Thursday, August 20, 2009

"पहाड़ से पलायन"


"पहाड़ से पलायन"

थम नहीं रहा है सिलसिला,
जिसने पैदा कर दिया है,
पहाड़ पर सूनापन,
जिसकी शुरुआत हो चुकी थी,
भारत की आज़ादी से पहले,
उत्तराखण्ड की नदियों में,
बहते निर्मल नीर की तरह.

कभी परदेश से,
पलायन करते हुए,
पहाड़ पहुँचते थे,
प्रवासी पहाड़ियों के पत्र,
मेहनतानें का मन्याडर,
माता पिता के पास,
जिनकी नजर लगि रहती थी,
गाँव में आए डाकिये पर,
और रहती थी आस.

जब पहाड़ पर जीवन,
पहाड़ सा कठोर था,
तब मीलों पैदल चलकर,
आते जाते थे गाँव,
लेकिन,
आज क्यों ठहर गया सिलसिला?
यादों में बसकर.

जिनको आज भी,
प्रवास में रहते हुए,
पहाड़ के प्रति है प्यार,
जिन्होंने सुना, पहाड़ पर,
घुघती का गीत,
घाटियों में गूंजता शैल संगीत,
हिल्वांस की सुरीली आवाज,
बांसुरी पर बजती,
बेडू पाको बारमासा की धुन,
जिन्होंने देखा पहाड़ पर,
ऋतु बसंत, फ्योंली अर् बुरांश,
पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग,
देवभूमि में चार धाम,
ले लो लौटने का संकल्प,
जन्मभूमि की गोद में,
चाहे, एक पर्यटक की तरह,
पलायन की पीड़ा से दूर.




--
Bisht G

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Harish Bisht

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उत्तराँचल के पांच केदार (पंचकेदार)

ग्रुप के सभी सदस्यों को हरीश बिष्ट का प्यार भरा प्रणाम स्वीकार हो, आज मैं आप सभी को उत्तराँचल के प्रशीद प्रयागों और केदारों के बारे मैं बता रहा हु !

उत्तराँचल के पांच केदार (पंचकेदार)
१. केदारनाथ
२. तुंगनाथ
३. मदमहेश्वर
४. कल्पेश्वर
५. रुद्रनाथ

उत्तराँचल के पांच बद्री (पंचबद्री)१. बद्रीनाथ
२. आदिबद्री
३. वृद्धबद्री
४. भविष्यबद्री
५. योगध्यानबद्री

उत्तराँचल के पांच प्रयाग (पंचप्रयाग)
१. विष्णुप्रयाग ( धोलीगंगा + अलकनन्दा )
२. नन्दप्रयाग ( नन्दाकिनी + अलकनन्दा )
३. कर्णप्रयाग ( पिण्डर + अलकनन्दा )
४. रुद्रप्रयाग ( मन्दाकिनी + अलकनन्दा )
५. देवप्रयाग ( भागीरथी + अलकनन्दा ..
********************
प्यारी ब्वै
आज लाठी का सारा हिटणी छ,
भौं कबरी बोन्नि छ,
बेटा, अब त्वै फर ही छ सारू,
फर्ज निभौ तू,
बोझ समझ या भारू.

उबरी जब तू छोट्टू थै,
तेरा खातिर मैन ज्यू मारी,
यू ही सोचि थौ मैन,
बुढापा का दिन जब आला,
प्यारु नौनु सेवा करलु हमारी.

ब्वै दुनियाँ मा होन्दि छ,
सबसी प्यारी,
टौल पात जथ्गा ह्वै सकु,
हमारी छ जिम्मेदारी.

ब्वै का दूध की लाज,
रखन्णु छ फर्ज हमारू,
ऋण नि चुकै सकदा हम,
माणदी छ हमतैं सारू.

ख्याल रखन्णु सदानि,
ब्वै का आँखों माँ,
कब्बि भि नि अयाँ चैन्दन,
दुःख का आंसू,
अनुभूति प्रगट कन्नु छौं,
तुमारु दग्ड़्या "जिग्यांसू



MOLA KU MADHYO
HAM LEKHI PAIDI SAKDAN
GOSHTHI SAMMELAN KARI SAKDAN
NAI NAI AKHBAR KITAB CHHAPE SAKDAN
PH.D KARI SAKDAN
MOLA KU MADHYO BANDAI SAKDAN
APANI BOLI BHASHA AR PAHADU TAIN
PAR BHAI
HATH JWADNYA CHHAN
OON KADARA DANDO
ROULA KUMCHAYRON
JAYE NI SAKDAN
WAKH RAYE NI SAKDAN

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Bisht G