए सजदे तेरे इश्क में,तोह यह इबादतों मैं बेवफाई का ज़िक्र क्या है,कहते है शायर की है बेंतेहा सुकूं इश्क में,तोः फिर यह बेकरारी सी दिल मैं क्या है,क्यूँ भरते है वो दम मोहोब्बत का अपनी,जो ख़ुद समझते नही मोहोब्बत की आबरू क्या है,इसी उम्मीद पे काटी है ज़िन्दगी नलिन ने,वो काश पूछते की आरजू क्या है,

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बस एक हाँ के इंतज़ार में रात यूँ ही गुज़र जायेगी,

बस एक हाँ के इंतज़ार में रात यूँ ही गुज़र जायेगी,अब तोः बस उलझन है साथ मेरे नींद कहाँ आएगी,सुबह की किरण न जाने कोनसा संदेश लाएगी,रिमझिम सी गुनगुनायेगी या प्यास अधूरी रह जायेगी अब तोः बस सारी रात उसकी यादें आएगी,हर गुज़रते पल में उसकी बातें आएगी,उसकी शरारतें मेरे चेहरे मुस्कराहट लाएगी,मेरी आँखें उसकी झील सी आंखों में डूब जायेगी,उसकी बातें किसी मीठी धुन की तरह कानो में घुल जायेगी,उसकी मासूम हँसी सुकूं की तरह दिल में उतर जायेगी,मेरी साँसों में वो बनके खुशबु बस जायेगी,मेरी नींद में भी ख्वाब बनके वो आएगी,जो आया मोहोब्बत का पैगाम तोः यह ज़िन्दगी संवर जायेगी,ज़िन्दगी के इस सफर को एक मंजिल मिल जायेगी,अगर हुई रुसवाई तोः ज़िन्दगी कुछ ऐसी हो जायेगी,जिंदा रहूँगा में पर ज़िन्दगी ख़तम हो जायेगी,अब तोः खुदा जाने या मेरा साजन की मेरी मोहोब्बत क्या रंग लाएगी,है उम्मीद की चाँद सितारों सी आसमान में मुकम्मल हो जायेगी,जो हुई सच्ची तोः मोहोब्बत मेरी कुछ ऐसा असर कर जायेगी,मेरी प्यार भरी "गुजारिशें" उन्हें कुबूल हो जायेगी.........

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Tuesday, May 19, 2009

कू भग्यान होलू डांड्यू मां.

कू भग्यान होलू डांड्यू मां, यनि भली बांसुरी बजाणुबजाणु रे…… कू भग्यान होलू डांड्यू मां….. कू भग्यान… होलू क्वी बिचारू मैं जनू, नखर्याली बांद रिझाणुरिझाणु रे….. होलू क्वी बिचारू मैं जनू…. होलू क्वीफूल हमथें देख-देखि, पोतलो सन कांडा छीनपोतलो सन कांडा छीनभौंरा दीखा दिजा कैंमा, छुई हमरि लगाना छीनको बेशर्म होलू तो सणी तेरि-मेरि माया बिगाणूबिगाणू रेsssss.....होलू क्वी बिचारू मैं जनू…. होलू क्वीये डांडी बचानि होली कि, डालि बोटी गाणि होलीडालि बोटी गाणि होलीरसीला गीतों की भांण, कख बटि आणि होली को घस्यार होली रोल्यू मां, अपना सौंजर्या थे बत्याणिबत्याणि रेsssss….होली क्वै बिचारी मैं जनी…. होली क्वैमन मां बसायी मेरी, क्व होली दुन्या से न्यारीक्व होली दुन्या से न्यारीआंख्यूं मां लुक्याई बोल, को होली हिया की प्यारीकू बेमान होलू बोला जी, लगदू जो आखूं से भी स्वाणूंस्वाणूं रेsssss…..होलू क्वी बिचारू मैं जनू…. होलू क्वीकू भग्यान होलू डांड्यू मां, यनि भली बांसुरी बजाणुबजाणु रेsssss……होलू क्वी बिचारू मैं जनू…. होलू क्वी

चम चमकि घाम काँठीयूं माहिंवांली


चम चमा चम, चम चम , चम चम,चम चमकि , चमकि , चम चमकि घाम काँठीयूं माहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनीबणी गैनी, बणी गैनीहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।शिब का कैलाशु ग्यायी पैली पैली घाम , शिब का कैलाशु ग्यायी पैली पैली घामसेवा लगौणु आयी बदरी का धाम , बे बदरी का धाम, बे बदरी का धामसर.. फैली , फैली , सर.. फैली घाम डाँडों माभौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि बिजी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि बिजी गैनीबिजी गैनी , बिजी गैनहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।ठण्डु-मठु चड़ी घाम , फूलु कि पाखियुं मा, ठण्डु-मठु चड़ी घाम , फूलु कि पाखियुं मालगि कुतग्यली तौंकी नाँगि काख्युं मा बेनाँगि काख्युं मा, बे नाँगि काख्युं माखिच्च हैसिनी, हैसिनी, खिच्च हैसिनी फूल डालियुं माभौंरा पोथला रंग-मत बणी गैनी, भौंरा पोथला रंग-मत बणी गैनीबणी गैनी , बणी गैनीहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।डांडि-काँठि बिजाली , पौंछि घाम गौं मा, डांडि-काँठि बिजाली , पौंछि घाम गौं मासु-निंद पौडि छै, बेटी ब्वारी डेरों मा बेब्वारी डेरों मा, बे ब्वारी डेरों माझम्म झौल , झौल , झम्म झौल लगी आखियुं मामायादार आंखियुं का सुपिन्या उड़ी गैनी, मायादार आंखियुं का सुपिन्या उड़ी गैनीउड़ी गैनी , उड़ी गैनीहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।छुँयुं मा मिसे गिन पंदेरो मा पंदेनी, छुँयुं मा मिसे गिन पंदेरो मा पंदेनीभाँडी भुरेगिनी तौंकी छुँई नी पुरेनी बेछुँई नी पुरेनी, बे छुँई नी पुरेनीखल्ल ख़ते , ख़ते, खल्ल ख़ते घाम मुखडि़युं मापितल्याणा मुखड़ी सोना की बणी गैनी, पितल्याणा मुखड़ी सोना की बणी गैनीबणी गैनी , बणी गैनहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।दोफ़रा मा लगी जब बणु मा घाम तैलू, खोपरा मा लगी जब बणु मा घाम तैलबैठि गिनी घसेनी बिसै की डाला छैलबिसै की डाला छैलु , बिसै की डाला छैलुगर्र निंद , निंद , गर्र निंद पोडी़ छैलु माआयि पतरोल अर घसेनी लुछे गैनी, आयि पतरोल अर घसेनी लुछे गैनीबणी गैनी , बणी गैनीहिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।ब्यकुनी को सिलु घाम पैटण बैठी गे, ब्यकुनी को सिलु घाम पैटण बैठी गेडाडियुं का पेछेडि जोन हैसण बैठी गे बेहैसण बैठी गे, बे हैसण बैठी गेझम्म रात , रात , झम्म रात पोडी़ रौलियुं माभौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनीसेयी गैनी, सेयी गैनीभौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनीभौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी......

हिट भुला हाथ खुटा हला


हिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कलादेर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..उठ गरिबी कु रोणु न रो, खूट त टेक खङ त होग्वाया लगैलि सारु खोजैली, कब तलक अब बडुत होहिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कलादेर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..नि चलि कैकि नि चलिणि रे, मातबरु कि समिणि रेतौंकि छाया माया का निस, हमारि बिज्वाङ नि जमिणी रेहिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कलादेर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..कर्ज पगाळि कि स्याणि नि कर, अपुङ भोळ गरिबि न धरराख विश्वास अफु फरें, कनि नि होंदि गुजर-बसरहिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कलादेर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..क्येकु फंसे छ दुरमति मा, तमाखु दारु जुव्वा-पति मासैरा मुलुक कि आस छ त्वे पर, ज्वनि गवों न कत्ता मती माहिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कलादेर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा

कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी


कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश माऊँची निसी डांडी गाड गद्न्या हिसर अर किन्गोड़ लाछुल बुल बन ग्ये होली डाली ग्वेर दगडया तोडलाघनी कुनाल्युन का बिच अर बांज की डाली का छैल मा बेटी ब्वारी बैठी होली बैख होला याद मा लटुली उडनी होली ठंडी हवा न डांडा की पर मी मोरनू छौं घाम अर तीस न ये देश माखुद मा तेरी सड़कयूँ पर मी रोनू छौं परदेश मा कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मारोनू छौं परदेश मागौडी भैंसी म्वा म्वा करदी रमदी लैंदी जब आली वुंकी गुसैन भांडी लेकी गौडी भैंसी पिजाली श्रौन भादौ का मैना लोग धाणी सब जाला वुनका जनाना स्वामी कु अपड़ा स्यारों रोटी लिजालामूला की भुज्जी प्याज कु साग दै की कटोरी भोरी की कोदा की अफुकू स्वामी कु ग्यून की रोटी खलल चोरी की पर मी भुखू सी छौं अपड़ा स्वाद बिना ये देश माखुद मा तेरी सड़कयूँ पर मी रोनू छौं परदेश मा कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मारोनू छौं परदेश मा---------------------------------------------

सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला


सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालाघौर अवा झट्ट अपुरु सैंती कर सम्हालासुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा पैमासी मा गैनी फांगी पैमासी मा गैनी फांगीरै गनी बस द्वी ढांगीपैमासी मा गैनी फांगी रै गेनि बस द्वी ढांगीधुर्पाली को द्वार टुटे धुर्पाली को धुर्पाली को द्वार टुटेमैल्या कूडो पाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा कोदू मैना पोर नि गै-२खानी पेनी होन कखैकोदू मैना पोर नि गै खानी पेनी होन कखैलैंदी गौडी छट छुटे लैंदी गौडी लैंदी गौडी छट छुटेजन हथौ रूमाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा जिठाजी ओर बिग्ल्ये ग्येनी-२दयूर बांट्टू खोज्दी रैनीजिठाजी ओर बिग्ल्ये ग्येनी दयूर बांट्टू खोज्दी रैनीससुराजी की एखारी बर्डी ससुरजी की ससुराजी की एखारी बर्डीखग्दी चा उमाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा सासुजी की स्वांस चलद-२पाल बीटी द्वार हलदसासुजी की स्वांस चलद पाल बीटी द्वार हलद घौर अवा झट्ट अपुरु सैंती कर सम्हाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालाघौर अवा झट्ट अपुरु सैंती कर सम्हालासुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवालासुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा

ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा




ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा -2बोल्युन्न मा मेरो , बिंदी ना बैठ चरखी मा ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा -2बनजा को अछानो बिंदी, बनजा को अछानो -2चरखी वालों मेरो भाई जीतेरु लगदा जिठानू , बिंदी ना बैठ चरखी मा -2ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा -2दही की परोठी बिंदी, दही की परोठी -2चरखी टूटी जाली बिंदी, तू छे भारी मोटी बिंदी ना बैठ चरखी नाना बैठ, ना बैठ, बिंदी ना बैठ चरखी माबोल्युन्न मां मेरो, बिंदी ना बैठ चरखी मादयेबतों कु भोग बिंदी, दयेबतों कु भोग -2उजिया सरेला तेरो , क्या बोलला लोग , बिंदी ना बैठ चरखी ना-2क्या बोलला लोग , बिंदी ना बैठ चरखी ना-2रोटी को फाफु दो बिंदी, रोटी को फाफु दो -2 बिदेशी मुलुक चोरी, कवी नि च अपुनो , बिंदी ना बैठ चरखी मा -2बोल्युं मान मेरो, बिंदी ना बैठ चरखी मा ना बैठ चरखी मा हे ना बैठ चरखी मा

न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटाउन्दारीयु का बाटाssssssउन्दरी


न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटाउन्दारीयु का बाटाssssssउन्दरी कु सुख द्वि -चार घड़ी को उकळी को दुःख सदनी को सुख लाटाsssssसौन्गु (आसन ) चितेंद अर दोडे भी जांदपर उन्दरी को बाटा उन्द जांद मनखी खैरी त आन्द पर उत्याडू (ठोकर) नि लगदु उबू (उपर) उठ्द मनखी उकाल चडी की न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटाउन्दारीयु का बाटाssssssऍच गोंउ मुख मा ज्वा गंगा पवित्र उन्दरियो मा दनकीक कोजाल ह्वे गे गदनीयू मा मिलगे जो हियूं उन्द बौगीssssजो रेगे हिमालय म वी चमकणुच आsssssन दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटाउन्दारीयु का बाटाssssssबरखा बातोणियो मा भी उन्द नी रडनी जू तुक पहुची गनी खैरी खै-खै की जोल नी बोटी धरती माँ पर अंग्वाल उन्द बौगी गनी अपणी खुशीयूनन दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटाउन्दारीयु का बाटाssssss--------------------------------

के बाटा ऐली , के बाटा जैली


के बाटा ऐली , के बाटा जैली के बाटा ऐली , के बाटा जैली उजाला सी मुख चम् के दिशा खातेली रोलूं बाटी औलू , धारा धरी जौलूं .डाली बोटी हैनी राई , सन संकोलूं .....के ऋतू मा ऐली, के रितु मा जैली,बस्ग्यल ऐली रुझाणु , की हिन्दियु कोपेली ,लगदा फागुन औलू , बिखोदी बाद जौलूं ,नाचुलू गोलूं थोलू मा , कौथिग भी रोलूं के ऋतू मा ऐली, के ऋतू मा जैली,लगदा फागुन औलू , बिखोदी बाद जौलूं के लेकी एली , क्या देखी जैली ,केकु भारिली भंडार , केकु ऋतू कैली ,मोल्यार लायुलू , हरियाली बांटी जोलु ,घर खोलो मा,गों गल्लों मा, फूल पाटी सजोलूं ,के लेकी ऐली , क्या देकी जैली,मोल्यार लायुलू, हरियाली बांटी जोलु,के भागी हसली , क्या लठयाला रेली ,कैकी माया चाट चिमिली , कैकी फुन्द सर्केली ,बालों हसेलूं , दानो तर्सोलूं ,जावनु की जिकुड़ी बाली , माया बूटी जोलु,के भागी हसली , क्या लठयाला रेली ,बालों हसेलूं, डानो तर्सोलूं,के बाटा ऐली, के बाटा जैली,रोलूं बाटी औलू, धारा धारी जौलूं

तेरु गोंउ गौला अब छुटी जाणतिन भी मेरी माया


ऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !तेरु गोंउ गौला अब छुटी जाणतिन भी मेरी माया अब भूली जाण -2भूली जाण ...भूली जाण ...भूली जाणssssssssssमाया की ज्योति जगीं बुझी जाणसुपन्यो की माला अब टूटी जाण -2टूटी जाण .. टूटी जाण ...टूटी जाणssssssssssssssतेरु गैल -छैल मैथे प्यारु लगदु छोतेरु घोर -वोण मैथे न्यारु लगदु छो -2वो हेसणु -हंसाणु वो नाचणु -नचाणुसज -धजी की आणु तेरु प्यारु लगदु छोऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !आँखी यू न बचियाणु तेरु कनु कै भूली जोंछवी बथा लगाणु तेरु कन कै बिसरी जोवो रूठणु- रुसाणु वो सुपनियु मा आणु गुस्सा मा मनाणु तेरु कनु कै भूली जोऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !तेरा खातिर कनी- कनी गाणी करी छैअब क्या बतोऊ क्या -क्या स्याणी करी छैतेरा खातिर कनी- कनी गाणी करी छैअब क्या बतोऊ क्या -क्या स्याणी करी छैवो लुकुणु -लुकाणु वो खेलणु- खेलाणुसैरी दुनिया ल सब पाणी फेरी हे !ऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !ऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !

हाथ न whisky पिलाई, फूल न पिलायो रम


हाथ न whisky पिलाई, फूल न पिलायो रमछोटा दल, निर्दलीय दिदो न कच्ची मा टरकाया हमऐसु चुनुओ मा मजा ही मजाहो हो हो हो होऐसु चुनुओ मा मजा ही मजादारू भी रूपया भी ठम-ठमहाथ ..........................................................सुबेरा पैक पे घड़ी दगडी,दिन का पैक साईकिल मा चडीबियाखुन कुर्सीम टम-टम पड़ीरात म हाथी मा बैठी की तड़ीऐसु चुनुओ मा ठाठ ही ठाठहो हो हो हो होऐसु चुनुओ मा ठाठ ही ठाठप्रत्याशी पैदल अर घोड़ा मा हमहाथ ..........................................आज ये दल मा, भोल वे दल मादल बदलिन नेतौन हर पल माहमरी भी दारू की brand बदलिनकभी soda coke मा कभी गंगा जल माऐसु चुनौ मा ठाठ ही ठाठहो हो हो .....होऐसु चुनौ मा ऐस ही ऐसदेशी विदेशी local हजमहाथ ..........................................मुर्गो की टांग च बखरो की रान चहाथ मा सिगरेट मुख मा पान चजुगराज रया मेरा लोकतन्त्रतेरा प्रताप गरीबो की शान चपहली नि छो पता अब चलिगेहो हो हो हो होपहली नि छो पता अब चलिगेVote की चोट मा कथगा दमहाथ ..........................................हवेगे चुनोऊ सरकार बणीगेक्वी मवशी बणी क्वी उजड़ी गेअब नि दिखेणा क्वी ल्योण वालाखाली ह्वे बोतल नशा उडिगेचिफला का राज कै मौज मरेनहो हो हो हो होचिफला का राज कै मौज मरेनजुंगो का राज मा ठम -ठमहाथ न whisky पिलाई, फूल न पिलायो रमछोटा दल, निर्दलीय दिदो न कच्ची मा टरकाया हमऐसु चुनुओ मा मजा ही मज़ा

दिल मा उमंग च, मिन त गौं जाण च


जाण च भई जाण च , मिन त गौं जाण च, आफ़िस बिटी छुट्टी ल्याली, अब त बस जाण च।दिल मा उमंग च, मिन त गौं जाण च ,मन मा तरंग च, अब त बस जाण च ।आफ़िस बिटी जल्दी ऐग्यों, और समान पैक करी,सारु समान पैक हुवेगी , अब त बस जाण च ।गौं जाण की रट मा ,बितगी रात अधनिन्द मा,फ़िर सुबेरी बस पकड़ी , और गौ कु तै निकल पड़ी ,आज जाण मिन अपड़ा घर, सोची तै शुरु हुवेगी सफ़र,ऋषिकेश पहुँची कन मिलदु सुक, लग्दु जन ऐगिनी हम अपड़ा मुल्क ।यख बिटी शुरु हुवे पहाड़ कु सफ़र, मन मा बढ़ण लगी खुशी की लहर,कि आज त मिन जाण च , जाण च अपड़ा घर ।खिड़की बिटी देखण लग्युँ, भैर कु हाल, तब्रया पहुँच ग्याँ हम आगराखाल ।कैन तख खाणु खायी, कैन पकोड़ी और चा,कैन भुटवा कु मजा लिणी, त कैन ठंडी हवा ।सबुन खायी पेट भर, फ़िर शुरु हुवेगी गौं कु सफ़र ।चम्बा मा हिमाल देखी , मन और गुदगुदाई ,फ़िर पता नि कब औलु यख, सोचण लग्यु भाई ।टिहरी पहुँची देखी बदल्युँ थौ नजारु,जख तक थौ राजा कु महल, सब जल मा समाई ।थोड़ी ही देर मा, मेरु गौं भी ऎ ग्यायी,बस सी उतरयुँ मी, और ली जोर की अँगड़ाई ।पहुँची ग्यों मैं देवभूमी, पहुँची ग्यों मैं स्वर्ग मापहुँची ग्यों मैं अपड़ा गौं, यख बिटी जाण अब कखी ना ।नि चांदा भी , जाण पड़लु खैर ,फ़िर औलु कन्नु कु तै, मी "अपड़ा गौं की सैर" ।

एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ


एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ एक भयंकर विचारकी बणी जौँ मैं फिर सी ब्योला अर फिर सी साजो मेरी तिबारब्योली हो मेरी छड़छड़ी बान्द जून सी मुखडी माँ साज सिंगारबीती ग्येन ब्यो का आठ बरस जगणा छ फिर उमंग और उलारपैली बैठी थोऊ मैं पालंकी पर अब बैठण घोड़ी पकड़ी मूठतब पैरी थोऊ मैन पिंग्लू धोती कुरता अब की बार सूट बूटबामण रखण जवान दगडा ,बूढया रखण घर माँदरोलिया रखण काबू माँ न करू जू दारू की हथ्या-लूटमैन यु सोच्यु च पैली धरी च बंधी कै गिडाकखोळी माँ रुपया दयाणा हजार नि खापौंण दिमाकफेरो का बगत अडूनु मैन मांगण गुन्ठी तोलै ढाईपर डरणु छौं जमाना का हाल देखि नहो कखी हो पिटाईपैली होई द्वार बाटू ,बहुत ह्वै थोऊ टैम कु घाटूगौं भरी माँ घूमी कें औंण, पुरु कन द्वार बाटूरात भर लगलू मंड़ाण तब खूब झका-झोर कुचतरू दीदा फिर होलू रंगमत घोड़ा रम पीलू जूतब जौला दुइया जणा घूमणा कें मंसूरी का पहाडू माँदुइया घुमला खूब बर्फ माँ ठण्ड लागु चाई जिबाडू माँब्यो कु यन बिचार जब मैन अपनी जनानी थैं सुणाईटीपी वीँन झाडू -मुंगरा दौड़ी पिछने-२ जख मैं जाईकन शौक चढी त्वै बुढया पर जरा शर्म नि आईअजौं भी त्वैन जुकुडी माँ ब्यो की आग च लगांईनि देख दिन माँ सुप्नाया, बोलाणी च जनानीदस बच्चो कु बुबा ह्वै गे कन ह्वै तेरी निखाणीमैं ही छौं तेरी छड़छड़ी बान्द देख मैं पर तांणीअपनी जनानी दगडा माँ किले छ नजर घुमाणीतब खुल्या मेरा आँखा-कंदुड़ खाई मैन कसमतेरा दगडी रौलू सदानी बार बार जनम जनम


‘‘यनु हो मेरु उत्तराँचल’’


चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौलादुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौलालोगू मा प्यार–मोहब्बत हो जखदुःख–विपदा मा इक दूसरा कू सारु हो जखचला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौलादुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौलाफूलू मा कान्डा न होन जखभूखों गरीबों तैं क्वी न सतौं जखचला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौलादुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौलाइक–दूसरा तै पुछण वाला हो जखगाली–गलौच़ लडै–झगड़ा कू नौवूं न हो जखबेटी–ब्वारी तैं पूरु सम्मान मिलु जखचला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौलादुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौलापढ़ियां –लिख्यां लोग़ अनपढ़ौं तैं शिक्षा बांटू जखरोजगार की कमी न हो जखबेरोजगार दग्गड़या न भटकू जखचला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौलादुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौलागौवूं –खोला मा दीदी–भूलि मिलिजुलि काम करु जखसुख–सर्मिधि कू उजालू हो जखचला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौलादुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला

Monday, May 18, 2009

भारत के सत्ताईसवें राज्‍य के रूप में उत्तरांचल (उत्तराखंड)


9 नवंबर सन्‌ 2000 को भारत के सत्ताईसवें राज्‍य के रूप में उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) नाम से इस प्रदेश का जन्‍म हुआ , इससे पहले ये उत्तर प्रदेश का ही एक हिस्‍सा था। यह 13 जिलों में विभक्त है, 7 गढ़वाल में - देहरादून , उत्तरकाशी , पौड़ी , टेहरी (अब नई टेहरी) , चमोली , रूद्रप्रयाग और हरिद्वार और 6 कुमाऊँ में अल्‍मोड़ा , रानीखेत , पिथौरागढ़ , चम्‍पावत , बागेश्‍वर और उधम सिंह नगर । यह पूर्व में नेपाल , उत्तर में चीन , पश्‍चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि धरातल पर यदि कहीं समाजवाद दिखाई देता है तो वह इस क्षेत्र में देखने को मिलता है इसलिए यहाँ की संस्कृति संसार की श्रेष्ठ संस्कृतियों में मानी जाती है। इस भूमि की पवित्रता एवं प्राकृतिक विशेषता के कारण यहाँ के निवासीयों में भी इसका प्रभाव परिलक्षित होता है अर्थात् प्रकृति प्रदत शिक्षण द्वारा यहाँ के निवासी ईमानदार, सत्यवादी, शांत स्वभाव, निश्छल, कर्मशील एवं ईश्वर प्रेमी होते हैं। उत्तराखंड का इतिहास एंव परिचय भारत का शीर्ष भाग उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है। जिसका उल्लेख वेद, पुराणों विशेषकर केदारखण्ड में पाया जाता है। देवताओं की आत्मा हिमालय के मध्य भाग में गढ़वाल अपने ऐतिहासिक एंव सांस्कृतिक महत्व तथा प्राकृतिक सौंदर्य में अद्भुत है। 55845 कि. मी. में फैला उत्तराखंड जहाँ 80 लाख जनसंख्या निवास करती है, उत्तरांचल दो शब्‍दों के मिलाने से मिला है - उत्तर यानि कि नोर्थ और अंचल यानि कि रीजन , भारत के उत्तर की तरफ फैला प्रान्‍त यानि कि उत्तरांचल। इसी उत्तराखंड में आदिगुरू शंकाराचार्य ने स्वर्गीय आभा वाले बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चारों धामों की स्थापना करके भारतीय संस्कृति के समन्वय की अद्भुत मिसाल कायम की है। ये चारों धाम की स्थापना करके भारत वासियों के ही नहीं विश्व जनमास के श्रद्धा विश्वास के धर्म स्थल हैं। यहाँ भिन्न- भिन्न जातियों के पशु-पक्षी, छोटी- छोटी नदीयां, पनी के प्राकृतिक झरने, बाँज, बुरॉस, देवदार के हरे पेड़, उँची- उँची चोटीयों पर सिद्धपीठ, प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर शहर, हरिद्वार, ऋषिकेश जौसे धार्मिक नगर, माँ गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियाँ अपनी कल-कल ध्वनी करती हुई युगों से लाखों जीवों की प्राण रक्षा का भार उठाते हुए सम्पूर्ण मलिनताओं को धोते हुए अंतिम गंतव्य तक पंहुचती हैं। हिमालय पर्वत की बर्फ से अच्छादित चोटियाँ तथा ऋतुओं के परिवर्तन के अद्वितीय सौंदर्य को देखकर मानव, देवता, किन्नर, गंधर्व ही नहीं पशु-पक्षी भी यही अभिलाषा रखते हैं कि वे अपना निवास इसी पवित्र धरती को बनाएं। महान संतों, देवताओं, ऋषियों, मुनियों, योगीयों, तपस्वीयों, ईश्वरीय अवतारों की तपो स्थली होने के कारण यह भूमि देव भूमि के नाम से विख्यात है। इस भूमि की पवित्रता एवं प्राकृतिक विशेषता के कारण यहाँ के निवासीयों में भी इसका प्रभाव परिलक्षित होता है अर्थात् प्रकृति प्रदत शिक्षण द्वारा यहाँ के निवासी ईमानदार, सत्यवादी, शांत स्वभाव, निश्छल, कर्मशील एवं ईश्वर प्रेमी होते हैं। इन गुणों को किसी के द्वारा सिखाने की आवश्यकता नहीं होती है अपितु वे स्वाभाविक रूप से उक्त गुणों के धनी होते हैं। उत्तराखंड का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मानव जाति का। यहाँ कई शिलालेख, ताम्रपत्र व प्राचीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। जिससे गढ़वाल की प्राचीनता का पता चलता है। गोपेश्नर में शिव-मंदिर में एक शिला पर लिखे गये लेख से ज्ञात होता है कि कई सौ वर्ष से यात्रियों का आवागमन इस क्षेत्र में होता आ रहा है। मार्कण्डेय पुराण, शिव पुराण, मेघदूत व रघुवंश महाकाव्य में यहाँ की सभ्यता व संस्कृति का वर्णन हुआ है। बौधकाल, मौर्यकाल व अशोक के समय के ताम्रपत्र भी यहाँ मिले हैं। इस भूमी का प्राचीन ग्रन्थों में देवभूमि या स्वर्गद्वार के रूप में वर्णन किया गया है। पवित्र गंगा हरिद्वार में मैदान को छूती है। प्राचीन धर्म ग्रन्थों में वर्णित यही मायापुर है। गंगा यहाँ भौतिक जगत में उतरती है। इससे पहले वह सुर-नदी देवभूमि में विचरण करती है। इस भूमी में हर रूप शिव भी वास करते हैं, तो हरि रूप में बद्रीनारायण भी। माँ गंगा का यह उदगम क्षेत्र उस देव संस्कृति का वास्तविक क्रिड़ा क्षेत्र रहा है जो पौराणिक आख्याओं के रूप में आज भी धर्म-परायण जनता के मानस में विश्वास एवं आस्था के रूप में जीवित हैं। उत्तराखंड की प्राचीन जातियों में किरात, यक्ष, गंधर्व, नाग, खस, नाथ आदी जातियों का विशेष उल्लेख मिलता है। आर्यों की एक श्रेणी गढ़वाल में आई थी जो खस (खसिया) कहलाई। यहाँ की कोल भील, जो जातियाँ थी कालांतर में स्वतंत्रता प्राप्ति के बात हरिजन कहलाई। देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग यात्री के रूप में बद्रीनारायण के दर्शन के लिए आये उनमें से कई लोग यहाँ बस गये और उत्तराखंड को अपना स्थायी निवास बना दिया। ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी यहाँ रहने लगे। मुख्य रूप से इस क्षेत्र में ब्राह्मण एवं क्षत्रीय जाति के लोगों का निवास अधिक है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हरिद्वार, उधमसिंह नगर एवं कुछ अन्य क्षेत्रों को मिलाने से अन्य जाती के लोगों में अब बढोत्री हो गई है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि धरातल पर यदि कहीं समाजवाद दिखाई देता है तो वह इस क्षेत्र में देखने को मिलता है इसलिए यहाँ की संस्कृति संसार की श्रेष्ठ संस्कृतियों में मानी जाती है। सातवीं सदी के गढ़वाल का एतिहासिक विवरण प्राप्त है। 688 ई0 के आसपास चाँदपुर, गढ़ी (वर्तमान चमोली जिले में कर्णप्रयाग से 13 मील पूर्व ) में राजा भानुप्रताप का राज्य था। उसकी दो कन्यायें थी। प्रथम कन्या का विवाह कुमाऊं के राजकुमार राजपाल से हुआ तथा छोटी का विवाह धारा नगरी के राजकुमार कनकपाल से हुआ इसी का वंश आगे बढा। महाराजा कनकपाल का समय कनकपाल ने 756 ई0 तक चाँदपुर गढ़ी में राज किया। कनकपाल की 37 वीं पीढ़ी में महाराजा अजयपाल का जन्म हुआ। इस लम्बे अंतराल में कोई शक्तिशाली राजा नहीं हुआ। गढ़वाल छोटे-छोटे ठाकुरी गढ़ों में बंटा था, जो आपस में लड़ते रहते थे। कुमाऊं के कत्यूरी शासक भी आक्रमण करते रहते थे। कत्यूरियों मे ज्योतिष्पुर (वर्तमान जोशीमठ) तक अधिकार कर लिया था। महाराजा अजयपाल का समय राजा कनकपाल की 37 वीं पीढ़ी में 1500 ई0 के महाराजा अजयपाल नाम के प्रतापी राजा हुए। गढ़वाल राज्य की स्थापना का महान श्रेय इन्ही को है। इन्होने 52 छोटे-छोटे ठाकुरी गढ़ों को जीतकर एक शक्तिशाली गढ़वाल का अर्थ है, गढ़­­ = किला, वाल = वाला अर्थात किलों का समुह। कुमाऊं के राजा कीर्तिचन्द व कत्यूरियों के आक्रमण से त्रस्त होकर महाराजा अजयपाल ने 1508 ई0 के आसपास अपनी राजधानी चाँदपुर गढ़ी से देवलगढ़ तथा 1512 ई0 में देवलगढ़ से श्रीनगर में स्थापित की। इनके शासनकाल में गढ़वाल की सामाजिक, राजनैतिक व धार्मिक उन्नति हुई। शाह की उपाधिः महाराजा अजयपाल की तीसरी पीढ़ी में बलभद्र हुए। ये दिल्ली के शंहशाह अकबर के समकालीन थे, कहते हैं कि एक बार नजीबाबाद के निकट शिकार खेलते समय बलभद्र ने शेर के आक्रमण से दिल्ली के शंहशाह की रक्षा की। इसलिए उन्हे शाह की उपाधि प्राप्त हुई, तबसे 1948 तक गढ़वाल के राजाओं के साथ शाह की उपाधि जुड़ी रही। गढ़वाल का विभाजनः -1803 में महाराजा प्रद्दुम्न शाह संपूर्ण गढ़वाल के अंतिम नरेश थे जिनकी राजधानी श्रीनगर थी। गोरखों के आक्रमण और संधि-प्रस्ताव के आधार पर प्रति वर्ष 25000 /- रूपये कर के रूप में गोरखों को देने के कारण राज्य की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई थी। इसी अवसर का लाभ उठाकर गोरखों ने दूसरी बार गढ़वाल पर आक्रमण किया और पूरे गढ़वाल को तहस-नहस कर डाला। राजा प्रद्दुम्न शाह देहरादून के खुड़ब़ड़ा के युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और गढ़वाल में गोरखों का शासन हो गया। इसके साथ ही गढ़वाल दो भागों में विभाजित हो गया। गढ़वाल रियासत (टिहरी गढ़वाल)- महाराजा प्रद्दुम्न शाह की मृत्यू के बाद इनके 20 वर्षिय पुत्र सुदर्शन शाह इनके उत्तराधिकारी बने। सुदर्शन शाह ने बड़े संघर्ष और ब्रिटिश शासन की सहयाता से, जनरल जिलेस्पी और जनरल फ्रेजर के युद्ध संचालन के बल पर गढ़वाल को गोरखों की अधीनता से मुक्त करवाया। इस सहयाता के बदले अंग्रेजों ने अलकनंदा व मंदाकिनी के पूर्व दिशा का सम्पूर्ण भाग ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया, जिससे यह क्षेत्र ब्रिटिश गढ़वाल कहलाने लगा और पौड़ी इसकी राजधानी बनी। टिहरी गढ़वाल- महाराजा सुदर्शन शाह ने भगिरथी और भिलंगना के सगंम पर अपनी राजधानी बसाई, जिसका नाम टिहरी रखा। राजा सुदर्शन शाह के पश्चात क्रमशः भवानी शाह ( 1859-72), प्रताप शाह (1872-87), कीर्ति शाह (1892-1913), नरेन्द्र शाह (1916-46) टिहरी रीयासत की राजगद्दी पर बैठे। महाराजा प्रताप शाह तथा कीर्ति शाह की मृत्यु के समय उत्तराधिकारियों के नबालिग होने के कारण तत्कालीन राजमाताओं ने क्रमशः राजमाता गुलेरिया तथा राजमाता नैपालिया ने अंग्रेज रिजेडेन्टों की देख-रेख में (1887-92) तथा (1913-1916) तक शासन का भार संभाला। रियासत के अंतिम राजा मानवेन्द्र शाह के समय सन् 1949 में रियासत भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गई। द्वारा जय सिंह नेगी उत्तराचंल के जिलेः उत्तराचंल को 13 जिलों में विभक्त किया गया है 7 गढ़वाल में - देहरादून , उत्तरकाशी , पौड़ी , टेहरी (अब नई टेहरी) , चमोली , रूद्रप्रयाग और हरिद्वार और 6 कुमाऊँ में अल्‍मोड़ा , रानीखेत , पिथौरागढ़ , चम्‍पावत , बागेश्‍वर और उधम सिंह नगर । पौड़ी गढ़वाल यह कान्डोंलिया पर्वत के उतर तथा समुद्रतल से 5950 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहां से मुख्य शहर कोटद्वार, पाबौ, पैठाणी, थैलीसैण, घुमाकोट, श्रीनगर, दुगड्डा, सतपुली इत्यादी हैं। ब्रिटीश शासनकाल में यहाँ राज्सव इकट्ठा करने का मुख्य केन्द्र था। यहाँ पं. गोविन्द वल्लभ पंत इंजिनियरिंग कालेज भी है। इतिहासकारों के अनुसार गढ़वाल में कभी 52 गढ़ थे जो गढ़वाल के पंवार पाल और शाह शासकों ने समय समय पर बनाये थे। इनमें से अधिकांश पौड़ी में आते हैं। यहाँ से 2 कि. मी. की दूरी पर स्थित क्युंकलेश्वर महादेव पौड़ी का मुख्य दर्शनीय स्थल है जो कि 8वीं शताब्दी में निर्मित भगवान शिव का मंदिर है। यंहा से श्रीनगर घाटी और हिमालय का मनोरम दृष्य दिखाई देता है। यहाँ पर कण्डोलिया देवता और नाग देवता के मंदिर भी धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं। यहाँ से ज्वालपा देवी का मंदिर शहर से 34 कि. मी. दूर है। यहाँ प्रतिवर्ष नवरात्रियों के अवसर पर दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए आते हैं। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार 100 कि. मी. और ऋषिकेश से 142 कि. मी.की दूरी पर स्थित है। उत्तराचंल की प्रमख नदियां गंगा, यमुना, काली, रामगंगा, भागीरथी, अलकनन्दा, कोसी, गोमती, टौंस, मंदाकिनी, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार(पू) पिंडर नयार (प) आदी प्रमुख नदीयां हैं। उत्तराचंल के प्रमुख हिमशिखर गंगोत्री (6614), दूनगिरि (7066), बंदरपूछ (6315), केदारनाथ (6490), चौखंवा (7138), कामेत (7756), सतोपंथ (7075), नीलकंठ (5696), नंदा देवी (7817), गोरी पर्वत (6250), हाथी पर्वत (6727), नंदा धुंटी (6309), नंदा कोट (6861) देव वन (6853), माना (7273), मृगथनी (6855), पंचाचूली (6905), गुनी (6179), यूंगटागट (6945)। उत्तराचंल के प्रमुख ग्लेशियर 1. गंगोत्री 2. यमुनोत्री 3. पिण्डर 4. खतलिगं 5. मिलम 6. जौलिंकांग, 7. सुन्दर ढूंगा इत्यादि। उत्तराचंल की प्रमुख झीलें (ताल) गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नंदीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुंमाऊँ क्षेत्र) इत्यादि। उत्तराचंल के प्रमुख दर्रे बरास- 5365मी.,(उत्तरकाशी), माणा- 6608मी. (चमोली), नोती-5300मी. (चमोली), बोल्छाधुरा-5353मी.,(पिथौरागड़), कुरंगी-वुरंगी-5564 मी.( पिथौरागड़), लोवेपुरा-5564मी. (पिथौरागड़), लमप्याधुरा-5553 मी. (पिथौरागड़), लिपुलेश-5129 मी. (पिथौरागड़), उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा। उत्तराचंल के वन अभ्यारण्य 1. गोविन्द वन जीव विहार 2. केदारनाथ वन्य जीव विहार 3. अस्कोट जीव विहार 4. सोना नदी वन्य जीव विहार 5. विनसर वन्य जीव विहार

Jay Dev Bhomi :- उत्तराखंड

बस सारी रात उसकी यादें आएगी


बस एक हाँ के इंतज़ार में रात यूँ ही गुज़र जायेगी,अब तोः बस उलझन है साथ मेरे नींद कहाँ आएगी,सुबह की किरण न जाने कोनसा संदेश लाएगी,रिमझिम सी गुनगुनायेगी या प्यास अधूरी रह जायेगी
अब तोः बस सारी रात उसकी यादें आएगी,हर गुज़रते पल में उसकी बातें आएगी,उसकी शरारतें मेरे चेहरे मुस्कराहट लाएगी,मेरी आँखें उसकी झील सी आंखों में डूब जायेगी,उसकी बातें किसी मीठी धुन की तरह कानो में घुल जायेगी,उसकी मासूम हँसी सुकूं की तरह दिल में उतर जायेगी,मेरी साँसों में वो बनके खुशबु बस जायेगी,मेरी नींद में भी ख्वाब बनके वो आएगी,जो आया मोहोब्बत का पैगाम तोः यह ज़िन्दगी संवर जायेगी,ज़िन्दगी के इस सफर को एक मंजिल मिल जायेगी,अगर हुई रुसवाई तोः ज़िन्दगी कुछ ऐसी हो जायेगी,जिंदा रहूँगा में पर ज़िन्दगी ख़तम हो जायेगी,अब तोः खुदा जाने या मेरा साजन की मेरी मोहोब्बत क्या रंग लाएगी,है उम्मीद की चाँद सितारों सी आसमान में मुकम्मल हो जायेगी,जो हुई सच्ची तोः मोहोब्बत मेरी कुछ ऐसा असर कर जायेगी,मेरी प्यार भरी "गुजारिशें" उन्हें कुबूल हो जायेगी.........

जब वो शरारत भरी आंखों से मुझे छेड़ जाया करती है,


वो अक्सर मद्धम मद्धम सा मुस्कुराया करती है,शरारत भरी आंखों से मुझे छेड़ जाया करती है,सताके मुझे जब वो अपना प्यार जताया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,देख के मुझे वो अक्सर मुस्कुराया करती है,झील सी गहरी आंखों से कुछ कह जाया करती है,हँसते हँसते जब वो झूठ मूठ का रूठ जाया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,जब कभी वो उदास हो जाया करती है,अपनी आंखों से मोती बरसाया करती है,फिर सुनके मेरी कोई बेवकूफी वो हंस जाया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,कभी करती है बातें बड़ों सी और कभी बच्ची बन जाया करती है,अपनी अदाओं से वो अक्सर मुझे रिझाया करती है,आंखों में छुपाके मोहोब्बत जब लबों से इंकार कर जाया करती है,न जाने क्यूँ मुझे उससे मोहोब्बत हो जाया करती है,

मुस्कुराये जब वो तोः सारी कायनात हंसा करती है


मुस्कुराये जब वो तोः सारी कायनात हंसा करती है,पड़े उसके कदम जहाँ वो जगह जन्नत हुआ करती है,दिल के सागर में एहसासों की एक लहर उठा करती है,मेरी बदमाशियों पे जब वो "उफ़" कहा करती है
जो मुड़के देख ले बस एक नज़र तोः ज़िन्दगी थमा करती है,उसके हर कदम की आहट पे ऋतुएं बदला करती है,मेरे बिखरे से लफ्जों की ग़ज़ल बना करती है,सुनके मेरे काफिये जब वो "उफ़" कहा करती है,
जब भी मिल जाए वो तोः खुशियाँ इनायत करती है,अपनी प्यारी बातों से मन को छुआ करती है,मेरी ज़िन्दगी की रहगुज़र को मंजिल मिला करती है,सुनके मेरी दास्तान-ए-ज़िन्दगी जब वो "उफ़" कहा करती है,खुदा ही जाने यह कैसी जुस्तुजू साथ मेरे हुआ करती है,जितना रहता हूँ दूर उससे उतना ही वो मेरे करीब हुआ करती है,यह कैसी कशिश उसके लफ्जों में हुआ करती है,ज़िन्दगी से होती है मोहोब्बत जब वो "उफ़" कहा करती है.