दो साल बाद सन 2012 में होने वाले उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक महोत्सव नंदा देवी राजजात की तैयारिया
यह लोक महोत्सव हर बारह साल बाद होता है। इसमें देश-विदेश से भी हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। नंदा देवी राजजात समिति ने मुख्यमंत्री को इस आयोजन के लिए अलग से राजजात प्राधिकरण गठित करने का प्रस्ताव भेजा है, ताकि राजजात में शामिल होने वाले हजारों लोगों को राजजात के कठिन रास्तों में बेहतर सुविधाएं मिलें और राज्य के इस प्रमुख धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन की पहचान पूरी दुनिया में बने। गौरतलब है कि नंदा देवी राजजात में हर 12 साल बाद हजारों की तादाद में लोग हिमालय के बुग्यालों और हिम शिखरों की यात्रा करते हैं।
इसमें दुनिया की रहस्यमयी झीलों में से एक रूपकुंड समेत 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित ज्यूरांगली दर्रा भी शामिल है। इस दर्रे को पार करने के लिए हिमालय के त्रिशूल पर्वत के पास से होकर गुजरना पड़ता है। अधिकतर आम और पर्वतारोहण से अनजान लोग यह यात्रा करते हैं, ऐसे में दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पूर्व राजजात समिति के सचिव रहे भुवन नौटियाल कहते हैं कि इस बार यात्रियों की संख्या बढे़गी। इस वजह से अभी से ही इन स्थानों में आवाजाही और अन्य सुविधाओं के विस्तार के लिए प्रयास करने होंगे।
इस यात्रा में लोग नौटी से चार सींग वाले मेढ़े के लेकर नंदीकुंड तक जाते हैं। कई दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में चार सींग वाले मेढ़े की अगुवाई में देव यात्राएं निकाली जाती हैं। इस दौरान तकरीबन 21 जगह पड़ाव डालने के बाद यह यात्रा हिमालय के हिमाच्छादित पर्वत की जड़ पर स्थित नंदीकुंड मंेे संपन्न होती है। नंदा देवी को पार्वती का रूप माना जाता है। उन्हें शिव के पास कैलाश पर्वत तक विदा करने के लिए यह यात्रा उत्सव के रूप में मनाई जाती है। इसमें कई गांव से देव डोलियां निकलती हैं। इन्हें जात कहा जाता है। ये छोटी-बड़ी देव डोलियां नौटी से निकलने वाली चार सींग वाले मेढ़े के साथ मिलते हुए हिमालय पहुंचती हैं।
यह आयोजन गढ़वाल के राज परिवारो
यात्रा इसी गांव के पास नौटी मे
नंदा राजजात के आयोजन में प्रमु
उसी दिन नंदा देवी राजजात 2012
हिमांशु बिष्ट
नंदा देवी पर्वत भारत की दूसरी एवं विश्व की २३वीं सर्वोच्च चोटी है।[७] इससे ऊंची व देश में सर्वोच्च चोटी कंचनजंघा है। नंदा देवी शिखर हिमालय पर्वत शृंखला में भारत के उत्तरांचल राज्य में पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषिगंगा घाटियों के बीच स्थित है। इसकी ऊंचाई ७८१६ मीटर (२५,६४३ फीट) है। इस चोटी को उत्तरांचल राज्य में मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है।[८] इन्हें नंदा देवी कहते हैं।[९] नंदादेवी मैसिफ के दो छोर हैं। इनमें दूसरा छोर नंदादेवी ईस्ट कहलाता है।[७] इन दोनों के मध्य दो किलोमीटर लम्बा रिज क्षेत्र है। इस शिखर पर प्रथम विजय अभियान में १९३६ में नोयल ऑडेल तथा बिल तिलमेन को सफलता मिली थी। पर्वतारोही के अनुसार नंदादेवी शिखर के आसपास का क्षेत्र अत्यंत सुंदर है। यह शिखर २१००० फुट से ऊंची कई चोटियों के मध्य स्थित है। यह पूरा क्षेत्र नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जा चुका है। इस नेशनल पार्क को १९८८ में यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक महत्व की विश्व धरोहर का सम्मान भी दिया जा चुका है।[७]
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[संपादित करें] पर्वतारोहण
इस हिमशिखर के मार्ग में आने वाले पहाड़ काफी तिरछे हैं। ऑक्सीजन की कमी के कारण खड़ी चढ़ाई पर आगे बढ़ना एक दुष्कर कार्य है। यही कारण है कि इस शिखर पर जाने के इच्छुक पर्वतारोहियों को १९३४ तक इस शिखर पर जाने का सही मार्ग नहीं मिल पाया था। इसका मार्ग ब्रिटिश अन्वेषकों द्वारा खोजा गया था।
- १९३६ में ब्रिटिश-अमेरिकी अभियान को नंदादेवी शिखर तक पहुंचने में सफलता मिली। इनमें नोयल ऑडेल तथा बिल तिलमेन शिखर को छूने वाले पहले व्यक्ति थे, जबकि नंदादेवी ईस्ट पर पहली सफलता १९३९ में पोलेंड की टीम को मिली।
- नंदादेवी पर दूसरा सफल अभियान इसके ३० वर्ष बाद १९६४ में हुआ था। इस अभियान में एन. कुमार के नेतृत्व में भारतीय टीम शिखर तक पहुंचने में सफल हुई। इसके मार्ग में कई खतरनाक दर्रे और हिमनद आते हैं।
- नंदादेवी के दोनों शिखर एक ही अभियान में छूने का गौरव भारत-जापान के संयुक्त अभियान को १९७६ में मिला था।
- १९८० में भारतीय सेना के जवानों का एक अभियान असफल रहा था।
- १९८१ में पहली बार रेखा शर्मा, हर्षवंति बिष्ट तथा चंद्रप्रभा ऐतवाल नामक तीन महिलाओं वाली टीम ने भी सफलता पायी।
नंदादेवी के दोनों ओर ग्लेशियर यानी हिमनद हैं। इन हिमनदों की बर्फ पिघलकर एक नदी का रूप ले लेती है।
पिंडारगंगा नाम की यह नदी आगे चलकर गंगा की सहायक नदी अलकनंदा में मिलती है। उत्तराखंड के लोग नंदादेवी को अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते है। यहां की लोककथाओं में नंदादेवी को हिमालय की पुत्री कहा जाता है।[७] नंदादेवी शिखर के साये मे स्थित रूपकुंड तक प्रत्येक १२ वर्ष में कठिन नंदादेवी राजजात यात्रा श्राद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है।[८][९] नंदादेवी के दर्शन औली, बिनसर या कौसानी आदि पर्यटन स्थलों से भी हो जाते हैं। अविनाश शर्मा, शेरपा तेनजिंग और एडमंड हिलेरी नामक पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट को सबसे पहले विजय करने के अलावा हिमालय पर्वतमाला की कुछ और चोटियों पर विजय प्राप्त की थी। एक साक्षात्कार के दौरान शेरपा तेनजिंग कहा था कि एवरेस्ट की तुलना में नंदादेवी शिखर पर चढ़ना ज्यादा कठिन है।
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