Saturday, July 17, 2010


हरियाला सावन ढोल बजाता आया हरियाला सावन ढोल बजाता आया धिन तक तक मन के मोर नचाता आया मिट्टी में जान जगाता आया को: धरती पहनेगी हरी चुनरिया बनके दुल्हनिया .......हरियाला सावन ढोल बजाता आया हरियाला सावन ढोल बजाता आया...........

Thursday, July 15, 2010


"आज फिर से मुझे (हिमांशु) अपना बचपन याद आया"

आज सुबह सुबह जेसे हि में (हिमांशु बिष्ट ) उठा गाव से माँ का फोन आ गया की आज से सावन का महीना सुरु हो गया है,
माँ मुझसे बोली की जल्दी उठ जा और नहा धो कर पूजा पाठ कर ले ..और सायद घर पे टीवी चल रहा था और टीवी में ये गाना चल रहा था, " सावन का महिना पवन करे शोर मोरा जियरा ऐसे नाचे जैसे नाचे मोर " तो यह पुराना गाना सुनकर तबियत खुश हो गई की सावन तो आ गया है . पर तबके सावन और अबके सावन के विषय में सोचने को मजबूर हो गया की तबके सावनो में जोरदार बारिश होती थी और तेज हवाए चलती थी और सररर सररर सन्न्न करती हुई खूब शोर किया करती थी . तेज बारिश के बीच झूला झूलने का आनंद ही कुछ और होता था . समय बदलने के साथ साथ लगता है की सावन भी बदल गया है न तेज जोरदार हवाए चलती है और न जोरदार बारिश होती है . अब तो ऐसा आभास होता है की सावन बारिश के वगैर सूना सूना सा है . भविष्य में सावन के महीने में हरियाली का वातावरण बनाने के लिए और जियरा को खुश करने के लिए और मनवा को मोर जैसे नचाने के लिए कहीं कृत्रिम बारिश का सहारा न लेना पड़े.....
अब तो अपने पहाड़ से दूर होकर ..... मुझे वो दिन याद आते है जब सावन के महीने में वो मुसलाधार बारिस , नदी अपनी चरम सीमा पे और बदलो की गर्जना , थर-थर काप जाता था में ..... थोड़ी देर बाद जब धुप निकलती तो दोस्तों के साथ खेलने चला जाता था ... गुल्ली डंडा । तब हमारा सबसे अछा खेल था.... लेकिन अब कहा ... आज मुझे फिर से अपना बचपन याद आ गया ... माँ मुझे भट (सोयाबीन) भूनकर देती ... मेरी जेब में भर कर देती ... आगे लिखने में असमर्थ हूँ! "अब मेरी आंखे नम हो चुकी है,,,,..... आज फिर से मुझे अपना बचपन और माँ की वो यादें त
जा हो गयी".......
हिमांशु बिष्ट

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Tuesday, July 13, 2010


प्राकृतिक सुंदरता से ओतप्रोत औली भारत (उत्तराखंड) का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। सूर्य की किरणें जब यहाँ की पर्वतों की श्रंखला पर पड़ती हैं तो उसकी चमक देखते ही बनती है। बर्फ से खेलने का आनंद कुछ और ही है। दिसम्बर से लेकर मार्च तक प्रकृति अपने सुड़ौल रूप में रहती है। नीले गगन के नीचे हरियाली बर्फ से ढँकी हुई रहती है

बद्रीनाथ से तीस किलोमीटर पहले आता है जोशीमठ। जोशीमठ से सोलह किलोमीटर दूर है भारत का सबसे अच्छा स्की रिजोर्ट औली। औली की ढलानो को भारत ही नहीं दुनिया की सबसे अच्छी ढलानों में शुमार किया जाता है। जोशीमठ दिल्ली से पाँच सौ किलोमीटर और हरिद्वार से तीन सौ किलोमीटर दूर है।

यहां नवम्बर से मार्च तक स्की का मजा लिया जा सकता है। औली बर्फ पिघलने के बाद भी इतना ही खुबसूरत रहता है। गर्मी के मौसम में यहां ढलाने घास के ढक जाती हैं। इन घास के मैदानों को गढवाल में बुग्याल कहा जाता है।

जोशीमठ से यहां तक जाने के लिए सडक तो है ही आप चाहें तो रोप वे से भी जा सकते हैं। इस चार किलोमीटर लम्बे रोप वे से यहां की खूबसूरती को आसानी से देखा जा सकता है। औली की तस्वारो में देखिये इसकी दिव्य सुन्दरता को..............

प्राकृतिक सुंदरता से ओतप्रोत औली भारत (उत्तराखंड) का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। सूर्य की किरणें जब यहाँ की पर्वतों की श्रंखला पर पड़ती हैं तो उसकी चमक देखते ही बनती है। बर्फ से खेलने का आनंद कुछ और ही है। दिसम्बर से लेकर मार्च तक प्रकृति अपने सुड़ौल रूप में रहती है। नीले गगन के नीचे हरियाली बर्फ से ढँकी हुई रहती है

यहां पर कपास जैसी मुलायम बर्फ पड़ती है और पर्यटक खासकर बच्चे इस बर्फ में खूब खेलते हैं। औली में प्रकृति ने अपने सौन्दर्य को खुल कर बिखेरा है। बर्फ से ढकी चोटियों और ढलानों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। स्थानीय लोग जोशीमठ और औली के बीच केबल कार स्थापित करना चाहते हैं। जिससे आने-जाने में सुविधा हो और समय की भी बचत हो। इस केबल कार को बलतु और देवदार के जंगलो के ऊपर से बनाया जाएगा। यात्रा करते समय आपको गहरी ढ़लानों और ऊंची चढाई चढ़नी पड़तीं है। यहां पर सबसे गहरी ढलान 1,640 फुट पर और सबसे ऊंची चढा़ई 2,620 फुट पर है। पैदल यात्रा के अलावा यहां पर चेयर लिफ्ट का विकल्प भी है।


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मूल मूल के तू हसनी छे हे निमो की दांडी.....

कन छीन मेरा पहाड़ का हाल या
केन नि जाडी ....

जरा त्वे ता बातो निमो की दांडी की क्या ची होनु मेरा
पहाड़ माँ ....

में ता छो आयु नोकरी कन अपना पहाड़ ते छोड़की......

मूल
मूल के तू हसनी छे हे निमो की दांडी.......

Monday, July 12, 2010

नयु-नयु ब्यो च मीठी-मिठि छुईं लगौंला
पत्नी अपनेपति से कहतीहै की अजीसुनिये! आप इतनी जल्दीबाजी मतकरिये। हमारी नयी-नयी शादी है, हम धीरे-धीरे मीठी मीठी बातें करतेहुए जायेंगे। पति कहता है कि अजीनहीं तुम तेज तेज चलो, हम लोगजल्दी-जल्दी जायेंगे और इन बातोंको हम घर पर पहुंच कर आराम सेकरेंगे।

पत्नी बहाना बनाते हुए कहती है किअब तुम ही बताओ मैं तेज तेज कैसेचल पाउंगी, मेरे इतने ऊंचे सैण्डलहैं, यह चढ़ाई वाला ऊंचा रास्ता है, और गर्मी के दिन है। चलो ऐसाकरते हैं कि हम दोनों लोग किसीपेड़ की छाया में बैठ जाते हैं, औरफिर मीठी मीठी बातें करते हैंआखिर हमारी नयी नयी शादी हुईहै।
दोनों की नयी- नयी शादी हुईलड़की सैंडल पहन के पहाड़ी रश्तोंपर चलने में असमर्थ है
..
भावार्थ - पति समझाते हुए कहताहै कि अब तुम ज्यादा फैशन कीबातें ना करो, जल्दी-जल्दी चलो, यदि सैण्डल से परेशानी हो रही हैतो सैण्डल अपने बटुए में रख लोऔर नंगे पैर ही चलो, अगर हमलोग जल्दी घर नहीं पहुंचे तो यहींभूखे मर जायेंगे, इसलियेजल्दी-जल्दी चलते हैं और इनबातों को घर पर पहुंच कर आरामसे करेंगे।

पत्नी झूठा गुस्सा करते हुए कहती हैकि तुम तो सिर्फ बात ही करने वालेलगते हो, तुम बहुत बड़े कन्जूसहो,मुझे पैदल वाले रास्ते से ले आयेइससे तो अच्छा होता कि हमआराम से गाड़ी की पिछली सीट परबैठ कर यात्रा करते, अब चलो आओथोड़ा नीचे बैठो, और फिर मीठीमीठी बातें करते हैं आखिर हमारीनयी नयी शादी हुई है।

पति फिर समझाता है कि कलपरसों से तुम्हें खेतों पर काम करनेजाना होगा, तुम अपने इन कोमलहाथ पैरों से कैसे खा पाओगीगुजर-बसर करोगी), जब इस भरीजवानी में ही तुम्हारे यह हाल है तोपता नहीं बुढापे में तुम्हारा क्याहोगा? अब तुम तेज तेज चलो, हमलोग जल्दी-जल्दी जायेंगे और इनबातों को हम घर पर पहुंच करआराम से करेंगे।
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Bisht G
Contt:- bishtb50@gmail.com