जमीन के भीतर मची उथल पुथल बताती है कि भारत हर साल करीब 47 मिलीमीटर खिसक कर मध्य एशिया की तरफ बढ़ रहा है. करोड़ों साल पहले भारत एशिया में नहीं था. भारत एक बड़े द्वीप की तरह समुद्र में 6,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक तैरता हुआ यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट से टकराया. करीबन साढ़े पांच करोड़ साल से पहले हुई वह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हिमालय का निर्माण हुआ. हिमालय दुनिया की सबसे कम उम्र की पर्वत श्रृंखला है.
भारतीय प्लेट अब भी एशिया की तरफ ताकतवर ढंग से घुसने की कोशिश कर रही है. वैज्ञानिक अनुमान है कि यह भूगर्भीय बदलाव ही हिमालयी क्षेत्र को भूकंप के प्रति अति संवेदनशील बनाते हैं. दोनों प्लेटें एक दूसरे पर जोर डाल रही है, इसकी वजह से क्षेत्र में अस्थिरता बनी रहती है.Bildunterschrift:
विज्ञान मामलों की पत्रिका 'नेचर जियोसाइंस' के मुतबिक अंदरूनी बदलाव एक खिंचाव की स्थिति पैदा कर रहे हैं. इस खिंचाव की वजह से ही भारतीय प्लेट यूरेशिया की ओर खिंच रही है. आम तौर पर टक्कर के बाद दो प्लेटें स्थिर हो जाती हैं. आश्चर्य इस बात पर है कि आखिर भारतीय प्लेट स्थिर क्यों नहीं हुई.
'अंडरवर्ल्ड कोड' नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए करोड़ों साल पहले हुई उस टक्कर को समझने की कोशिश की जा रही है. सॉफ्टवेयर में आंकड़े भर कर यह देखा जा रहा है कि टक्कर से पहले और उसके बाद स्थिति में कैसे बदलाव हुए. उन बदलावों की भौतिक ताकत कितनी थी. अब तक यह पता चला है कि भारतीय प्लेट की सतह का घनत्व, भीतरी जमीन से ज्यादा है. इसी कारण भारत एशिया की तरफ बढ़ रहा है.Bildunterschrift:
वैज्ञानिक कहते हैं कि घनत्व के अंतर की वजह से ही भारतीय प्लेट अपने आप में धंस रही है. धंसने की वजह से बची खाली जगह में प्लेट आगे बढ़ जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान जमीन के भीतर तनाव पैदा होता है और भूकंप आते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक हर बार तनाव उत्पन्न होने से भूकंप पैदा नहीं होता है. तनाव कई अन्य कारकों के जरिए शांत होता है.
भूकंप के खतरे के लिहाज से भारत को चार भांगों में बांटा गया है। उत्तराखंड, कश्मीर का श्रीनगर वाला इलाका, हिमाचल प्रदेश व बिहार का कुछ हिस्सा, गुजरात का कच्छ और पूर्वोत्तर के छह राज्य अतिसंवेदनशील हैं. इन्हें जोन पांच में रखा गया है. जोन पांच का मतलब है कि इन इलाकों में ताकतवर भूकंप आने की ज्यादा संभावना बनी रहती है. 1934 से अब तक हिमालयी श्रेत्र में पांच बड़े भूकंप आ चुके हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: महेश झा
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