कुछ गड्वाली सबद और उनके अर्थ
१. अल्डो/अल्डु = ठन्डा
२. अचाण्चक/ चाण्चक= अचानक
३. अछ्लेगी= अस्त हो गया
४-अछ्लेणु= अस्त होना
५.अजाक=नासमझ
६. अन्ग्ल्यार- बर्र या ततैया
७. अठ्वाड- बलि देने के लिए आयोजित उत्सव
८- अन्ग्योणु- अपनाना
९- अलोणु-बिना नमक का
१०- अभरोसु- अविश्वास
११- अन्ग्वाल- अन्कमाल/ आलिग्न
१२- अलसिगे- मुर्झा गया/गइ
१३- आछरी- अप्सरा
१४- अल्याचार- लाचार
१५- अफु/अफ्वी- अपने आप
१६- अन्वार/अन्द्वार- सूरत
१७-अबेर- असमय/ देर
1८- अजाण- अनजाना
१९-अप्छाण्यु- अपरिचित
२०- असक्दी- असक्त/ गर्भ्वती स्त्री
२१-अखोड- अखरोट
२२-अडेथणू- किसी व्यक्ति / स्त्री को गन्त्व्य तक पहुचाने के लिए साथ जाना
२३- अडेथदारो- साथ जाने वाला
२४- अधखेचरू - अधकचरा/ अपरिपक्व
२५- अगेती- पहले/ फसल विशेस मे जो पहले पके- जैसे अगेते साटी/ अगेती कौणी
२६- अडी/ अड- जिद्द या अड्ना२
७- अन्तौ- अधैर्य
२८- अधीर्ज- अधीर
२९- अण्ब्य्वायी - अविवाहित
३०- अण्ब्यो- बिना विवाह किये
३१- अचैन्दु- जो चाहा न गया हो/ आइछित्त
३२- अफखौ- जो सिर्फ अपने खाने की इछ्छा रख्ता हो
३३- अलबला सलबल- आनन फानन मे
३४-अन्दयारू- अन्धेरा
३५- अन्ताज- अन्दाज
३६- अक्ड्नु- समाना या एड्ज्स्ट होना
३७- औ बटौ- राह चल्ती/ कुलहीन
३८-अयेडी- जिद
३९-अडाट- भैस आदि का रम्भाना
४०- अडाट- भिडाट= चीख पुकार
Wednesday, March 2, 2011
Tuesday, March 1, 2011
उत्तराखंडी सिनेमा को नहीं मिल पाई रफ्तार
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फिर मुड़कर नहीं देखा उत्तराखंड
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संघर्ष स्वभाव है पर्वतीय नारी का
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चिपको आंदोलन की नेत्रीअपने ही गांव में बेगानी हुई गौरा गौरा देवी
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"हिमांशु बिष्ट"
अस्तित्व को छटपटातीं उत्तराखंड की बोलियां
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भीम पांव : जहां मंदाकिनी ने ली थी पांडवों की परीक्षा
"Himanshu Bisht"
Monday, February 28, 2011
राज्य गठन के दस साल बाद भी ऐसी शर्मनाक है जिसको देख कर गहरा दुख होता है
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15 से 21 जुलाई 2010 वाले प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्रा में प्रकाशित
भगवान राम को तो केवल 14 साल का वनवास भोगना पड़ा था। परन्तु उत्तराखण्ड के 60 लाख सपूतों को यहां के सत्तासीन कैकईयों के कारण पीढ़ी दर पीढ़...ी का वनवास झेलना पड़ रहा है। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान से यहां के लोग अपने घर परिजनों के खुशह...ाली के लिए दूर प्रदेश में रोजगार की तलाश में निकले। देश आजाद हुआ परन्तु शासकों ने यहां के विकास पर ध्यान न देने के कारण यहां से लोगों का पलायन रोजी रोटी व अच्छे जीवन की तलाश के कारण होता रहा। इसी विकास के लिए लोगों ने ऐतिहासिक संघर्ष करके व अनैकों शहादतें दे कर पृथक राज्य भी बनवाया। परन्तु यहां के शासकों की मानसिकता पर रत्ती भर का अंतर नहीं आया। उत्तराखण्ड का जी भर कर दौहन करना यहां के नौकरशाही व राजनेताओं ने अपना प्रथम अध्किार समझा। मेरा मानना रहा है कि पलायन प्रतिभा का हो कोई बात नहीं, परन्तु पेट का पलायन बहुत शर्मनाक है। पेट के पलायन को रोकने के लिए ही पृथक राज्य का गठन किया गया था। प्रदेश का समग्र विकास हो व प्रदेश का स्वाभिमान जीवंत रहे। परन्तु स्थिति आज राज्य गठन के दस साल बाद भी ऐसी शर्मनाक है जिसको देख कर गहरा दुख होता है। मेरे इन जख्मों को गत सप्ताह धेनी की शादी प्रकण ने पिफर हवा दी।
Sabhar uttarkahand vichar..
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