Tuesday, December 8, 2009

''हिमालय का सौन्‍दर्य जितना आकर्षक''


हिमालय का सौन्‍दर्य जितना आकर्षक है उतनी ही सुन्‍दर प्रेम कहानियां यहां की लोक कथाओं और गीतों में दिखाई देती हैं। उत्‍तराखंड के विभिन्‍न हिस्‍सों में प्रेम कहानियां लोकगथाओं के रूप में जन जन तक पहुंची हैं, हालांकि यह अधिकतर राजघरानों से जुड़ी हैं लेकिन वह आम आदमी तक प्‍यार का संदेश छोड्ने में कामयाब रही हैं, हरूहीत और जगदेच पंवार की कहानी तो है ही रामी बौराणी का अपने पति के इंतजार में सालों गुजारना उसके समर्पण को दर्शाता है, इन सबसे बढ्कर राजुला मालूशाही की अमर प्रेम कथा है जो प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। उत्‍तराखण्‍ड की लोककथाओं में प्रेम कथाओं का विशेष महत्‍व हें यह लोक गाथाओं के रूप में गाई जाती है, हालांकि अलग अलग हिस्‍सों में इन कहानियों को अपनी तरह से लोक गायकों ने प्रस्‍तुत िकया है लेकिन जब समग्रता से इसे देखते हैं तो कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्‍होंने उन पात्रों को आज भी गांवों में जीवंत रखा है। यहां प्रचलित कहानियों की पृष्‍ठभूमि में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से उपजी दिक्क्तें साफ झलकती हैं। राजुला मालूशाही की गाथा कितनी अमर है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है साइबर युग में जहां प्रेम की बात संचार माध्‍मों से हो रही हो वहां भोट की राजुला का वैराट, चौखुटिया आने और मालूशाही का भोट की कठिन यात्रा प्रेमियों का आदर्श है।

कुमाऊं और गढ्वाल में प्रेम गाथायें झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्‍य लोक गीतों के माध्‍यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं, मेले इनको जीवन्‍त बनाते हैं। राजुला मालूशाही पहाड् की सबसे प्रसिद्व अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्‍टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों में जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। यहां एक तरफ बैराठ का संपन्‍न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्‍यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था। लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण पेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्‍कालीन सामाजिक ढ्ाचे को तोड्ते हुए नया इतिहास बनाती है।

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार है- कुमांऊं के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है, उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाई। अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गये वहां उनकी मुलाकात भोट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहां आये थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगें। ऐसा ही हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लडकी हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया, जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भोट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता था।

पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि "हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।" राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।

धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे….राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि
" मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?"
उसकी मां ने उत्तर दिया " दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट"
तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि " हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।

वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया। लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि " हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।" यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये।

गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे, राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहन कर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी, मुझे राजुला चाहिये, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यही पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आंखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होंने यह भी कहा कि देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लडकी को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे, राजुला। लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा कि गुरु यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहां से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उसे न लग सके।

तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खाकर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुंचा और भिक्षा और खाना मांगा, रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है, मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे खान दे। रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पांच ग्रास बनाये, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पांचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राज पाट छोड़कर? तो मालू ने कहा-मां तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊंगा, मुझे हूणियों के देश जाना है, अपनी राजुला को लाने। रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया, लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।

मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुंचा, उस देश में विष की बावडियां थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुंचा, वहां बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खी पाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई और बोला ’दे माई भिक्षा!’ तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ’ले जोगी भिक्षा’ पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है, यहां कहां से आ गई? राजुला ने कहा कि जोगी बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं, तो जोगी ने कहा कि ’मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने कहा कि ’मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं, अब बता जोगी, मेरा भाग क्या है’ तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ’चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली वैराट का मालूशाही था’। तो राजुला ने रोते हुये कहा कि ’हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि ’ मैंने तेरे लिये ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा’।

तब राजुला ने विक्खी पाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है, यह हमारे काम आयेगा। तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर उसे शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में तो रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालु से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो वैराट का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने क षडयंत्र किया और खीर बनवाई, जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसे खीर खाने को कहा। खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला भी अचेत हो गई। उसी रात मालू की मां को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं। तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिये मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हून देश भेजा।

सिदुवा-विदुवा रमोल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुंचे, बोक्साड़ी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और फिर इसके सैनिको ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खी पाल भी मारा गया। तब मालू ने वैराट संदेशा भिजवाया कि नगर को सजाओ मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूं। मालूशाही बारात लेकर वैराट पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि ’मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूं और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुंगी। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ, खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे। यह कहानी भी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक राजा सामान्य सी शौके की कन्या के लिये राज-पाट छोड़्कर जोगी का भेष बनाकर वन-वन भटका

जैता एक दिन तो आलो, ऊ दिन यो दुनी में


जै दिन कठुलि रात ब्यालि, पौं फाटला कौ कड़ालि
जै दिन कठुलि रात ब्यालि, पौं फाटला कौ कड़ालि

जैता एक दिन तो आलो, दिन यो दुनी में
जैता एक दिन तो आलो, दिन यो दुनी में (कोरस)
जैता कभि कभि तो आलो, दिन यो दुनी में

जै दिन नान-ठुलो नि रौलो, जै दिन त्यर-म्यरो नि होलो
जै दिन नान-ठुलो नि रौलो, जै दिन त्यर-म्यरो नि होलो
जैता एक दिन तो आलो, दिन यो दुनी में
जैता एक दिन तो आलो, दिन यो दुनी में (कोरस)
जैता कभि कभि तो आलो, दिन यो दुनी में
जै दिन चोर नि फलालि, क्वैके जोर नि चलोलो
जै दिन चोर नि फलालि, क्वैके जोर नि चलोलो
जैता एक दिन तो आलो, दिन यो दुनी में
जैता एक दिन तो आलो, दिन यो दुनी में
जैता कभि कभि तो आलो, दिन यो दुनी में

चाहे हम नि ल्यै सकों, चाहे तुम नि ल्यै सको
चाहे हम नि ल्यै सकों, चाहे तुम नि ल्यै सको
जैंता क्वै क्वै तो ल्यालो, दिन यो दुनी में
जैंता क्वै क्वै तो ल्यालो, दिन यो दुनी में
जैता कभि कभि तो आलो, दिन यो दुनी में
जैंता क्वै क्वै ल्यालो, दिन यो दुनी में
जैता कभि कभि तो आलो, दिन यो दुनी में
जैंता क्वै क्वै तो ल्यालो, दिन यो दुनी में
जैता कभि कभि तो आलो

Monday, December 7, 2009

''मेघ कृपा''

जिन पर मेघों के नयन गिरे
वे सबके सब हो गए हरे।
पतझड का सुन कर करुण रुदन
जिसने उतार दे दिए वसन
उस पर निकले किशोर किसलय
कलियां निकलीं, निकला यौवन।
जिन पर वसंत की पवन चली
वे सबकी सब खिल गई कली।
सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
जिसने अपने छायाश्रित जन
के लिए बनाई मधुर मही
लख उसे भरे नभ के लोचन।
लख जिन्हें गगन के नयन भरे
वे सबके सब हो गए हरे।

स्वर्ग सरि मंदाकिनी


स्वर्ग सरि मंदाकिनी, है स्वर्ग सरि मंदाकिनी
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी।
गौरी-पिता-पद नि:सृते, हे प्रेम-वारि-तरंगिते
हे गीत-मुखरे, शुचि स्मिते, कल्याणि भीम मनोहरे।
हे गुहा-वासिनि योगिनी, हे कलुष-तट-तरु नाशिनी
मुजको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी।
मैं बैठ कर नवनीत कोमल फेन पर शशि बिम्ब-सा
अंकित करूंगा जननि तेरे अंक पर सुर-धनु सदा।
लहरें जहां ले जाएंगी, मैं जाउंगा जल बिंदु-सा
पीछे न देखूंगा कभी, आगे बढूंगा मैं सदा।
हे तट-मृदंगोत्ताल ध्वनिते, लहर-वीणा-वादिनी
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी।

अपणि-बोली-भाषा

अपणि-बोली-भाषा का बगैर न त अपणि उन्नति हवै कद और न ही समाज की।
जु समाज अपणि-बोली भाषा-अर-रिती-रिवाज से शर्म करदू ऊ वैकू पतन कू सबसे बडू कारण छ।

Wednesday, October 14, 2009

''आप सभी को दीवाली की हार्दीक शुभकामनाये''


Deep Jalao, Khushi Manao
Aayi Diwali Aayi!

Raat Amaavas ki to kya,
Ghar-ghar hua ujaala
Saje kangure deepshikha se,
Jyon pehne ho mala
Man mutav mat rakhna bhai,
Aayi Diwali Aayi!

Jhilmiljhilmil bijli ki
Rang birangi ladiyan
Nanhe munne hathon main veh
Dil fareb phuljhariyan
Diwali hai parv milan ka,
Bharat milihin nij bhai
Chaurahe, mandir, galiyon main
Lage hue hain mele
Nazar pade jis or dikhe,
Bhare khushi se chehre
Chaudah baras baad laute hain,
Siyalakhan Raghurai
Diwali ke din hain jaise,
Ghar main ho koi shaadi
Andar bahar hoye safedi,
Khush amma, khush daadi
Govardhan ko dhare chhanguriya
Inhi dinan gosayin

Tuesday, September 29, 2009

विजय दशमी पर्व पर गढ़वाल


गढ़वाल। विजय दशमी पर्व पर गढ़वाल के अलग-अलग भागों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्कूली छात्रों ने झांकी निकालकर रावण के पुतले का दहन किया। जगह-जगह हो रही रामलीला का भी समापन हुआ और लोगों ने घरों में स्थापित मूर्तियों को गंगा में बहाया।

विजयी दशमी के अवसर पर रामलीला मंचन के आखिरी दिन रावण के पुतले का दहन किया गया।

मैदान में आयोजित रामलीला मंचन के आखिरी दिन रामभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। आखिरी दिन मंचन से लेकर समाप्ति रामभक्तों द्वार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र भगवान की जय के उद्घोषों समूचा आयोजन रामभक्ति से सराबोर हो उठा। आखिरी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र भगवान द्वारा रावण का वध कर दिया जाता है।

सैकड़ों रामभक्तों की मौजूदगी में रामलीला मैदान में विशाल रावण के पुतले का दहन किया गया। इस प्रकार से सत्य की असत्य पर जीत के प्रतीक के रूप में आयोजित होने वाले रामलीला का भी औपचारिक रूप से रामलीला का समापन हो गया।

उत्तरकाशी। दुर्गा की जयकारे के साथ मूर्तियां गंगा नदी में विसर्जित की गई। दस दिन तक चली पूजा अर्चना के बाद सोमवार को महिषासुर मर्दिनी व उनकी योगनियों के साथ ही गणेश की मूर्ति भी गंगा में विसर्जित की गई। मूर्ति विसर्जन से पहले शहर में भव्य शोभा यात्रा निकाली गई।

यात्रा का लोगों ने घरों की छतों से पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। मूर्ति विसर्जन से पहले हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना, यज्ञ व अनुष्ठान आयोजित किए गए। शक्ति माता, कुटेटी देवी, दक्षिण काली मंदिर, अष्ट भुजा दुर्गा देवी, उच्जवला देवी समेत अन्य मंदिरों में भी यज्ञ व अनुष्ठानों को विश्राम दिया गया।

गुप्तकाशी। विजय दशमी पर्व पर डा. जेक्सवीन नेशनल स्कूल गुप्तकाशी के तत्वावधान में भव्य दशहरा कार्यक्रम का आयोजन किया। छात्रों ने बाजार में भव्य झांकी निकालकर रावण के पुतले को जलाया।

विजय दशमी पर्व पर आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ जिला पंचायत अध्यक्ष चण्डी प्रसाद भटट और विधायक श्रीमती आशा नौटियाल ने किया। उन्होंने दशहरा पर्व को एतिहासिक पर्व बताते हुए कहा कि इस दिन भगवान राम ने रावण के अत्याचारों को समाप्त कर सत्य की असत्य पर जीत दिलाई थी।

कार्यक्रम में डा. जेक्सवीन नेशनल स्कूल गुप्तकाशी के छात्र-छात्राओं द्वारा गुप्तकाशी मुख्य बाजार से नारायणकोटी बाजार तक भव्य झांकी निकाली और रावण का विशाल काय पुतले का दहन किया। कार्यक्रम में जिला पंचायत सदस्य केशव तिवारी, विद्यालय के प्रबंधक मनोज बेंजवाल, लखपत राणा, प्रधानाचार्य धमेन्द्र फस्र्वाण, ज्येष्ठ प्रमुख जयंती प्रसाद कुर्माचली, प्रधान गुप्तकाशी रश्मी नेगी, पीटीए अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन बेंजवाल सहित भारी संख्या में लोग मौजूद थे।

कालागढ़। असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा का पूर्व परांपरागत ढंग से मनाया गया। इस पूर्व पर हिन्दू धर्म के लोगों पर घरों में पूजा कर लौकी का मिट्ठा रायता बनाकर पूजा की।

नई कालोनी स्थित रामलीला मैदान में राम और रावण के पात्र बने कलाकारों ने युद्ध का स्वांग चलता रहा, जैसे ही


कुम्भकरण के पुतलों में अग्नि बाण छोड़ दिया। राम के द्वारा अग्नि छोड़ते ही पुतले धू धू कर जल उठे।

Thursday, September 24, 2009

Vijaya दशमी,Dashahara,Navaratri,festivals of India,


Vijaya Dashami also known as Dasara, Dashahara, Navaratri, Durgotdsav… is one of the very important & fascinating festivals of India,
which is celebrated in the lunar month of Ashwin (usually in September or October) from the Shukla Paksha Pratipada (the next of the New moon day of Bhadrapada) to the Dashami or the tenth day of Ashwin.
This festival is celebrated not only in India but in almost all eastern countries like Java, Sumatra, Japan etc... Dasara is Nepal’s national festival.
Word DASARA is derived from Sanskrit words “Dasha” & “hara” meaning removing the ten Day's
This is the most auspicious festival in the Dakshinaayana or in the Southern hemisphere motion of the Sun. In Sanskrit, 'Vijaya' means Victory and 'Dashami' means 10th day. 'Thus Vijaya Dashami' means victory on the 10th day.
Dasara is also known as Navaratri, as in the first nine days the Divine Mother Goddess Durga is worshipped and invoked in different manifestations of her Shakti. The 10th day is in honor of Durga Devi. The basic purpose behind this festival is to worship feminine principle of the Universe in the form of the divine mother to remind the teachings of the Taitareeya Upanishad, "Matru Devo Bhava." Essence of the navaratri celebration at social level is to remind & respect all the women, who are the guardians of the family, culture, and national integrity, to take lead in times of crisis to guide the humanity towards the path of social justice, righteousness, equality, love, and divinity.
Durga is worshipped as the main deity of Navaratri by all the segments of society including tribal communities. Dasara coincide with the period of rest & leisure of the farmers after their strenuous hard work in their farms & fields, hence they invoke blessings of Durga in order to have a rich harvest in the next coming season.
In India harvest season begins at this time and as mother earth is the source of all food the Mother Goddess is invoked to start afresh the new harvest season and to reactivate the vigor and fertility of the soil by doing religious performances and rituals which invoke cosmic forces for the rejuvenation of the soil.
On the day of Dasara, statues of the Goddess Durga are submerged in the river waters. These statues are made with the clay & the pooja is performed with turmeric and other pooja items, which are powerful disinfectants and are mixed in the river waters. This makes water useful for the farmers & yields better crops.
Chatrapati Shivaji Maharaj, the founder of the Hindawi (Hindu) Swarajya used to always worship Lord Shiva & Goddess Durga in the form of goddess Bhawani before any military expedition. Goddess Bhavani had blessed Shivaji Maharaj with her own sword called “Bhavani Talwar”.
Buses, trucks and huge machines in factories are all decorated and worshipped as Dasara is also treated as Vishwakarma Divas - the National Labor Day of India.

इतिहास में बावन गढ़ों के नाम से प्रसिद्ध गढ़वाल


इतिहास में बावन गढ़ों के नाम से प्रसिद्ध गढ़वाल के वीरों की गाथाएं प्रदेश और देश की सीमाओं में नहीं बंधी हैं। गढ़ योद्धाओं की वीरता की गूंज फ्रास के न्यू चैपल समेत इटली से लेकर ईरान तक सुनी जा सकती है। क्रूर मौसम भले ही खेत में खड़ी फसलों को चौपट कर दे, लेकिन रणबाकुरों की फसल से यहा की धरती हमेशा ही लहलहाती रही है।

उत्तराखंड के टिहरी जिले के चंबा ब्लाक के गावों की भूमि इसकी तस्दीक करती है कि दुनिया के इतिहास को बदलने में इनकी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही वह भूमि है जहा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान न्यू चैपल के नायक रहे विक्टोरिया क्रास विजेता शहीद गबर सिंह ने जन्म लिया था। चंबा कस्बे से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर बसे स्यूटा गाव को ही लें। यहा के रणबाकुरे लगभग एक सदी से लगातार विजय की नई इबारत लिख रहे हैं।

प्रथम विश्व युद्ध में गाव से 36 जाबाज शामिल हुए, जिसमें से चार शहीद हो गए थे। तब से लेकर आज तक इस गाव के अधिकाश युवक सेना में रहकर देश की सेवा में लगे हैं। वैसे तो गढ़वाल के कई क्षेत्रों से लोग प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आजाद हिंद फौज और देश स्वतंत्र होने के बाद सेना में शामिल होकर देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन स्यूटा गाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि एक ही गाव से एक बार में इतनी बड़ी संख्या में लोग युद्ध में शामिल नहीं हुए।

प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ते हुए न्यू चैपल लैंड में गाव के जगतार सिंह, छोटा सिंह, बगतवार सिंह और काना सिंह शहीद हो गए। इस गाव के जाबाज सिपाहियों ने प्रथम ही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध में भी जर्मन सेना को धूल चटाने में कोई कमी नहीं रखी। इस युद्ध में भी स्यूटा के 10 जवान शामिल हुए, जिसमें से बैशाख सिंह और लाभ सिंह रणभूमि में काम आए।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, 1962 के भारत-चीन युद्ध में शामिल होने वाले यहा के जाबाजों की संख्या 40 तक पहुंच गई थी। इस लड़ाई में सते सिंह पुंडीर शहीद हुए। अस्सी के दशक में तो 132 परिवार वाले गाव में हर परिवार से औसतन एक सदस्य सेना में था।

आज भी गाव में 45 लोग सेना के पेंशनर हैं और 25 लोग सेना और दूसरे सुरक्षा बलों में सिपाही से लेकर डीआईजी तक हैं। गाव के प्रधान रहे सेवानिवृत्त 80 वर्षीय कैप्टन पीरत सिंह पुंडीर बताते हैं कि 1946 में जब वे सेना में शामिल हुए तो तब तक द्वितीय विश्व युद्घ समाप्त हो चुका था। उन्होंने 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ी और इसमें भी गाव के कई लोग शामिल हुए। स्यूटा गाव से लगे मंजूड़ गाव के भी 11 जाबाज प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए।

विक्टोरिया क्रास विजेता गबर सिंह नेगी इसी गाव के थे। इसी तरह से स्यूटा से कुछ ही दूर पर स्थित बमुंड पट्टी के जड़दार गाव के 16 रणबाकुरे प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। इसलिए स्यूटा गाव को लोग आज भी फौजी गाव भी कहते हैं।

Saturday, September 19, 2009

माँ भगवती (नवरात्रा)


नवरात्रा के प्रथम तीन दिन


प्रथम शैलपुत्री
माँ भगवती की मूर्ति नौ रूपों में है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इनके पृथक-पृथक नाम संसार में प्रचलित हैं, जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है तथा विभिन्न रूपों का चमत्कार विभिन्न प्रकार से अनन्य भक्तों द्वारा अनुभूत किया जाता है। इन रूपों में से प्रथम रूप शैल-पुत्री के नाम से जाना जाता है। गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती देवी को ही शैलपुत्री कहा गया है। हिमालय की तपस्या व प्रार्थना से भगवती ने हिमालय के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था जिस कारण शैलपुत्री कहा जाता है।

द्वितीय ब्रम्हाचारिणी
माँ भगवती का द्वितीय रूप ब्रम्हाचारिणी उपनिषदों में कहा गया है। "चाररियितुं शील यस्या: सा ब्रम्हाचारिणी" सच्चिदानन्दमय ब्रम्हा की प्राप्ति करना चाहता है, जिन्हें ब्रम्हा (ईश्वर) की प्राप्ति करना है, वे भगवती के ब्रम्हाचारिणी स्वरूप का घ्यान करके साधना करें, निश्चित रूप से भगवती कृपा से ब्रम्हा मुहूर्त में भगवती के इस स्वरूप का घ्यान करें, पूजा अर्चना के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी।
त्वां स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय:।।
ब्रम्हा की प्राप्ति तो होगी और उसके साथ में भक्त की इच्छाओं की भी पूर्ति होती है। पूर्ण श्रद्धा, पवित्रता और संयम से की गई साधना निश्चित रूप से फलीभूत होती है।

तृतीय चन्द्रघण्टा
माँ भगवती का तृतीय रूप चन्द्रघण्टा देवी के रूप में है। "चन्द्र: घण्टायास्या: सा" आहलादकारी चन्द्रमा जिनकी घण्टा में स्थित हो उन देवी का नाम चन्द्रघण्टा है।
साधक भगवती के इस रूप का घ्यान कारता है तो वह समृद्धि, भौतिक सम्पन्नता तथा संसार के समस्त भौतिक सुख प्राप्त करता है। पूजन व घ्यान का समय सूर्योदय से पूर्व का है जो भक्त नवरात्रा में 4 वर्ष की सुन्दर निरोगी कन्या का पूजन करता है उसे शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। इस साधना के लिये निम्न मंत्र है-
क, ए, ई, ल, ह्नीं, ह, स, क, ह, ल, ह्नीं, स, क, ल, ह्नीं
माँ चन्द्रघण्टा का पन्द्रह अक्षर का मंत्र है, जो भी भक्त नवरात्रा के प्रथम दिन से नवमी तक पूर्ण विधि-विधान से करता है उसकी सभी प्रकार की मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है। इस विधान में प्रतिदिन चार वर्ष की आयु सुन्दर व निरोगी कन्या का पूजन करना अनिवार्य है।

Tuesday, September 15, 2009

uttranchal song (उत्तरांचल गीत)


बसंत वर्णन

दैणा होई जाया बै सेळी धरती
दैणा होई जाया बै भूमीयाळा द्यौऊ
दैणा होई जाया बै माईऽऽमडूली
दैणा होई जाया बै रितू बसंता

दैणा होयां देबताओ उलामुला मासा
दैणा होयां देबताओ चुलामुला बारा
ऋतु बौड़ी अँग्या बै दाई जसो फेरो
ऋतु बौड़ी अँग्या बै बारूणी बगत

उलापैटा मासा बै बौड़ी कै नी औना
रितु फेरी बसंता बै फेर बौड़ी अँगे
सूकुअँ का सानणा मौली कै नी औना
हरीं भरीं सानणा बै फेर मौळी अँगे

कनु अँगे द्यब्ताओ चौपंथी चौखाळ
मौळणऊ लैगै बै चांचर की धूप
रितु चड़ो बासना रितु रितु बोना
रितु चड़ी बासनी मैता-मैता बोनी

अखोड़ा की फाग्यंू मा कफूवा बासलो
सांयो-सांयो बासा बै घूघूती घूरली
सेळा जैंता बारा बै सेळी सूरी बासा
माळनों की घूघूती पराबतूं अँगे

बारा चड़ी बासनी बार फूली जान
फूलणा लैगई बाटानों फ्यूंलड़ी
कनि फूली द्यब्ताओ जया-बिजया
यनी हूनी द्यब्ताओ वो रितु बसंता

याबा लैगई वो हरियां भादोओ
कनु अँगी द्यब्ताओ तरूणी असोज
फूलणाऊ बैठीग्या कुंकूंणी बांसुळी
फूलणाऊ बैठीग्या जया-विजया

फूलणाऊ बैठीग्या स्यैता सिरीताज
फूलणाऊ बैठीग्या रातूनों की लता
फूलणाऊ बैठीग्या सुर्जना का कौळ
फूलणाऊ बैठीग्या राई-बुराई

फूलणाऊ बैठीग्या स्यैता कंऊळे
फूलणाऊ बैठीग्या कौंला फ्योंणा कौंळा
फूलणाऊ बैठीग्या कौळा ब्रमी कौंळा
यनी हूनी द्यब्ताओ रितु बसंता
यनी हूना द्यब्ताओ उलामुला मासा

--
Bisht G
bishtb50@gmail.com

Sunday, September 13, 2009

''गड्वाली गीत''


बीच का रोपदारियों छांटो रोप्या सेरो, बासमती घणी रोप्यां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बासमती घणी रोप्यां ।
स्वामी देनी बासूंड्या रैबार, बासमती घणी रोप्यां ।
भैंस के भ्याणी चन्दोला बिन्दोला, बसो राणी छानी आयां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बसो राणी छानी आयां ।
स्वामी देनी बासूंड्या रैबार, बसो राणी छानी आयां ।
पींडों ले लाया नौ दोण नौ पाथा, बसो राणी छानी आयां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बसो राणी छानी आयां ।
स्वामी देनी बासूंड्या रैबार, बसो राणी छानी आयां ।
गौड़ी ले भ्याणी सूरजू कौरों की, बसो राणी छानी आयां ।
तोय मूंग ब्वारी के जाणी न बोल्या, बसो राणी छानी आयां ।
पींडों ले लाया नौ दोण नौ पाथा, बसो राणी छानी आया ।
स्वामी न देनू बासूंड्या रैबार, बसो राणी छानी आयां ।

Sunday, August 30, 2009

देवभूमि गढ़वाल जहाँ अनेक सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण उल्लेखनीय है


देवभूमि गढ़वाल जहाँ अनेक सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण उल्लेखनीय है वहीं पर पुष्पप्रियता यहाँ की अन्यतम विशेषता है। रंग-बिरंगे लुभावने पुष्पों के प्रति सांस्कारिक अनुरक्ति का भाव-निर्झर यहाँ गीतों एवं नृत्य-गीतों के रूप में दृष्टिगोचर होता है।

गढ़वाल-सौंदर्य, प्रणय और जीवंतता की क्रीड़ाभूमि है। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ यहाँ का मानवीय सौंदर्य भी उच्च एवं प्रभावी कोटि का है। गढ़वाली गीतों व नृत्य-गीतों में मानवीय रूप-सौंदर्य तथा या रमणीक प्राकृतिक ऐश्वर्य बिखरा हुआ है। जैसा इस झुमैलो नामक नृत्य-गीत में वर्णित है कि एक ओर लयेड़ी, लया सरसों, राडौड़ी या राड़ा पुष्प विकसित हो गए हैं, दूसरी ओर बुरांस अपनी अरुणिमा आभा में वन-वृक्षों को डोलियों की भाँति सजाने लगा है-
फूलीक ऐ मैंने झमैलो लयेड़ी राडोड़ी झुमैलो
नीं गंधा बुरांस झुमैलो डोला सी गच्छैने झुमैलो

हिमालय हिम की शीतल पवन और वन के वृक्षों के आडू, घिंघारू, बांज, बुरांस, साकिना इत्यादि वृक्षों में पुष्पोद्भव देखकर मनरूपी मयूर का नृत्य हेतु विवश होना स्वाभाविक ही है। जैसा इस मयूर नृत्य-गीत से स्पष्ट है-
हैंयुचलि डांड्यूं की चली हिवांली कांकोरा
रंगम तुब्हे, नाचण लगे मेरा मन कू मोर
आरू, घिंगारू, बांज, बुरांस
साकिनी झका झोर

बसंत उमंग, उल्लास व हास्य का पर्व है। इस रमणीय काल में गढ़वाल की प्राकृतिक सुषमा का अपना महत्व है। इसके आगमन से वन-वृक्षों की कमनीयता तथा कुसुमों का मनोमुग्धकारी सौंदर्य मुखरित हो जाता है। पुष्पोद्भव के इस रम्य अवसर पर सभी ह्रदयों में चेतना, स्फूर्ति एवं उल्लास का स्वतः संचरण हो जाता है। इस समय न केवल मानव अपितु प्रकृति का रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठता है-
हँसदो बसंत ऐगी गिंवाड़ी सारी
पिंगली फ्योंलड़ी नाचे घागरी पसारी

गढ़वाल में रमणीक बसंत ऋतु की सूचना यहाँ के ग्वीराल, मालू, फ्योंली, साकिनी, कूंजू, तुषरी व बुरांस इत्यादि मनोहर पुष्पराजियों से मिलती है।
गढ़-साहित्य एवं गीतों में वासंतिक वैभव, वनश्री व उसके मंजुल कुसुमों का रूप-चित्र यत्र-तत्र बिखरा हुआ है। बसंत-श्री में अभिवृद्धि करनेवाले लयेड़ी (लया या सरसों) तथा जयेड़ी (जौ) का उल्लेख इस लोकगीत में किया गया है- 'ऋतु बसंत माँ फुली लयेड़ी जौवन जोर जताली जयेड़ी' यही नहीं पुष्पोत्सव के इस रम्यकाल में जब कानन-कानन बुरांस की अरुणिमा से और डाली-डाली हिलांस पक्षी के गीतों से गूँजने लगे तब हिमालय क्षेत्र के गाँव और अधिक प्रिय लगने लगते हैं-
मेरो गाँव भलो प्यारो, डांडू फूली बुरांसी, बासदौं हिंलासी

वास्तव में बांज, बुरांस व कुलैं (चीड़) के सघन वन ही गढ़वाल का सौंदर्य है। चैत्र में चित्ताकर्षक बुरांस से वन्य शोभा और भी दर्शनीय हो जाती है-
गदन्यों मां पांणी सेरों मा छ कूल, खिल-खिल हंसदू बुरांस कु फूल
गढ़वाल के पक्षियों में घूघती को मयालू या अत्यंत मायादार कहें तो अनुचित न होगा।
पर्वत पुत्रियाँ अपने ह्रदय की बात इसी से कहना उचित मानती हैं। प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण तथा रंग-बिरंगे पुष्पों के बीच वे अपने समस्त दुःखों को विस्मृत कर घुघती नृत्य-गीत गाती हैं। वे कहती हैं- 'देखो धरती के गले में पुष्पहार सज गया है तथा पयाँ, धौलू, फ्यूंली, आरू, लया व बुरांस पुष्प विकसित हो गए हैं-
फूलों की हंसुली
पयां, धौलू, फ्यूंली, आरू
लया, फूले बुरांस

फुलारी महीनों के आते ही मायके के लिए व्यथित गढ़-रमणियाँ अपनी आत्मिक क्षुधा की अभिव्यक्ति जिन नृत्यों के माध्यम से करती हैं उन्हें खुदेड़ नृत्य-गीत संज्ञा प्रदान की गई है। खुंदेड नृत्य-गीतों के विषय - अपना घर, गाँव, वन, वृक्ष, पशु-पक्षी, हरीतिमा, निर्झर, नदी एवं प्रसून होते हैं। यहाँ पर खुदेड़ नृत्य गीत के माध्यम से कांस तथा बुरांस प्रसून के साथ-साथ मेल्वड़ी पक्षी की सुमधुर गीत ध्वनि का स्मरण किया गया है-
फूली जालो कांस वबै, फूली जालो कांस वूबै
मेल्वडी बांसली वबै, फूली गै बुरांस

हिमालय के कवियों ने नायक एवं नायिका के रूप-सौंदर्य वर्णन हेतु जिन पुष्प गीतों का सृजन किया है उनमें बुरांस तथा फ्योंली प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त इन विद्वान कवियों ने पोस्त, कूंजू, गुलाब, कमल प्रसूनों को अपनी गीतमाला में पिरो-पिरोकर रूप सौंदर्य का सुंदर एवं स्वाभाविक चित्रण किया है। कहीं पर गीतकार नायिका को रक्ताभ बुरांस की भाँति कमनीय तथा आकर्षक कहता है और कहीं उसे फ्योंली की तरह सुंदर, सजीली राजकन्या कहता है- बुरांस जनो फूल, फ्योंली जनी रौतेली

एक स्थल पर गीतकार नव-यौवना की कोमल काया से प्रभावित होकर उसे फ्योंली की कली कह बैठता है- ''फ्यूंली की-सी कली।'' अन्यत्र सुई नृत्य-गीत के माध्यम से कवि 'गालू मां बुरांस।' यानी पहाड़ी रमणी के श्वेत कपोलों पर रक्तवर्ण बुरांस का आरोपण कर अपनी शृंगार प्रसाधन विशेषज्ञता का सुंदर परिचय प्रस्तुत करता है। इनके अतिरिक्त गढ़वाली गीत सृजकों ने 'पोस्तू का छुमा, त्वेसरी गुलाबी फूल मेरी भग्यानी बौ।' इत्यादि नृत्य-गीतों के द्वारा उन्होंने पोस्त तथा गुलाब प्रसूनों से नायिका के रूप-सौंदर्य की वर्णन किया है

नायिका सौंदर्य चित्रण ही गढ़ कवियों का एकमात्र उद्देश्य रहा हो, ऐसा नहीं अपितु इन्होंने नायक सौंदर्य वर्णन हेतु भी पुष्प गीतों की सृष्टि....
--
Bisht G

Wednesday, August 26, 2009

अब तो यादों में बस गया "पहाड़ पर बचपन"

अब तो यादों में बस गया है,
पहाड़ पर बिताया, प्यारा बचपन,
सोचणु छौं, कनुकै बतौँ, आज, अतीत मां ख्वैक,
कनु थौ अपणु बचपन.

दादी, खाणौं खलौन्दि वक्त, बोल्दि थै,
एक टेंड खाणौं कू नि खत्यन,
नितर तुमारा आंख फूटला, रुसाड़ा का भीतर,
चूल्ला तक जाण की, इजाजत कतै नि थै,
संस्कार माणा, या अनुशासन समझा.

स्कूल दूर थौ, अर् ऊकाळि कू बाटु,
बगल मां पाटी, हाथ मां बोद्ग्या,
जै फर घोळिक रखदा था,
कमेड़ा की माटी.

चैत का मैना ल्ह्योंदा था,
अर् देळ्यौं मां चढ़ौन्दा था,
सुबेर काळी राति,पिंगळा फ्यौंलि का फूल,
कौदे की कर करी रोठ्ठी खैक,
फ़िर जांदा था स्कूल.

अपणा सगोड़ा की, मांगिक या चोरिक,
छकि छकिक खांदा था, काखड़ी, मुंगरी, आम, आरू,
बण फुंड हिंसर, किन्गोड़, करौंदु,
खैणा, तिमला, घिंगारू.

कौथिग जांदा था, बैसाख का उलार्या मैना,
झीलु सुलार अर् कुरता पैरिक,
देखदा था खुदेड़, अफुमां रोन्दि,
बेटी-ब्वारी, चाची, बोडी, कै जोड़ी ढोल-दमौं,
बगछट ह्वैक नाचदा बैख, गोळ घूम्दी चर्खी,
चूड़ी, झुमकी,माळा की दुकान,
हाथु मां चूड़ी पैरदी, बेटी -ब्वारी, चाची, बोडी,
ज्वान शर्मान्दि नौनि हेरदा लोग,
जैन्कि मांगण की बात चनि छ,
स्वाळि,पकोड़ी,खांदा लोग, आलु पकोड़ी,


जलेबी की दुकान, अहा!


कथ्गा खुश होन्दा था, बचपन मां


हेरि-हेरिक.
--
Bisht G

Monday, August 24, 2009

रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ कैसी ओ मेरी किसाणा

रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ कैसी ओ मेरी किसाणा
उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा, उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा
रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ जैसी ओ मेरी किसाणा
उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा, उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमको घामा

गोरू बाछा अड़ाट लैगो भुखै गोठ पाना, गोरू बाछा अड़ाट लैगो भुखै गोठ पाना
तेरि नीना बज्यूण हैगे, उठ वे चमाचम, तेरि नीना बज्यूण हैगे, उठ वे चमाचम
घस्यारूं दातुली खणकि, घस्यारू दातुली खणकि, वार पार का डाना,
उठ मेरी नांरिंगे दाणी, उठ वे चमाचम, उठ मेरी नांरिंगे दाणी, उठ वे चमाचम

उठ भागी नाखर ना कर, पली खेड़ खाताड़ा, उठ भागी नाखर ना कर, पली खेड़ खाताड़ा
ले पिले चहा गिलास गरमा गरम, ले पिले चहा गिलास गरमा गरम
उठे मेरी पुन्यू की जूना, उठे मेरी पुन्यू की जूना, छोड़ वे घुर घूरा
ले पिले चहा घुटुकी, गुड़ को कटका, ले पिले चहा घुटुकी, गुड़ को कटका

रंगीली चंगीली पुतई कैसी, फुल फटंगां जून जैसी, काकड़े फुल्युड़ कैसी ओ मेरी किसाणा
उठ सुआ उज्याउ हैगो, चम चमैगो घामा



--
Bisht G

"माँ की आँखों मैं आंसू"

"माँ की आँखों मैं आंसू"

उत्तराखंड के एक गोँव में,अकेली माँ,
इन्तजार में है अपने बेटे की,
क्योंकि जिसे उसने,बचपन में पाल पोसकर,
पढाया लिखाया,कामयाबी की राह में,
आगे बढाया,लेकिन एक दिन,
जवान होने पर,वह उसकी आँखों से,
दूर चला गया,रोजगार की तलाश में.!!!

कैसी कसक है उसके मन में,
जिसे उसने बुढापा का सहारा समझा,
आज दूर है उससे,लेकिन.
कासिस उसके मन में भी है,
माँ से दूर होने की.

वक्त निकालकर जब वह जाता है गाँव,
तो माँ से मिलने पर छलक जाते हैं,
''माँ की आँखों में आंसू''

Thursday, August 20, 2009

"पहाड़ से पलायन"


"पहाड़ से पलायन"

थम नहीं रहा है सिलसिला,
जिसने पैदा कर दिया है,
पहाड़ पर सूनापन,
जिसकी शुरुआत हो चुकी थी,
भारत की आज़ादी से पहले,
उत्तराखण्ड की नदियों में,
बहते निर्मल नीर की तरह.

कभी परदेश से,
पलायन करते हुए,
पहाड़ पहुँचते थे,
प्रवासी पहाड़ियों के पत्र,
मेहनतानें का मन्याडर,
माता पिता के पास,
जिनकी नजर लगि रहती थी,
गाँव में आए डाकिये पर,
और रहती थी आस.

जब पहाड़ पर जीवन,
पहाड़ सा कठोर था,
तब मीलों पैदल चलकर,
आते जाते थे गाँव,
लेकिन,
आज क्यों ठहर गया सिलसिला?
यादों में बसकर.

जिनको आज भी,
प्रवास में रहते हुए,
पहाड़ के प्रति है प्यार,
जिन्होंने सुना, पहाड़ पर,
घुघती का गीत,
घाटियों में गूंजता शैल संगीत,
हिल्वांस की सुरीली आवाज,
बांसुरी पर बजती,
बेडू पाको बारमासा की धुन,
जिन्होंने देखा पहाड़ पर,
ऋतु बसंत, फ्योंली अर् बुरांश,
पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग,
देवभूमि में चार धाम,
ले लो लौटने का संकल्प,
जन्मभूमि की गोद में,
चाहे, एक पर्यटक की तरह,
पलायन की पीड़ा से दूर.




--
Bisht G

Harish Bisht wants to share photos with you

Hi,

I wanted to share 's interesting photos with you.
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Harish Bisht

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उत्तराँचल के पांच केदार (पंचकेदार)

ग्रुप के सभी सदस्यों को हरीश बिष्ट का प्यार भरा प्रणाम स्वीकार हो, आज मैं आप सभी को उत्तराँचल के प्रशीद प्रयागों और केदारों के बारे मैं बता रहा हु !

उत्तराँचल के पांच केदार (पंचकेदार)
१. केदारनाथ
२. तुंगनाथ
३. मदमहेश्वर
४. कल्पेश्वर
५. रुद्रनाथ

उत्तराँचल के पांच बद्री (पंचबद्री)१. बद्रीनाथ
२. आदिबद्री
३. वृद्धबद्री
४. भविष्यबद्री
५. योगध्यानबद्री

उत्तराँचल के पांच प्रयाग (पंचप्रयाग)
१. विष्णुप्रयाग ( धोलीगंगा + अलकनन्दा )
२. नन्दप्रयाग ( नन्दाकिनी + अलकनन्दा )
३. कर्णप्रयाग ( पिण्डर + अलकनन्दा )
४. रुद्रप्रयाग ( मन्दाकिनी + अलकनन्दा )
५. देवप्रयाग ( भागीरथी + अलकनन्दा ..
********************
प्यारी ब्वै
आज लाठी का सारा हिटणी छ,
भौं कबरी बोन्नि छ,
बेटा, अब त्वै फर ही छ सारू,
फर्ज निभौ तू,
बोझ समझ या भारू.

उबरी जब तू छोट्टू थै,
तेरा खातिर मैन ज्यू मारी,
यू ही सोचि थौ मैन,
बुढापा का दिन जब आला,
प्यारु नौनु सेवा करलु हमारी.

ब्वै दुनियाँ मा होन्दि छ,
सबसी प्यारी,
टौल पात जथ्गा ह्वै सकु,
हमारी छ जिम्मेदारी.

ब्वै का दूध की लाज,
रखन्णु छ फर्ज हमारू,
ऋण नि चुकै सकदा हम,
माणदी छ हमतैं सारू.

ख्याल रखन्णु सदानि,
ब्वै का आँखों माँ,
कब्बि भि नि अयाँ चैन्दन,
दुःख का आंसू,
अनुभूति प्रगट कन्नु छौं,
तुमारु दग्ड़्या "जिग्यांसू



MOLA KU MADHYO
HAM LEKHI PAIDI SAKDAN
GOSHTHI SAMMELAN KARI SAKDAN
NAI NAI AKHBAR KITAB CHHAPE SAKDAN
PH.D KARI SAKDAN
MOLA KU MADHYO BANDAI SAKDAN
APANI BOLI BHASHA AR PAHADU TAIN
PAR BHAI
HATH JWADNYA CHHAN
OON KADARA DANDO
ROULA KUMCHAYRON
JAYE NI SAKDAN
WAKH RAYE NI SAKDAN

--
Bisht G

Thursday, August 13, 2009

''आप् सभी को हरीश बिष्ट की और से श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दीक शुभकामनाये''


जन्माष्टमी एक हिंदू त्यौहार है जो श्री कृष्ण के जनम दिन की खुशी में मनाया जाता है।
उसके अगले दिन लोग उपवास रखते है
और फिर रात को 12 बजे तक जग कर भगवन श्री कृष्ण का जनम दिन मानते है।
सुबह जल्दी उठकर औरते छोटे बछो के पैर घर के बहार बनती है
जिससे यह लगता है की कृष्ण घर में प्रवेश हो रहे है।
और बहुत सारी रस्मे है जो लोग जन्माष्टमी पर मानते है।
रात भर भजन होता है। आधी रात को छोटे कृष की मूर्ति को नलय जाता है,
झूला मैं डाला जाता है, और फिरसे पूजा करतें है।
आदमी लोग एक के ऊपर एक खड़े होतें है और एक लटकता हुआ मटका फोड़ते हैं।
लोग खाते नहीं है और पूरा दिन पानी भी नहीं पीतें है।
लोग बहुत खुश होतें है क्यूंकि कृष्ण भगवान् विष्णु का अवतार है।

जगदगुरु श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई।

जगदगुरु श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई।
भगवान् जितने भी है उनमे सिर्फ़ श्री कृष्ण ही है
जिन्होंने भारतवासियों के जागरण के लिए उपदेश दिया जिसे गीता उपदेश कहते है.
आप गीता उपदेश को पढने के बाद अनुभव कर सकते है कि क्यों भारत महान है।
विष्णु पुराण के अनुसार जब वाणासुर संग्राम में भगवान शिव और श्री कृष्ण में युद्घ होता है
तो भगवान शिव हार जाते है और शिव अपने प्राणों के रक्षा के लिए श्री कृष्ण से कहते है
श्री कृष्ण , श्री कृष्ण मुझ पर प्रसन्न होकर मेरे प्राणों की रक्षा करें।
श्री कृष्ण कहते है में आपको और दैत्य वाणासुर दोनों को नही मरूँगा।
वाणासुर के पूर्वज को मैंने वचन दे रखा है में किसी भी दैत्य का वध नही करूँगा और आपको इस लिए नही प्राण दंड दूंगा
क्योंकि आप मेरे शरण में आ चुके है ।
एक बार महाबली हनुमान ने भीम से कहा की मैंने एक हाथ से पहाड़ उठा लिया मेरे इतना शक्ति किसी के पास नही है
तब भीम ने कहा मेरे भगवान श्री कृष्ण ने बायं हाथ के सब से छोटे ऊँगली से गोवेर्धन को सात दिन तक उठाये रखा वो कितने शक्तिशाली होंगे ।
फिर श्री कृष्ण के साथ इन्द्र , कार्तिके , वाणासुर और भगवान शंकर भी युद्घ कर पराजीत हो चुके है।

माचो गोकुल में है त्यौहार, भयो नन्द लाल


माचो गोकुल में है त्यौहार, भयो नन्द लाल
खुशिया छाई है अपरम्पार, भयो नन्द लाल

मात यशोदा का है दुलारा,
सबकी आँखों का है तारा
अपनों गोविन्द मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

मात यशोदा झूम रही है
कृष्णा को वो चूम रही है
झूले पलना मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

देख के उसकी भोली सुरतिया
बोल रही है सारी सखिया
कितनो सुंदर है मदन गोपाल
......... भयो नन्द लाल

Wednesday, August 12, 2009

''आप् सभी को हरीश बिष्ट की और से जन्माष्टमी की हार्दीक शुभकामनाये''

Maakhan chorr hai aayo,
Yashomati Maiya ka nandlala,
Dharti pe bhagwan ka avataar hai aoyo,
Harne Kans jaise papi ko
Karne kalyan Dharti maa ka..
Sheshnaag ki chatra mein wo hai aayo
Banke Kanha makhan chorr hai aayo!!!

Krishna jinka nam, gokul jinka dham,
aise Shree Krishna bhagwan ko,
ham sab ka pranam, jai shree krrishna
Happy जन्माष्टमी!!!!!!!!!!!!

Thursday, August 6, 2009

''काला डांडा के पीछे बाबा जी काली च कुएड़ी''


काला डांडा के पीछे बाबा जी
काली च कुएड़ी
बाबाजी, एकुली मैं लगड़ी च ड..र
एकुली-एकुली मैं कनु कैकी जौलो

भावार्थ
एक लड़की अपने ससुराल जा रही है!
लेकीन उसका मन गबरा रही है !
और वो मन ही मन में कुछ इस तरह सोच रही है.........

--' काले पहाड़ के पीछे, पिताजी!
काला कुहरा छा रहा है ।
पिताजी, मुझे अकेले में डर लगता है ।
अकेले-अकेले मैं ससुराल कैसे जाऊंगी ?

''नंदा देवी राज जात''

जय जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलास की जय
जय जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलास की जय
जय बोला तेरु चौसिंग्या खाडू, तेरी छंतोळी रिंगाळ की जय
जय बोला तेरु चौसिंग्या खाडू, तेरी छंतोळी रिंगाळ की जय
जय जय बोला.......



काली कुलसारी की, देवी उफरांई की...
नंदा राज राजेश्वरी...
बगोली का लाटू की, हीत बिणेसर की
नंदा राज राजेश्वरी...
बीड़ा बधाण की, जमन सिंह जदोड़ा की, कांसुआ कुवंरुं की....
नंदा राज राजेश्वरी...
जय जय बोला, माता मैणावती, तेरा पिताजी हेमंता की जय...
जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलासा की जय...
जय बोला.....


नौटी का नौट्याळूं की, सेम का सेम्वाळूं की...
नंदा राज राजेश्वरी...
देवल का देवळ्यूं की, नूना का नवान्यूं की...
नंदा राज राजेश्वरी...
देवी नंदकेसरी की, छैकुड़ा का सत्यूं की, बाराटोकी बमणूं की...
नंदा राज राजेश्वरी...
जय जय बोला दशम द्वार डोली, डोली कुरुड़ हिंडोली की जय...
जय बोला जय भगोती नंदा, नंदा उंचा कैलासा की जय...
जय बोला....


डिमर का डिमर्यूं की, मलेथा मलेथ्यूं की...
नंदा राज राजेश्वरी....
तोती का ड्यूंड्यूं की, खंडूड़ा खंडूड़्यूं की...
नंदा राज राजेश्वरी....
नैणी का नैन्वळ्यूं की, गैरोळा थपल्यळ्यूं की, चेपड़्यूं का थोकदारूं की...
नंदा राज राजेश्वरी...
जय जय बोला हीत घंड्याळ, तेरा न्योज्यां निसाण की जय....
जय बोला जय भगोती नंदा. नंदा उंचा कैलासा की जय...
जय बोला

लाता की मल्यारी की, शैलेसर बनोली की...
नंदा राज राजेश्वरी....
मनोड़ा मनोड्यूं की, देवराड़ा देवरड्यूं की..
नंदा राज राजेश्वरी....
चमोळी कंड्वळूं की, चौदा सयाणों की, द्यो सिंह भौ सिंह की...
नंदा राज राजेश्वरी...
जय जय बोला तांबा का पतार, तेरा रिंगदा छतारा की जय....
जय बोला जय भगोती नंदा. नंदा उंचा कैलासा की जय...
जय बोला


नैनीताल अल्मोड़ा की, रणचूला बैजनाथ की...
नंदा राज राजेश्वरी....
कोटमाई डंगोली की, दानपुर सनेती की...
नंदा राज राजेश्वरी....
बदिया बागेसुर की, मारत्वोली जोहार की, छलमिलम मकाया की...
नंदा राज राजेश्वरी...
जय जय बोला ईष्ट देवी नंदा, नंदा कुमौ गढ़्वाळ की जय...
जय बोला जय भगोती नंदा. नंदा उंचा कैलासा की जय...

जय बोला....

''भटकणू छौं स्वर्ग मां, बाटू खोज्याणू छौं... दिदौं''

भटकणू छौं स्वर्ग मां, बाटू खोज्याणू छौं... दिदौं...
भटकणू छौं स्वर्ग मां, बाटू खोज्याणू छौं... दिदौं...
बीज छौं मै धरती कू माटू खोज्याणू छौं... दिदौं..
भटकणू छौं स्वर्ग मां, बाटू खोज्याणू छौं... दिदौं...
भटकणू छौं स्वर्ग मां.....


ग्वाळा पैथर ग्वाया लैकी पौंछी ग्यौं परदेस मां...

पौंछी ग्यौं परदेस मां...
ग्वाळा पैथर ग्वाया लैकी पौंछी ग्यौं परदेस मां...

पौंछी ग्यौं परदेस मां...
बीड़ छौ मैं पर्बतूं जांठू खोज्याणू छौं... दिदौं...
बीज छौं मै धरती कू माटू खोज्याणू छौं... दिदौं... भटकणू छौं स्वर्ग मां.....


कखड़ी मुंगरी खाजा बुखणा अब नि औंदिन गौं बिटी ... अब नि औंदिन गौं बटी...
कखड़ी मुंगरी खाजा बुखणा अब नि औंदिन गौं बिटी... अब नि औंदिन गौं बटी...
मेरु बि हक छौ यूं फरैं बांठू खोज्याणू छौं... दिदौं...
बीज छौं मै धरती कू माटू खोज्याणू छौं... दिदौं... भटकणू छौं स्वर्ग मां.....


डांडा कांठौं का भट्यौणम, गै त छौ घर बौड़ी की... गै त छौ घर बौड़ी की...
डांडा कांठौं का भट्यौणम, गै त छौ घर बौड़ी की... गै त छौ घर बौड़ी की...
रीति सूनी तिबार्यूं मां नातू खोज्याणू रौं... दिदौं...
भटकणू छौं स्वर्ग मां, बाटू खोज्याणू छौं... दिदौं...
बीज छौं मै धरती कू माटू खोज्याणू छौं... दिदौं..
भटकणू छौं स्वर्ग मां...

****************

''बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश''


बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश.....

वीर भड़ु की भूमि,प्यारु गढ़देश,
देवभूमि तपोभूमि,जख ब्रह्मा विष्णु महेश.
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश.....

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जख राज करिग्यन,गढ़वाल नरेश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जौनसारी, गढ़वाली बोलि,रौ रिवाज, परिवेश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
बांज, बुरांश, देवदार,डाडंयौं मा ढेस,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
जख नाचदा देवता,भूत अर् खबेस,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश...

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
देवतों का धाम,हरिद्वार ढेस,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश..

बावन गढ़ु कू,प्यारु गढ़देश,
गंगा यमुना कू मैत,वीर भड़ु कू देश,
जुग-जुग राजि रखि,खोळि का गणेश,
हे खोळि का गणेश..

2.हळ्या दिदा का मन मा लगिं छ,
हौळ लगाण की झौळ,कथ्गै मौ कू हौळ लगाण,
ऊठणि छ मन मा बौळ.

बल्दु की जोड़ी हळ्या गौं मा,
खोजिक छन द्वी चार,
सैडा गौं कू हौळ लगान्दा,
मुलाजु या लाचार.

कथ्गै मौ की पुंगड़ी बांजी,हौळ भी कैन लगाण,
हल्यौं कु अकाळ होयुं छ,कैन बोण आर बाण.

हल्सुंगी ढ़गड्याण लगिं छ,पड़नी छन ढळ डामर,
हळ्या दिदा तंगत्याण लग्युं छ,जन हो ज्युकड़ी मा जर.

हळ्या का मन मा कपट निछ,मन मा छ हौळ की झौळ,
सुबर ब्याखना हौळ लगैक,ऊठण लगिं छ बौळ.

हळ्या दिदा सोच्दु छ मन मा,दग्ड़या मेरा सैरू बाजारू मा,
मैं बंण्यु छौं हळ्या,गौं वाळौं मैं जु चलि जौलु,
गौं छोड़िक दूर देश,चुचौं! तब तुम क्या कल्या.

बल्द हर्चिगिन, हळ्या भि हर्चला,
देखण लग्युं छ "जिग्यांसु",
पुंगड़्यौं मा कबरी हौळ लगै थौ,
आज औणा छन आँसू.......

Wednesday, August 5, 2009

''मेरु पहाड़ कन सुन्दर लगद,हिंवाली डांडी कांठियों का बीच मा''


मेरु पहाड़ कन सुन्दर लगद,हिंवाली डांडी कांठियों का बीच मा
स्वानी धरती यख कन सुन्दर लगदी मेरा गडवाल मा

शिधा साधा लोग रहेंदा जख देव भूमि गडवाल नूं च तक
छुटो -छुटो गदनी को पानी सुर-सुर हवा चलदी यख

टिहरी,चमोली,उत्तरकाशी,पोडी,रुद्रप्रयाग,कुमाओं,पिथोरागढ़ जिला छीन जख
मेरा सुन्दर पहाड़ का जिलों का नाम छीन ये तक

के जातियों का लोग रहेंदा मेरा पहाड़ मा जख
मीठी बोली भाषा एक रूप रंग का लोग रहेंदा तक

बन बनियाँ का फूल बनों मा हरियाली च जख
ये पहाड़ मा कनु सुन्दर नाम गडवाल च तक

बनूँ मा मिउली हिलांश काफू बस्दा जख
खुदेडू मन खुदी जान ये पहाड़ मा तक

बीर जवानों की धरती च ये पहाड़ मा जख
गबर सिंह जन वीर सिपाई पैदा वेन यख

देवी देवताओं की भूमि च ये पहाड़ मा यख
केदार बद्री यमनोत्री गंगोत्री चार धाम छीन जख

बणो मा बुरांश का फूल खेतों मा फ्योंली हंसनी च जख
कन सुन्दर लगदी फूलों की घाटी मेरा गडवाल मा तक

देश बिदेश मा रहेंदा मेरा गड्वाली भाई बंधो जक
न भुलियाँ ये देव भूमि गडवाल तक



जो भरा नहीं है भावौं से बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हिरदय नहीं पतथर है जिसको अपनें गडवाल से प्यार नहीं"
*जय भारत,जय उत्तराखंड,जय गड्वाल*

''अबकी बार राखी में जरुर घर आना''


''अबकी बार राखी में जरुर घर आना''

राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
न चाहती धन-दौलत न कोई गहना
आकर पास बैठ, दो बोल मीठे सुनाना
अब न बनाना फिर से कोई बहाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

गाँव के खेत-खलियान तुम्हें बुलाते हैं
कभी खेले-कूदे अब क्यों भूले कहते हैं
जरा अपना बचपन का स्कूल देखते जाना
अपने बचपन के दिनों को याद करना
भूले-बिसरे साथियों की सुध लेते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

गाँव-घर छोड़ अब तू परदेश जा बसा है
बिन तेरे घर अपना सूना-सूना पड़ा है
बूढ़ी दादी और माँ का भी यही कहना है
अपने परदेशी नाती-पूतों को देखना है
आकर घर हसरत उनकी पूरी करना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना

खेती-पाती में अब लोगों का मन कम लगता है
गाँव में रहकर उन्हीं शहर का सपना दिखता है
उजडे घर, बंजर खेती आसूं बहा रहे हैं
कब सुध लोगे देख आसमां पुकार रहे हैं
आकर अपनी आखों से हाल देखते जाना
राह ताक रही है तुम्हारी प्यारी बहिना
अबकी बार राखी में जरुर घर आना
(हरीश बिष्ट )

Monday, August 3, 2009

रक्षा-बंधन(राखी)


रक्षा-बंधन(राखी)
सावन के महीने में आकर राखी.
अपना रंग दिखाती राखी.!!
भैया के हाथो में सजकर
रह-रह कर इठलाती राखी!!
रंग बरंगे नीले-पीले
फूलो की प्यारी राखी!!
मोटी और मानियो से साजजीत
रेशम की न्यारी राखी!!
मेरी सभी बहने
सजधजकर लाती राखी!!
दो दागो का पावन बंधन
चीर बंधन कहलाती राखी!!
थाली बीच सजाकर राखी
यह वीस्वाश देलाती राखी!!
करेगा भैया बहन की रक्छा
चोक बनाकर घर में सुंदर
यह वीस्वाश देलाती राखी!!

''हरीश बिष्ट''

Saturday, August 1, 2009

''आज बिछड़ा हुआ एक दोस्त बहुत याद आया''


आज बिछड़ा हुआ एक दोस्त बहुत
याद आया,
अच्छा गुज़रा हुआ कुछ वक्त
बहुत याद आया,

कुछ लम्हे, साथ बिताए कुछ पल,
साथ मे बैठ कर गुनगुनाया वो
गीत बहुत याद आया,

इक मुस्कान, इक हँसी, इक आँसू,
इएक दर्द,
वो किसी बात पे हँसते हँसते
रोना बहुत याद आया,

वो रात को बातों से एक दूसरे
को परेशान करना,
आज सोते वक्त वही ख्याल बहुत
याद आया,

कुछ कह कर उसको चिढ़ाना और
उसका नाराज़ हो जाना,
देख कर भी उसका अनदेखा कर
परेशान करना बहुत याद आया,

मुझे उदास देख उसकी आँखें भर
आती हैं,
आज अकेला हूँ तो वो बहुत याद आया,

मेरे दिल के करीब थी उसकी बातें,
जब दिल ने आवाज़ लगाई तो बो
बहुत याद आया,

मेरी ज़िन्दगी की हर खुशी मे
शामिल उसकी मौजूदगी,
आज खुश होने का दिल किया तो
वो बहुत याद आया,

मेरे दर्द को अपनानाने का
दावा था उसका,
मुझ से अलग हो मुझे दर्द
देने वाला बहुत याद आया,

मेरी कविता पर कभी हँसना तो
कभी हैरान हो जाना,
सब समझ कर भी अन्जान बने
रहना बहुत याद आया,

Monday, July 20, 2009

"उत्तराखंड हमारा है"




"उत्तराखंड हमारा है"

देवभूमि के दर्द बहुत हैं,
किसी गाँव में जाकर देखो,
कैसा सन्नाटा पसरा है,
तुम बिन,
प्यारे उतराखन्ड्यौं,
अब तो तुम, गाँव भी नहीं जाते,
शहर लगते तुमको प्यारे,
जो उत्तराखंड से प्यार करेगा
पूरी दुनिया मैं उसको सम्मान मिलेगा
,

अकेला नहीं कहता है "धोनी",
शैल पुत्रों तुमने कर दी अनहोनी,
अन्न वहां का हमने खाया,
विमुख क्योँ हए,
ये हमें समझ नहीं आया,
लौटकर आयेंगे तेरी गोद में,
जब आये थे किया था वादा,
शहर भाए इतने हमको,
प्यारे लगते पहाड़ से ज्यादा,
उस पहाड़ के पुत्र हैं हम,
सीख लेकर कदम बढाया,
सपने भी साकार हए,
जो चाहे था, सब कुछ पाया,
दूरी क्योँ जन्मभूमि से,
ये अब तक समझ न आया,
हस्ती जो बन गए,
देवभूमि का सहारा है,
स्वीकार अगर न भी करे,
उसकी आँखों का तारा है,
उस माँ का सम्मान करना,
देखो कर्तब्य हमारा है,
मत भूलो, रखो रिश्ता,

''उत्तराखंड हमारा है''

Thursday, July 2, 2009

कुछ दिन पैली देखी


कुछ दिन पैली देखी
एक कौतिग, नेहरू स्टेडियम की छोटी पाह्डियो पर पाह्डियो को,
ढोल दमौ , गीत प्रीत , मिठै सिठै,
सब्बि- सुणी, करी, चाखी छै /
पर ह्वैगी छै बिसर्या जमाना की बात,
याद छा त नार्थ ब्लाक अर गुलाबीबाग का बस स्टैड,
यस सर अर यूवर्स फेथ्फुल्ली का बीच,
पहाडी कख हरची ,
मेरा छैल तै बि पता नि लगी
कखी अन्ज्वाल (डन्ड्रियाल ) पढी
जग्वाल (पारू) देखी
अर्ध्ग्रामेश्वर (धस्माना) करी
पर बिज्ल्वाण नि मिली-
कौतिग मा मिन देखी
बिकट दन्दालो
बरसों कि बिस्म्रती को घास
स्यू जल्डो भैर आये
तब देखेणी पाअड
अफू से भैर आइक मिन देखी त हकाणै ग्यो मि,
येकुला चणा अर भड्भूजा का भाड कि कथा अबारे हि सच होणी थै
पहाड़ त सब दिल्ली ऐगे, फिर मे यकुलु वापस,
तबारे धरे कैन मेरा कान्ध ऐच हाथ,
यु मै हि थौ अप्णू सान्स अफ्वी बधौणू
पाड त फैल जालो दुनिया मा
पाअड मा रै नि रै पर जुडियु रै रे जल्डो से
मी आज भी जुड़यूँ छौ पहाड़ से मेरा पहाड़ से ||

माया बण्गे तेरी जी को जन्जाल


बौडी औ दग्डया हुवै गै बतेरी जगवाल
थामे नि थमैदो मन को उमाल
घास अर लाख्डू कान्डो का बोण
दिन डसदू सुर्म्यालो घाम रात डस्दी जोन
माया बण्गे तेरी जी को जन्जाल - बौडी औ------
सौन्ज्ड्यो दगड जब जान्दी दग्ड्याणी,
चैत्वाली बयार डाण्ड्यो जब रन्दी बयाणी
तिसू तिसू तिसि चोली जब कखी भट्याणी
दिल मा उठ्दी हूक मेरा कानू बज्दी धूयाल - बोडी औ
नथुली बुलाक झ्यूरी मेरी कन करोदा खौलि मेरी
जुडी दथी घास घ्सेरी सबि पुछ्दा बात तेरि
झ्ट्प्ट घर आवा कि मै तख बुलावा
नि कट्दु यखुलि बस्ग्याल --- बौडि औ

Monday, June 29, 2009

चैत का मैना दिशा भेट होली




बारा मैनो की बारामास गायी
घगरी फटीक घुंडियों माँ आयी २

चैत का मैना दिशा भेट होली
तेरी ब्येटुली ब्वे डब डब रोली
बैसाख मैना कोथीग कुरालु
बिना स्वामी जी का प्राण झुरोलू
बारा मैनो की.....

जेठ का मैना कोदू बूती जालू
मेरी पुन्गरियों ब्वे कु बूती आलु
आषाढ़ मैना कुयडी लोकैली
बिना स्वामी जी का कनु के कटीली
बारा मैनो की.....

सोंड का मैना कूडो चुयालो
जो पाणी भैर, भीतिर भी आलो
भादो का मैं संगरांद आली
मेरु कु च ब्वे जु मैत बुलाली
बारा मैनो की.....

अशूज मैना शरद भी आला
पितर हमारा टुक टुक जाला
कार्तिक मैना बग्वाल आली
स्वामी जौंका घौर पकोडा पकाली
बारा मैनो की.....

मंगसीर बैख ढाकर जाला
मर्च बिकैक गुड ल्वोन ल्योला
पूष का मैना झाडु च भारी
बिना स्वामी कि कु होली निर्भागी नारी
बारा मैनो की.....

माघ मॉस बीच मकरेण आली
कन होली भग्यान जु हरद्वार जाली
फागुण मैना होरी खिलेली
रसीला गीतों सुणी जिकुडा झुरोली
बारा मैनो की.....

बारा मैनो की बारामास गायी
घगरी फटीक घुंडियों माँ आयी २

"छट्ट छुटिगि प्यारु पहाड़"


"छट्ट छुटिगि प्यारु पहाड़"

छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदौं,
ऊ प्यारु पहाड़-२
जख छन बाँज बुराँश,
हिंसर किन्गोड़ का झाड़-२

कूड़ी छुटि पुंगड़ि छुटि,
छुटिगि सब्बि धाणी,
कखन पेण हे लाठ्याळौं,
छोया ढ़ुँग्यौं कू पाणी.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

मन घुटि घुटि मरिगि,
खुदेणु पापी पराणी,
ब्वै बोन्नि छ सुण हे बेटा,
कब छैं घौर ल्हिजाणी.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

भिन्डि दिनु बिटि पाड़ नि देखि,
तरस्युं पापी पराणी,
कौथगेर मैनु लग्युं छ,
टक्क वखि छ जाणी.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदौं.....

बुराँश होला बाटु हेन्ना,
हिंवाळि काँठी देखणा,
उत्तराखण्ड की स्वाणि सूरत,
देखि होला हैंसणा.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

दुःख दिदौं यू सब्यौं कू छ,
अपणा मन मा सोचा,
मन मा नि औन्दु ऊमाळ,
भौंकुछ न सोचा.
छट्ट छुटिगि सुणा हे दिदों.....

जनु भी सोचा सुणा हे दिदौं,
छट्ट छुटिगि, ऊ प्यारु पहाड़,
जख छन बाँज बुराँश,
हिंसर किन्गोड़ का झाड़

घुट घुट बाडुली लगीं च


घुट घुट बाडुली लगीं च
मैत्यों कू रैबार आयूं च
भादों का मैना दुभ्री पाती कू त्यौहार आयूं च.!
कोदा झंगोरा की सार भी भरी गी होली
काखड़ी मूंगरी भी लगी गी होली
कब जौलू कब खौलू
मन माँ उलार आयूं च.!

बारे मासी काम द्यानियों नि छूटेंदु
बरसू का नक् कभी मैत नि जयेन्दु
मैना दू एक मैत रौलू
मन माँ विचार आयूं च .!

बरखा की रडी जड़ी माँ
घास पात का बण
घनघोर कुरेडी माँ
रोई रोई रण
बुझ्याँ बुब्दाल्यान मन माँ
आज यु प्यार आयूं च
घुट घुट बाडुली लगीं च
मैत्यों कू रैबार आयूं च ..!!