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जू आज गढ़वाल की संस्कृति ते भूली गेनी ,
अपरी देवभूमि उत्तराखण्ड ते छोड़ी की ये परदेश ऐनी II
नई पीढी का बुये..बाप अपरी औलाद तेलेकी गढ़वाल नी जांदी ,
तबी ता आज य़ू दिन ऐ ग्याई ज्यादातरलूखों ते गढ़वाली नी आंदी II
...ध्यान से सुना और दीपू बात पर अमल कारा II
1 comment:
मैं जन्म से गढ़वाली हूँ और हमेशा रहूँगा.. मैं अपनी गढ़वाली भाषा और संस्कृति को कभी नहीं भूल सकता और अपनी आने वाली पीड़ी को भी गढ़वाल की संस्कृति के बारे मैं अवगत करता रहूँगा.
जय उत्तराखंड!
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