Thursday, July 15, 2010
"आज फिर से मुझे (हिमांशु) अपना बचपन याद आया"
आज सुबह सुबह जेसे हि में (हिमांशु बिष्ट ) उठा गाव से माँ का फोन आ गया की आज से सावन का महीना सुरु हो गया है,माँ मुझसे बोली की जल्दी उठ जा और नहा धो कर पूजा पाठ कर ले ..और सायद घर पे टीवी चल रहा था और टीवी में ये गाना चल रहा था, " सावन का महिना पवन करे शोर मोरा जियरा ऐसे नाचे जैसे नाचे मोर " तो यह पुराना गाना सुनकर तबियत खुश हो गई की सावन तो आ गया है . पर तबके सावन और अबके सावन के विषय में सोचने को मजबूर हो गया की तबके सावनो में जोरदार बारिश होती थी और तेज हवाए चलती थी और सररर सररर सन्न्न करती हुई खूब शोर किया करती थी . तेज बारिश के बीच झूला झूलने का आनंद ही कुछ और होता था . समय बदलने के साथ साथ लगता है की सावन भी बदल गया है न तेज जोरदार हवाए चलती है और न जोरदार बारिश होती है . अब तो ऐसा आभास होता है की सावन बारिश के वगैर सूना सूना सा है . भविष्य में सावन के महीने में हरियाली का वातावरण बनाने के लिए और जियरा को खुश करने के लिए और मनवा को मोर जैसे नचाने के लिए कहीं कृत्रिम बारिश का सहारा न लेना पड़े.....
अब तो अपने पहाड़ से दूर होकर ..... मुझे वो दिन याद आते है जब सावन के महीने में वो मुसलाधार बारिस , नदी अपनी चरम सीमा पे और बदलो की गर्जना , थर-थर काप जाता था में ..... थोड़ी देर बाद जब धुप निकलती तो दोस्तों के साथ खेलने चला जाता था ... गुल्ली डंडा । तब हमारा सबसे अछा खेल था.... लेकिन अब कहा ... आज मुझे फिर से अपना बचपन याद आ गया ... माँ मुझे भट (सोयाबीन) भूनकर देती ... मेरी जेब में भर कर देती ... आगे लिखने में असमर्थ हूँ! "अब मेरी आंखे नम हो चुकी है,,,,..... आज फिर से मुझे अपना बचपन और माँ की वो यादें तजा हो गयी".......
हिमांशु बिष्ट
-- Bisht G Contt:- 9999 451 250
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