Saturday, July 24, 2010

रामी बौराणी
पहाङी समाज में नारी कीभूमिका पुरुषोंसे अधिकमहत्वपूर्ण है. खेतों मेंकमरतोङमेहनतकरना, जंगलोंमें पशुओं केचारे के लियेभटकना औरघर में बच्चोंका पालनपोषन करनालगभग हरपहाङी स्त्री के जीवनचक्र में शामिलहै. यह संघर्षपूर्ण जिन्दगी कुछआसान लगती, अगर हर औरत कोअपने पति का साथ मिलता. लेकिनपहाङ के अधिकांश पुरुष रोजी-रोटीकी व्यवस्था के लिये अपने परिवारसे दूर मैदानों में जाकर रहते हैं. कईदशकों से चली रही इस परिपाटीको अभी भी विराम नहीं लगाहै.पति के इन्तजार में अपने यौवनके दिन गुजार देने वाली पहाङ कीइन स्त्रियों को लोककथाओं में भीस्थान मिला है.

रामी (रामी बौराणी*) नाम कीएक स्त्री एक गांव में अपनी सास केसाथ रहती थी, उसके ससुर कादेहान्त हो गया था और पति बीरूदेश की सीमा पर दुश्मन सेमुकाबला करता रहा. दिन, सप्ताहऔर महीने बीते, इस तरह 12 सालगुजर गये. बारह साल का यहलम्बा समय रामी ने जंगलों औरखेतों में काम करते हुए, एक-एकदिन बेसब्री से अपने पति काइन्तजार करते हुए बङी मुसीबत सेव्यतीत किया.(*रामी बौराणी- बौराणी शब्दबहूरानीका अपभ्रंशहै)


बारह साल के बाद जब बीरू लौटातो उसने एक जोगी का वेष धारणकिया और गांव में प्रवेश किया. उसका इरादा अपनी स्त्री के पतिव्रतकी परीक्षा लेने का था. खेतों मेंकाम करती हुई अपनी पत्नी को देखकर जोगी रूपी बीरु बोला-


रामी बौराणी 01


बाटा गौङाइ कख तेरो गौं ?
बोल बौराणि क्या तेरो नौं ?
घाम दुपरि अब होइ ऐगे, एकुलिनारि तू खेतों मां रैगे....

जोगी- खेत गोङने वाली हे रूपमती! तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारा गांवकौन सा है? ऐसी भरी दुपहरी मेंतुम अकेले खेतों में काम कर रहीहो.

रामी- हे बटोही जोगी! तू यहजानकर क्या करेगा? लम्बे समयसे परदेश में रह रहे मेरे पतिदेव कीकोई खबर नहीं है, तू अगर सच्चाजोगी है तो यह बता कि वो कबवापस आयेंगे?

जोगी- मैं एक सिद्ध जोगी हूँ, तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर दूंगा. पहले तुम अपना पता बताओ.

रामी- मैं रावतों की बेटी हूँ. मेरानाम रामी है. पाली के सेठों की बहूहूँ , मेरे श्वसुर जी का देहान्त होगया है सास घर पर हैं. मेरे पतिमेरी कम उम्र में ही मुझे छोङ करपरदेश काम करने गये थे.12 सालसे उनकी कोई कुशल-क्षेम नहींमिली.

जोगी रूपी बीरु ने रामी की परीक्षालेनी चाही.

जोगी- अरे ऐसे पति का क्या मोहकरना जिसने इतने लम्बे समयतक तुम्हारी कोई खोज-खबर नहींली. आओ तुम और मैं खेत केकिनारे बुँरांश के पेङ की छांव में बैठकर बातें करेंगे.

रामी- हे जोगी तू कपटी है तेरे मनमें खोट है. तू कैसी बातें कर रहा है? अब ऐसी बात मत दुहराना.

जोगी- मैं सही कह रहा हूँ, तुमनेअपनी यौवनावस्था के महत्वपूर्णदिन तो उसके इन्तजार में व्यर्थगुजार दिये, साथ बैठ कर बातेंकरने में क्या बुराई है?


रामी बौराणी 02


देवतों को चौरों, माया को मैं भूखोंछौं
परदेSSशि भौंरों, रंगिलो जोगि छों
सिन्दूर कि डब्बि, सिन्दूर कि डब्बि,
ग्यान ध्यान भुलि जौंलो, त्वै नेभूलो कब्बि
परदेSSशि भौंरों, रंगिलो जोगि छों

रामी- धूर्त! तू अपनी बहनों कोअपने साथ बैठा. मैं पतिव्रता नारीहूँ, मुझे कमजोर समझने की भूलमत कर. अब चुपचाप अपना रास्तादेख वरना मेरे मुँह से बहुत गन्दीगालियां सुनने को मिलेंगी.

ऐसी बातें सुन कर जोगी आगे बढकर गांव में पहुँचा. उसने दूर से हीअपना घर देखा तो उसकी आंखें भरआयी. उसकी माँ आंगन की सफाईकर रही थी. इस लम्बे अन्तराल मेंवैधव्य बेटे के शोक से माँ के चेहरेपर वृद्धावस्था हावी हो गयी थी. जोगी रूप में ही बीरु माँ के पासपहुँचा और भिक्षा के लिये पुकारलगायी.“अलख-निरंजन


रामी बौराणी 03



कागज पत्री सबनां बांचे, करम नांबांचे कै ना
धर्म का सच्चा जग वाला ते, अमरजगत में ह्वै ना.
हो माता जोगि तै भिक्षा दे दे, तेरोसवाल बतालो....

वृद्ध आंखें अपने पुत्र को पहचाननहीं पाई. माँ घर के अन्दर से कुछअनाज निकाल कर जोगी को देने केलिये लाई.

जोगी- हे माता! ये अन्न-धन मेरेकिस काम का है? मैं दो दिन सेभूखा हूँ,मुझे खाना बना करखिलाओ. यही मेरी भिक्षा होगी.

तब तक रामी भी खेतों का कामखतम करके घर वापस आयी. उसजोगी को अपने घर के आंगन मेंबैठा देख कर रामी को गुस्सा गया.

रामी- अरे कपटी जोगी! तू मेरे घरतक भी पहुँच गया. चल यहाँ सेभाग जा वरना.....

आंगन में शोर सुन कर रामी कीसास बाहर आयी. रामी अब भीजोगी पर बरस रही थी.

सास- बहू! तू ये क्या कर रही है? घर पर आये अतिथि से क्या ऐसेबात की जाती है? चल तू अन्दरजा.

रामी- आप इस कपटी का असलीरूप नहीं पहचानती. यह साधू केवेश में एक कुटिल आदमी है.

सास- तू अन्दर जा कर खाना बना. हे जोगी जी! आप इसकी बात काबुरा माने, पति के वियोग मेंइसका दिमाग खराब हो गया है.

रामी ने अन्दर जा कर खानाबनाया और उसकी सास ने मालू केपत्ते में रख कर खाना साधु कोपरोसा.


रामी बौराणी 04


मालू का पात मां धरि भात, इन
खाणा मां नि लौन्दु हाथ...
रामि का स्वामि की थालि मांज, ल्याला भात में तब खोलों भात..

जोगी- ये क्या? मुझे क्या तुमने
ऐरा-गैरा समझ रखा है? मैं पत्ते में दिये गये खाने को तो हाथ भी नहीं लगाउंगा. मुझे रामी के पति बीरु की थाली में खाना परोसो.

यह सुनकर रामी अपना आपा खो
बैठी.

रामी- नीच आदमी! अब तो तू
निर्लज्जता पर उतर आया है. मै अपने पति की थाली में तुझे खाना क्यों दूंगी? तेरे जैसे जोगी हजारों देखे हैं. तू अपना झोला पकङ कर जाता है या मैं ही इन्हें उठा कर फेंक दूँ?

ऐसे कठोर वचन बोलते हुए उस
पतिव्रता नारी ने सत् का स्मरण किया. रामी के सतीत्व की शक्ति से जोगी का पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा और उसके चेहरे पर पसीना छलक गया. वह झट से अपनी माँ के चरणों में जा गिरा. जोगी का चोला उतारता हुआ बोला-

बीरु- अरे माँ! मुझे पहचानो! मैं
तुम्हारा बेटा बीरू हूँ. माँ!! देखो मैं वापस गया.

बेटे को अप्रत्याशित तरीके से इतने
सालों बाद अपने सामने देख कर माँ हक्की-बक्की रह गई. उसने बीरु को झट अपने गले से लगा लिया.बुढिया ने रामी को बाहर बुलाने के लिये आवाज दी.

रामि देख तू कख रैगे, बेटा
हरच्यूं मेरो घर ऐगे

रामी भी अपने पति को देखकर
भौंचक रह गयी. उसकी खुशी का ठिकाना रहा, आज उसकी वर्षों की तपस्या का फल मिल गया था.इस तरह रामी ने एक सच्ची भारतीय नारी के पतिव्रत, त्याग समर्पण की एक अद्वितीय मिसाल कायम की


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Bisht G
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Thursday, July 22, 2010


"माँ के नाम"
कहते है माँ तेरी सुरत भगवान के जैसी होती है सूखे में रखती है मुजको खुद गीले में सोती है तेरा ये कर्ज दूध का में कभी उतार न पाऊंगा चोट जरा भी लगती मुझको आँखे तेरी रोती हैं तेरी जिव्हा से बोलता हु, चलता हु तेरे कदमो से मेरे दिल में तेरी धड़कन है, तू नैनो कि ज्योति है घर खाने कि कोई चीज तू सबसे बाद में खाती है समझो तो गहरे हैं मायने, वर्ना बात बहुत ही छोटी है जिस पल तेरा दिल दुखाया इस नालायक बेटे ने तेरी आँख से गिरा है जो हर इक आंसू मोती है कोख में अपने खून से सींचा, जब गोद में आया दूध पिलाया जीवन से क्या पाया तूने तू तो सदा ही खोती है में मूरख अज्ञानी तेरा मन समझ नहीं पाता हु में नफरत कि बंजर भूमि , तू बीज प्यार के बोती है तू प्रेम कि बहती गंगा तेरा रूप क्या समझेगा कोई तू ही मरियम तू फातिमा तू कभी यशोदा होती है सच कहते है तेरी सूरत भगवान् के जैसी होती है सूखे में रखती है मुजको खुद गीले में सोती है!
-- Bisht G
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ज़माने के साथ बदलता पहाड़ी संगीत
आज ज़माने के साथ बदलता जा रहा है पहाड़ी संगीत. कई इनसे गीत संगीत सुनाई दे रहा है जो अगर बोली छोड़ दे तो कहीं से भी पहाड़ी अस्तित्व नहीं दिखाई देता. आजकल गीतों में मौलिक आवाज़ की जगह एक पतली एवं फटी आवाज़ सुनाई देती है जो की हर एल्बम में १ गाने में जरूर होती है. क्या यह बदलता स्वरुप हम लोगों ने स्वीकार कर लिया है. या फिर इसको इस सस्ती लोकप्रियता कहेंगे जो की गायक कर रहे हैं... कुछ गीत इसके उदहारण है.फुर्की बांद लबरा छोरी, छेकना बांध,लीला घसियारी ..क्या है ये कोई गीत है क्या ये तो सरासर अपमान है अपने बहु बेटियों का ... क्या आपको लगता है की ये गाने सही है ? ये कोन सा बोली हुई फुर्की बांध,लीला गसियारी , इस तरीके की बोली आजकल के गायक बोल रहे है और हम लोग भी मस्त होकर सुनते है एन्जॉय करते है क्यों एषा क्यों हो रहा है हमारे पहाड़ी समाज में .... क्या ... आखिर इसका क्या कारण है क्यों हो रहा है ये सब .....

हिमांशु बिष्ट


एक
समय था जब शादी या फिर दूसरी पार्टियों में डीजे पर सबसे ज्यादा हिंदी डांस नंबर्स बजाए जाते थे. समय बदला और इंग्लिश डांस नंबर्स का एक खास श्रोता वर्ग उभर आया. लेकिन जब हर तरह के म्यूजिक के साथ एक्सपेरिमेंट हो रहे हैं, तो भला फोक क्यों पीछे रहे. इन दिनों गढ़वाली-कुमाऊंनी रीमिक्स डांस नंबर्स डीजे पर सबसे ज्यादा बजाए जा रहे हैं और थिरकने की चाह पाले श्रोता इन्हें पसंद भी कर रहे हैं. युवाओं की खास च्वॉइसगजेंद्र राणा का गाया गढ़वाली गीत तू लगदी झकास हो या फिर मंगलेश डंगवाल का चढ़दी जवानी तेरी मस्त शिवानी युवाओं की खास च्वॉइस लिस्ट में शामिल हैं. कैसेट विक्रेताओं का कहना है कि एक समय था, जब युवा अक्सर गढ़वाली-कुमाऊंनी जैसे रिजनल सांग्स से दूर ही रहा करते थे, या फिर सेलेक्टेड नंबर्स ही पसंद किया करते थे, लेकिन अब रिजनल सांग्स का एक खास श्रोता वर्ग है. फोक सांग्स के साथ किया जाने वाला एक्सपेरिमेंट लोगों को काफी पसंद आ रहा है. बदलाव की बयारसागर म्यूजिक हट के ओनर कमल लोनियाल बताते हैं कि इन दिनों हर तरह के म्यूजिक में एक्सपेरिमेंट्स किए जा रहे हैं. गढ़वाली और कुमाऊंनी सांग्स में भी पहले की अपेक्षा काफी अंतर आ गया है. फिर चाहे वह ऑडियो हो या फिर वीडिओ. कमल लोनियाल बताते हैं कि कैसेट सीडीज के मार्केट में लगभग 30 परसेंट मार्केट रिजनल सांग्स का है. कमल बताते हैं कि शादी, पार्टीज में गढ़वाली-कुमांऊनी के फास्ट रिदमिक सांग्स को काफी पसंद किया जाता है, लेकिन जो लोग प्योर फोक म्यूजिक सांग्स सुनना चाहते हैं, उनका एक अलग ग्रुप है. ट्रेडिशनल फोक के लिसनर ग्रुप में नरेंद्र सिंह नेगी, प्रीतम भरतवाण व मीना राणा को पसंद किया जाता है. वहीं युवाओं में गजेंद्र राणा, मंगलेश डंगवाल और मास्टर रोहित की ऑडियो और वीडियो सीडी पसंद किया जाता है

Tuesday, July 20, 2010


मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, हे कुलै की डालि

कखि तिन मेरि आख्यूं का सुपिन्या, देखि त नि यालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, हे कुलै की डालि
कखि तिन मेरि आख्यूं का सुपिन्या, देखि त नि यालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू

त्वै मां बोदु हे दगड़िया, मन की गैंड़ खोलि, त्वै मां बोदु हे दगड़िया, मन की गैंड़ खोलि
ब्योला बणि वो सुपिन्या मां आई, तू कैमां ना बोलि
छुंयाल घसैलि सुणालि- छुंयाल घसैलि सुणालि, बात फैलि जालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, हे कुलै की डालि, मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू…..

हे घुघति, घिन्दुड़ि, हे हिलांसि, तू भी भुलि ना जैई, हे घुघति, घिन्दुड़ि, हे हिलांसि, तू भी भुलि ना जैई
मुण्ड बदौणु मेरा ब्यो मां दगड़्या, टक्क लगै की ऐई
न्यूंति बुलोंलु, पुजि पठ्यौंलु – न्यूंति बुलोंलु, पुजि पठ्यौंलु, मिन पैलि बोल्यालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, हे कुलै की डालि, मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू…..

कुतग्यालि सि लगणि तन-मन मां, सोचि सोचि लाज, कुतग्यालि सि लगणि तन-मन मां, सोचि सोचि लाज
घासन क्यैकि पूरी ह्वैनि, गैठ्याई डांनि आज
सैरि दुन्या अपणी ह्वै ग्याई-सैरि दुन्या अपणी ह्वै ग्याई, बिराणी छै जा ब्यालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, हे कुलै की डालि, मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू…..

सासु मयैल्यू मेरि ससुरा जी द्याब्ता, भलि-भलि नणद जेठाणि,सासु मयैल्यू मेरि ससुरा जी द्याब्ता, भलि-भलि नणद जेठाणि
बिसरि ना ज्यूं त्वै यना सैसुर में, दगड़्या बुरु ना मानि
भाग मां होलु चा नि होलु – भाग मां होलु चा नि होलु, सुपिन्या त देखि यालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू, हे कुलै की डालि, कखि तिन मेरि आख्यूं का सुपिन्या, देखि त नि यालि
मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू……।


रे चीड़ की डाली तू ऐसे मन्द-मन्द क्यूँ मुस्कुरा रही है, कहीं तूने मेरी आंखों में तैर रहे सपने देख तो नहीं लिये हैं? अरे अब मैं तुझ से क्या छुपाऊं, मैं अपनी दिल की गांठ अब तेरे सामने खोल ही देती हूँ. कल “वो” दूल्हा बन कर मेरे सपने में आये थे, लेकिन तू यह बात किसी को बताना मत। अगर यह बात घास काटने वाली बातूनी महिलाओं ने सुन ली तो यह बात फैल जायेगी।

जंगल में पाये जाने वाली विभिन्न प्रकार के पक्षियों को संबोधित करते हुए युवती कहती है – हे घुघुती, हे घिन्दुड़ी, हे हिलांसी तुम लोग भी भूलना नहीं। मैं तुम सब को न्यौता भिजवाउंगी, तुम सब मेरी शादी में जरूर आना।

मेरे तन-मन में हल्की गुदगुदी सी लग रही है, और यह सब सोच-सोच कर मुझे शरम भी आ रही है। कल तक जो दुनिया पराई थी वो आज अचानक अपनी सी लगने लगी है। मैने सपने में देखा कि मेरी सासू जी बहुत प्यार करने वाली हैं और ससुर जी तो देवता समान हैं, ननद-जेठानी भी अच्छी हैं। अब ऐसे ससुराल में जाकर अगर में तुम सब साथियों को भूल भी जाऊं तो आशा है कि तुम लोगों को बुरा नहीं लगेगा। अब यह सब बातें सच होंगी या नहीं, क्या पता? लेकिन मैने सपना तो देख ही लिया है।


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Bisht G
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