
Wednesday, November 16, 2011
दुनिया से गरीबी केवल बंदूक से नहीं हट सकती

मेरा ऐसा मानना है कि दुनिया से गरीबी केवल बंदूक से नहीं हट सकती। इसलिए मैं फिर जोर देकर कहता हूं कि किसी ऐसी राजनीतिक पार्टी का गठन हो जो अहिंसात्मक रूप से गरीबी हटाने का प्रयास करे।
दुनिया में अगर सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है गरीबी। भारत की 70 फीसदी आबादी अभी भी भरपेट खाना नहीं खा पाती। अमीरी-गरीबी का फासला बढ़ते ही जा रहा है। देश में व्याप्त गरीबी और भुखमरी को राजनीतिक पार्टियां ही खत्म कर सकती हैं। मगर इस समय कोई ऐसी पार्टी नहीं दिखती जो इस समस्या को खत्म करने के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास करे। इसलिए देश में व्याप्त गरीबी, भुखमरी आदि को खत्म करने के लिए एक नई पार्टी का गठन होना चाहिए जिसका मुख्य लक्ष्य गरीबी हटाना हो।
Wednesday, October 12, 2011
**********देश को लूटने के साथ हराम का खाने की आदत**********

**********देश को लूटने के साथ हराम का खाने की आदत**********
क्या कई करोड़ रुपये खर्च कर की गयी यात्रा के बाद फोर्व्स मैगजीन के लिए फोटो सेशन करबाने और वोटो की फसल काटने के लिए दलित के घर जा कर खाने से गरीबो की समस्या ख़तम हो जाएगी ..आजदी के 64 साल बाद भी अगर देश का आम इंसान झोपडी में भुखमरी के हालातो में रह रहा है और उसके नेताओ के स्विस बैंक में खाते है तो असली गुनाहगार कौन है ... मम्मी जी इलाज के लिए अमेरिका जा कर 20 लाख रुपये प्रतिदिन के कमरे में रूकती है और दुनिया का सबसे महंगा इलाज करवाती है और अपनी विदेश यात्राओ की रिपोर्ट लोकसभा सचिबलाया को भी नहीं देती ..पापा जी बहुत साल पहले ही स्विस बैंक में खाता खोल कर कमीशन का पैसा जमा कर गए ...और बेटा बबलू यहाँ की जनता को ठगने का काम कर रहा है ...बबलू को भारत के प्रधानमंत्री के बराबर की सुरक्षा प्राप्त है जिसे SPG के नाम से जाना जाता है SPG के बजट के बारे में देश की जनता को कुछ भी नहीं बताया जाता ........... पिछले दिनों जब संसद में महंगाई पर चर्चा चल रही थी तब बबलू विदेश में अपने दोस्तों के साथ अपना जन्म दिन मना रहे थे ..... बबलू को कोई बार अपनी विदेशी गर्ल फ्रेंड के साथ रंरेलिया मानते हुए विदेशी मीडिया ने दिखाया है |
Tuesday, September 20, 2011
जल्दी नहीं पिघलेंगें हिमालय के ग्लेशियर
जल्दी नहीं पिघलेंगें हिमालय के ग्लेशियर
भारत के डॉ राजेंद्र पचौरी की अगुवाई में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित आईपीसीसी को अब अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. आईपीसीसी की चेतावनी न्यू सांइंटिस्ट नाम की पत्रिका के एक लेख पर आधारित थी जो 1999 में प्रकाशित की गई थी. 2007 में जारी की गई उस रिपोर्ट में आईपीसीसी ने कहा था कि हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक पूरी तरह पिघल जाएंगे.
इस भविष्यवाणी के बाद पानी के अभाव और जलवायु में भारी बदलाव की अटकलों ने एक नया पैमाना ले लिया और अंतरराष्ट्रीय बैठकों का केंद्रीय मुद्दा बन गई.Bildunterschrift: Großansicht des Bildes mit der Bildunterschrift: ग़लत निकला दावा
लापरवाही इस हद की थी कि न्यू साइंटिस्ट की रिपोर्ट दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ सैयद हस्नैन से टेलीफ़ोन पर बातचीत पर आधारित थी. डॉ हस्नैन ने अब भी इस बात को मानते हैं कि यह महज़ एक विचार था और इस पर किसी भी तरह का संशोधन नहीं हुआ था.
सच्चाई सामने आने के बाद ग्लेशियर वैज्ञानिकों ने आईपीपीसी और उसके दावे की निंदा की है और कहा है कि हिमालय के कई ग्लेशियर औसतन 300 मीटर मोटे हैं और कई किलोमीटर लंबे हैं. इन्हें पूरी तरह पिघलने में 60 साल तक लग सकते हैं. डॉ पचौरी ने पहले दूसरे धड़े के वैज्ञानिकों के दावों को 'जादू-टोना विज्ञान' कहते हुए खारिज किया था. फ़िलहाल आईपीसीसी ने इस मामले पर अब तक कोई बयान नहीं दिया है. सोचने वाली बात यह है कि आईपीसीसी का गठन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूनेप के तहत जलवायु परिवर्तन संशोधन में सबसे उम्दा सलाह हासिल करने के लिए किया गया था.
रिपोर्टः एजेंसियां/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः ओ सिंह
क्यों आते है हिमालय में ज्यादा भूकंप
जमीन के भीतर मची उथल पुथल बताती है कि भारत हर साल करीब 47 मिलीमीटर खिसक कर मध्य एशिया की तरफ बढ़ रहा है. करोड़ों साल पहले भारत एशिया में नहीं था. भारत एक बड़े द्वीप की तरह समुद्र में 6,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक तैरता हुआ यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट से टकराया. करीबन साढ़े पांच करोड़ साल से पहले हुई वह टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हिमालय का निर्माण हुआ. हिमालय दुनिया की सबसे कम उम्र की पर्वत श्रृंखला है.
भारतीय प्लेट अब भी एशिया की तरफ ताकतवर ढंग से घुसने की कोशिश कर रही है. वैज्ञानिक अनुमान है कि यह भूगर्भीय बदलाव ही हिमालयी क्षेत्र को भूकंप के प्रति अति संवेदनशील बनाते हैं. दोनों प्लेटें एक दूसरे पर जोर डाल रही है, इसकी वजह से क्षेत्र में अस्थिरता बनी रहती है.Bildunterschrift:
विज्ञान मामलों की पत्रिका 'नेचर जियोसाइंस' के मुतबिक अंदरूनी बदलाव एक खिंचाव की स्थिति पैदा कर रहे हैं. इस खिंचाव की वजह से ही भारतीय प्लेट यूरेशिया की ओर खिंच रही है. आम तौर पर टक्कर के बाद दो प्लेटें स्थिर हो जाती हैं. आश्चर्य इस बात पर है कि आखिर भारतीय प्लेट स्थिर क्यों नहीं हुई.
'अंडरवर्ल्ड कोड' नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए करोड़ों साल पहले हुई उस टक्कर को समझने की कोशिश की जा रही है. सॉफ्टवेयर में आंकड़े भर कर यह देखा जा रहा है कि टक्कर से पहले और उसके बाद स्थिति में कैसे बदलाव हुए. उन बदलावों की भौतिक ताकत कितनी थी. अब तक यह पता चला है कि भारतीय प्लेट की सतह का घनत्व, भीतरी जमीन से ज्यादा है. इसी कारण भारत एशिया की तरफ बढ़ रहा है.Bildunterschrift:
वैज्ञानिक कहते हैं कि घनत्व के अंतर की वजह से ही भारतीय प्लेट अपने आप में धंस रही है. धंसने की वजह से बची खाली जगह में प्लेट आगे बढ़ जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान जमीन के भीतर तनाव पैदा होता है और भूकंप आते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक हर बार तनाव उत्पन्न होने से भूकंप पैदा नहीं होता है. तनाव कई अन्य कारकों के जरिए शांत होता है.
भूकंप के खतरे के लिहाज से भारत को चार भांगों में बांटा गया है। उत्तराखंड, कश्मीर का श्रीनगर वाला इलाका, हिमाचल प्रदेश व बिहार का कुछ हिस्सा, गुजरात का कच्छ और पूर्वोत्तर के छह राज्य अतिसंवेदनशील हैं. इन्हें जोन पांच में रखा गया है. जोन पांच का मतलब है कि इन इलाकों में ताकतवर भूकंप आने की ज्यादा संभावना बनी रहती है. 1934 से अब तक हिमालयी श्रेत्र में पांच बड़े भूकंप आ चुके हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: महेश झा
Thursday, July 14, 2011
नैनादेवी के नाम पर पडा नैनिताल

नैनादेवी के नाम पर पडा नैनिताल। बैरन नामक एक अग्रेज ने इस हील स्टेशन कि खोज कि, वो इतना आकर्षित हुआ कि १८४१ में नैनीताल शहर का निर्माण शुरू हो गया। सबसे पहले बैरन ने अपने लिए एक कोठी बनायी। इसके बाद कुमांऊ के तत्कालीन कमिश्नर लाशिंगटन ने १८४१ में अपने लिए एक कोठी का निर्माण करवाया। नैनीताल तीन ओर पहाड़ों से घिरा है, बीच में झील है। इसका अर्थ है नैनी झील के चारो और शहर बसा है। पुरा नैनिताल वन पहाड़ियों से घिरा हुआ है। १८६७ में शेर का डांडा और १९ सितंबर १८८० को विक्टोरिया होटल के पास भीषण भूस्खलन हुआ। इसमें १५१ लोग मारे गए। मरने वालों में ४३ विदेशी नागरिक भी थे।
रामप्यारी के ब्लोग मे जो क्लु दिया गया है वह हॉकि का मैदान है (नैनिताल)। ठिक उसके पिछे सुन्दर मस्जिद है। इस मैदान मे राम प्यारी के ब्लोग मे LIC OF INDIA का विज्ञापन दिखाई पड रहा है वो अब हटा दिया गया है अब STATE BANK OF INDIA का विज्ञापन ट्न्गा हुआ है। नैनीताल उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ग्रीष्मकालीन राजधानी है। प्रर्यटक साफ सफाई का ध्यान नही देने कि वजह से गन्दगी भी दिख जाती है। आबादी बढने के कारण पहाडियो एवम पेडो कि कटाई ने नैनिताल के रुप को नुकशान पहुचा है। अब वो दिन दुर नही जब इन्ह हिल स्टेशनो मे पखे लग जाऐ। कृपया प्रकृति को बचाओ ताकि हमारी भावी पीढी भी इन्ह खुबसुरत वादियो के नजारे को देख सके।
प्रकृति के साथ हम खिलवाड करेगे तो प्रकृति हमे माफ नही करेगी। हम सभी को इसका खामियाजा भुगतना पडेगा।
"माधो सिंह "काळू" भंडारी"

"माधो सिंह "काळू" भंडारी"
आमू का बागवान मलेथा, लसण प्याज की क्यारी,
कूल बणैक अमर ह्वैगि, वीर माधो सिंह भंडारी.
बुबाजी भड़ सोंणबाण "काळू" भंडारी, ब्वै थै देवी भाग्यवान,
कथ्गा प्यारु तेरु मलेथा, माधो जख केळौं का बगवान.
दगड़्या थौ चम्पु हुड्क्या, देवी जनि उदिना थै कुटमदारी,
नौनु प्यारु गजे सिंह, जू छेंडा मूं कूल का खातिर मारी.
बांजा पुंगड़ौं अन्न निहोन्दु, पेण कु निथौ बल पाणी,
उदिना बोदि माधो जी कू, मेरा मलेथा ल्य्हवा पाणी.
दिनभर निर्पाणि का पुंगड़ौं, करदा छौं हम धाण,
भात खाण की टरकणी छन, मेरी बात लेवा माण.
मलेथा की की तीस बुझौलु, ल्ह्योलु अपणा मलेथा मां पाणी,
निहोंणु ऊदास प्यारी ऊदिना, दूर होलि हमारा गौं की गाणी.
चंद्रभागा गाड बिटि कूल बणायी, कोरी मलेथा मूं छेंडू,
पाणी छेंडा पार नि पौंछि, माधो सिंह चिंता मां नि सेंदु.
भगवती राजराजेश्वरी रात मां, माधो सिंह का सुपिना आई,
कूल कू पाणी पार ह्वै जालु, मन्खि की बलि देण का बाद बताई.
मलेथा की कूल का खातिर, माधो सिंह न करि गजे सिंह कू बलिदान,
गजे सिंह का दुःख मां रोन्दि बिब्लान्दि, ब्वै ऊदिना ह्वैगि बोळ्या का समान.
ऊदिना न तै दिन दुःख मां ख्वैक, दिनि थौ बल मलेथा मां श्राप,
ये वंश मां क्वी भड़ अब पैदा नि ह्वान, जौन गजे सिंह मारि करि पाप.***हिमांशु बिष्ट***
--
Bisht G
ऐतिहासिक पुरुष वीर माधो सिंह भंडारी
ऐतिहासिक पुरुष वीर माधो सिंह भंडारी का नाम गढ़वाल के घर घर में आज भी श्रृद्धा व सम्मान के साथ लिया जाता है. महाराजा महीपति शाह के शासनकाल में प्रधान सेनापति रहते हुए उन्होंने अनेक लड़ाईयां लड़ी व गढ़वाल की सीमा पश्चिम में सतलज तक बढाई. गढ़वाल राज्य की राजधानी तब श्रीनगर (गढ़वाल) थी और श्रीनगर के पश्चिम में लगभग पांच मील दूरी पर अलखनंदा नदी के दायें तट पर भंडारी का पैतृक गाँव मलेथा है. डाक्टर भक्तदर्शन के अनुसार "लगभग सन 1585 में जन्मे भंडारी सन 1635 में मात्र पचास वर्ष की आयु में छोटी चीन (वर्तमान हिमाचल)में वीरगति को प्राप्त हुए." उनके गाँव मलेथा में समतल भूमि प्रचुर थी किन्तु सिंचाई के साधन न होने के कारण मोटा अनाज उगाने के काम आती थी और अधिकांश भूमि बंजर ही पड़ी थी. भूमि के उत्तर में निरर्थक बह रही चंद्रभागा का पानी वे मलेथा लाना चाहते थे किन्तु बीच में एक बड़ी पहाड़ी बाधा थी. उन्होंने लगभग 225फीट लम्बी, तीन फिट ऊंची व तीन फिट चौड़ी सुरंग बनवाई किन्तु पानी नहर में चढ़ा ही नहीं. किवदंती है कि एक रात देवी ने स्वप्न में भंडारी को कहा कि यदि वह नरबली दे तो पानी सुरंग पार कर सकता है. किसी अन्य के प्रस्तुत न होने पर उन्होंने अपने युवा पुत्र गजे सिंह की बलि दी और पानी मलेथा में पहुँच सका. मृत्यु के बाद गजे सिंह की आत्मा का प्रलाप निम्न कविता में अभिव्यक्त है.
क्या राम की भांति
मेरा भी समग्र मूल्यांकन हो पायेगा?
और यदि यह सच है तो पिता मै भी शाप देता हूँ कि
जिस भूमि के लिए मुझे मिटा दिया गया- उस भूमि पर
अन्न खूब उगे, फसलें लहलहाए किन्तु रसहीन, स्वाद हीन !
और पिता तुम, तुम्हारी शौर्यगाथाओं के साथ-
पुत्रहन्ता का यह कलंक तुम्हारे सिर, तुम्हारी छवि धूमिल करे !
किन्तु मै तो मेमना ही साबित हुआ.
लोकगीतों के पंखों पर बिठा दिया
तुम्हे जनपद के लोगों ने,
तुम्हे जनपद के लोगों ने,
इतिहास में अंकित हो गयी तुम्हारी शौर्यगाथा.
और मै मात्र- एक निरीह पशु सा,
एक आज्ञाकारी पुत्र मात्र- त्रेता के राम सा.
छोड़ा जिसने राजसी ठाठबाट,
समस्त वैभव और सभी सुख.
समस्त वैभव और सभी सुख.
और मैंने,
आहुति दे डाली जीवन की तुम्हारी इच्छा पर.
आहुति दे डाली जीवन की तुम्हारी इच्छा पर.
![]() |
मलेथा में माधो सिंह भंडारी स्मारक छाया: साभार गूगल |
मेरा भी समग्र मूल्यांकन हो पायेगा?
ऐसी भी क्या विवशता थी पिता,
ऐसी भी क्या शीघ्रता थी
ऐसी भी क्या शीघ्रता थी
मै राणीहाट से लौटा भी नहीं था कि
तुमने कर दिया मेरे जीवन का निर्णय.
सोचा नहीं तुमने कैसे सह पायेगी
यह मर्मान्तक पीड़ा, यह दुःख
यह मर्मान्तक पीड़ा, यह दुःख
मेरी जननी, सद्ध्य ब्याहता पत्नी
और दुलारी बहना.
और दुलारी बहना.
क्या कांपी नहीं होगी तुम्हारी रूह,
काँपे नहीं तुम्हारे हाथ
काँपे नहीं तुम्हारे हाथ
मेरी गरदन पर धारदार हथियार से वार करते हुए,
ओ पिता,
मै तो एक आज्ञाकारी पुत्र का धर्म निभा रहा था
मै तो एक आज्ञाकारी पुत्र का धर्म निभा रहा था
किन्तु तुम, क्या वास्तव में मलेथा का विकास चाहते थे
या तुम्हे चाह थी मात्र जनपद के नायक बनने की ?और यदि यह सच है तो पिता मै भी शाप देता हूँ कि
जिस भूमि के लिए मुझे मिटा दिया गया- उस भूमि पर
अन्न खूब उगे, फसलें लहलहाए किन्तु रसहीन, स्वाद हीन !
और पिता तुम, तुम्हारी शौर्यगाथाओं के साथ-
पुत्रहन्ता का यह कलंक तुम्हारे सिर, तुम्हारी छवि धूमिल करे !
Tuesday, March 15, 2011
बुरा ना मानो होली है

Thursday, March 10, 2011
उत्तरांचल के अंदर एक उत्तराखंड हमेशा जिन्दा था

भारतीय जनता पार्टी ने संसद में बहस के दौरान सरकार के इस कदम का यह कहकर विरोध किया कि इससे चुनावी राजनीति की बू आ रही है, क्योंकि उत्तरांचल में चुनाव निकट हैं। पार्टी ने यह भी कहा कि नाम बदलने से सरकारी मशीनरी को चार से पांच सौ करोड़ रुपये का फालतू बोझ वहन करना पड़ेगा। विरोध की ये दलीलें एक हद तक तो तर्कसंगत कही जा सकती हैं, पर ये पार्टी के पुराने निर्णय की अप्रासंगिकता से ध्यान बंटाने की कवायद ही है, क्योंकि तब उत्तरांचल नाम गढ़कर बीजेपी ने अलग राज्य के लिए आंदोलन चलाने वाली राजनीतिक ताकतों के हाथ से कमान और श्रेय छीनने की कोशिश की थी।
चुनावी राजनीति के बहाने से ही सही, परंतु आज यदि केंद्र सरकार की पहल पर संसद ने राज्य को उसका मूल नाम लौटाया है, तो कहना चाहिए कि यह तरक्की और प्रगति के लिए छेडे़ गए संघर्षों के भीतर की संवेदना को मान्यता देने की एक सार्थक कोशिश है। हालांकि ऐसा नहीं है कि उत्तरांचल नाम के रहते सब कुछ ठीक नहीं था और मूल नाम कोई जादू की छड़ी साबित होने जा रहा है। देखा जाए तो नए राज्य के रूप में उत्तरांचल की गिनती देश के बेहतर राज्यों में होने लगी है। आज राज्य यह दावा करने की स्थिति में है कि उसकी विकास दर 16.97 प्रतिशत का आंकड़ा छू रही है। करीब 10,000 करोड़ का निजी निवेश राज्य की बेहतर सेहत का संकेत है। राज्य निर्माण से पहले, यानी 1993-2000 में औद्योगिक विकास की जो दर यहां 1.9 फीसदी थी, वह आज 18.18 तक उछाल मार चुकी है। देश के बड़े-बड़े उद्योग यहां अपनी यूनिटें लगा रहे हैं। राज्य के ढांचागत विकास के असर कुछ बरसों में नजर आने लगेंगे। अलबत्ता सरकार पर फिजूलखर्ची, भ्रष्टाचार और बेलगाम नौकरशाही के अलावा ये भी आरोप लगते रहे हैं कि योजनाओं के लाभ सुदूर पर्वतीय इलाकों तक नहीं पहुंचे हैं और विकास की बयार का आनंद कुछ चुनिंदा क्षेत्रों और लोगों के बीच बह रही है।
कहा जा सकता है कि नाम में क्या धरा है, असल बात तो काम की है। लेकिन जनता की संवेदनाओं और भावनाओं की भी अहमियत होती है। इसीलिए मुम्बई, चेन्नै और बंगलुरु को उनके मूल नाम वापस लौटाए गए। फिर यह भी पूछा जाना चाहिए कि छत्तीसगढ़ और झारखंड के मामले में आंचलिकता के जो आग्रह स्वीकार किए गए, उत्तराखंड में उन्हें परे क्यों फेंक दिया गया। कहीं यही वजह तो नहीं कि लंबे संघर्ष और कुर्बानी के बाद हासिल अलग राज्य के प्रति जो जज्बाती सोच मुनस्यारी और धारचूला से लेकर माणा और हरसिल तक झलकनी चाहिए थी, वह नदारद है?
दरअसल हमारे पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि जन आकांक्षाओं के खिलाफ उत्तरांचल नाम देकर बीजेपी इस नए राज्य के इतिहास पर हमेशा के लिए अपनी धाक के चिह्न छोड़ देना चाहती थी। भले ही तर्क यह दिया गया कि 1960 में उत्तराखंड मंडल नाम सिर्फ तीन जिलों चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ के लिए दिया गया था, जो कि चीन से लगी सीमा पर सैनिक हलचल के कारण बनाए गए थे। बाकी के जिले अंग्रेजों के शासनकाल से चली आ रही कुमायूं कमिश्नरी के तहत ही रखे गए। यह स्थिति 1969 तक रही और तब गढ़वाल मंडल और कुमायूं मंडल अपने पृथक स्वरूप में अस्तित्व में आए। यूपी विधानसभा में पारित भूमि प्रबंधन और बंदोबस्त विधेयक, कुमायूं एवं उत्तराखंड जमींदारी अंत अधिनियम-1960 और उत्तराखंड एवं कुमायूं भू-राजस्व बंदोबस्त नियमावली-1960 इस बात के उदाहरण हैं कि उत्तराखंड शब्द मुख्य रूप से गढ़वाल मंडल के लिए ध्वनित होता रहा है। इस तरह उत्तराखंड के उत्तरा और कुमायूं यानी कूर्मांचल से अंचल शब्द को शामिल करते हुए उत्तरांचल का निर्माण किया गया। बीजेपी के नेता इस दावे को भी गलत मानते हैं कि उत्तराखंड पौराणिक शब्द है। स्कंद पुराण में गढ़वाल क्षेत्र को केदारखंड और कुमायूं को मानस खंड कहा गया है। तार्किक आधार पर देखें तो उत्तरांचल नाम की ईजाद के पीछे बीजेपी की यह सिद्धांत गलत भी नहीं लगता, लेकिन लोगों में नाराजगी इस बात को लेकर रही कि गहरी छानबीन से आंचलिकता की यह थ्योरी पेश कर बीजेपी ने उत्तरांचल तो ढूंढ निकाला, पर राजधानी और पहले मुख्यमंत्री के सवाल पर आंचलिकता का यह आग्रह इकतरफा फैसलों का शिकार कैसे हो गया?
उत्तरांचल नाम बीजेपी ने 1980 के दशक के उत्तरार्ध में दिया। इसके पीछे उत्तराखंड के मुद्दे पर आंदोलन चला रहे दलों, खासकर उत्तराखंड क्रांति दल के समानांतर अपना आंदोलन चलाना था। 1994 के आते-आते पार्टी ने इस दिशा में काफी सफलता भी हासिल कर ली और वह नए राज्य का नाम उत्तरांचल रखने में सफल भी हुई, पर इसे आम लोगों के बीच स्वीकार्य बनाने में उसे सफलता नहीं मिल पाई। इसके संकेत 9 नवंबर 2000 की रात देहरादून में देश के इस 27वें राज्य के स्थापना समारोह में सरकार विरोधी नारों के रूप में साफ देखे जा सकते थे। छह वर्षों का मौजूदा अंतराल छोड़ दें तो अविभाजित यूपी के जमाने से चले आ रहे शासकीय दस्तावेजों में इस पर्वतीय भूभाग के लिए उत्तराखंड शब्द का ही उपयोग होता रहा है।
यूपी के पहाड़ी इलाकों में नए राज्य की मांग उठी ही इसलिए थी कि यहां की खास स्थितियां अलग प्रशासनिक इकाई की मांग करती थीं। यानी क्षेत्रीय विकास, आत्मनिर्भरता और बराबरी के आग्रह इस राज्य की रचना के मूल में हैं और 'उत्तराखंड' शब्द उसका प्रतीक है। यह नाम सिर्फ अपनी बुनियाद से ही नहीं जोड़ता, भविष्य के लिए जागरूक भी बनाता है। हालांकि विकास की समस्याओं का हल सिर्फ नाम बदलने से नहीं हो जाता, लेकिन राज्य के प्रति आस्था और वजूद से जुड़े संघर्ष की यह एक बड़ी जीत तो है ही।
Wednesday, March 2, 2011
कुछ गड्वाली सबद और उनके अर्थ
कुछ गड्वाली सबद और उनके अर्थ
१. अल्डो/अल्डु = ठन्डा
२. अचाण्चक/ चाण्चक= अचानक
३. अछ्लेगी= अस्त हो गया
४-अछ्लेणु= अस्त होना
५.अजाक=नासमझ
६. अन्ग्ल्यार- बर्र या ततैया
७. अठ्वाड- बलि देने के लिए आयोजित उत्सव
८- अन्ग्योणु- अपनाना
९- अलोणु-बिना नमक का
१०- अभरोसु- अविश्वास
११- अन्ग्वाल- अन्कमाल/ आलिग्न
१२- अलसिगे- मुर्झा गया/गइ
१३- आछरी- अप्सरा
१४- अल्याचार- लाचार
१५- अफु/अफ्वी- अपने आप
१६- अन्वार/अन्द्वार- सूरत
१७-अबेर- असमय/ देर
1८- अजाण- अनजाना
१९-अप्छाण्यु- अपरिचित
२०- असक्दी- असक्त/ गर्भ्वती स्त्री
२१-अखोड- अखरोट
२२-अडेथणू- किसी व्यक्ति / स्त्री को गन्त्व्य तक पहुचाने के लिए साथ जाना
२३- अडेथदारो- साथ जाने वाला
२४- अधखेचरू - अधकचरा/ अपरिपक्व
२५- अगेती- पहले/ फसल विशेस मे जो पहले पके- जैसे अगेते साटी/ अगेती कौणी
२६- अडी/ अड- जिद्द या अड्ना२
७- अन्तौ- अधैर्य
२८- अधीर्ज- अधीर
२९- अण्ब्य्वायी - अविवाहित
३०- अण्ब्यो- बिना विवाह किये
३१- अचैन्दु- जो चाहा न गया हो/ आइछित्त
३२- अफखौ- जो सिर्फ अपने खाने की इछ्छा रख्ता हो
३३- अलबला सलबल- आनन फानन मे
३४-अन्दयारू- अन्धेरा
३५- अन्ताज- अन्दाज
३६- अक्ड्नु- समाना या एड्ज्स्ट होना
३७- औ बटौ- राह चल्ती/ कुलहीन
३८-अयेडी- जिद
३९-अडाट- भैस आदि का रम्भाना
४०- अडाट- भिडाट= चीख पुकार
१. अल्डो/अल्डु = ठन्डा
२. अचाण्चक/ चाण्चक= अचानक
३. अछ्लेगी= अस्त हो गया
४-अछ्लेणु= अस्त होना
५.अजाक=नासमझ
६. अन्ग्ल्यार- बर्र या ततैया
७. अठ्वाड- बलि देने के लिए आयोजित उत्सव
८- अन्ग्योणु- अपनाना
९- अलोणु-बिना नमक का
१०- अभरोसु- अविश्वास
११- अन्ग्वाल- अन्कमाल/ आलिग्न
१२- अलसिगे- मुर्झा गया/गइ
१३- आछरी- अप्सरा
१४- अल्याचार- लाचार
१५- अफु/अफ्वी- अपने आप
१६- अन्वार/अन्द्वार- सूरत
१७-अबेर- असमय/ देर
1८- अजाण- अनजाना
१९-अप्छाण्यु- अपरिचित
२०- असक्दी- असक्त/ गर्भ्वती स्त्री
२१-अखोड- अखरोट
२२-अडेथणू- किसी व्यक्ति / स्त्री को गन्त्व्य तक पहुचाने के लिए साथ जाना
२३- अडेथदारो- साथ जाने वाला
२४- अधखेचरू - अधकचरा/ अपरिपक्व
२५- अगेती- पहले/ फसल विशेस मे जो पहले पके- जैसे अगेते साटी/ अगेती कौणी
२६- अडी/ अड- जिद्द या अड्ना२
७- अन्तौ- अधैर्य
२८- अधीर्ज- अधीर
२९- अण्ब्य्वायी - अविवाहित
३०- अण्ब्यो- बिना विवाह किये
३१- अचैन्दु- जो चाहा न गया हो/ आइछित्त
३२- अफखौ- जो सिर्फ अपने खाने की इछ्छा रख्ता हो
३३- अलबला सलबल- आनन फानन मे
३४-अन्दयारू- अन्धेरा
३५- अन्ताज- अन्दाज
३६- अक्ड्नु- समाना या एड्ज्स्ट होना
३७- औ बटौ- राह चल्ती/ कुलहीन
३८-अयेडी- जिद
३९-अडाट- भैस आदि का रम्भाना
४०- अडाट- भिडाट= चीख पुकार
Tuesday, March 1, 2011
उत्तराखंडी सिनेमा को नहीं मिल पाई रफ्तार


फिर मुड़कर नहीं देखा उत्तराखंड

संघर्ष स्वभाव है पर्वतीय नारी का


चिपको आंदोलन की नेत्रीअपने ही गांव में बेगानी हुई गौरा गौरा देवी

"हिमांशु बिष्ट"
अस्तित्व को छटपटातीं उत्तराखंड की बोलियां

भीम पांव : जहां मंदाकिनी ने ली थी पांडवों की परीक्षा
"Himanshu Bisht"
Monday, February 28, 2011
राज्य गठन के दस साल बाद भी ऐसी शर्मनाक है जिसको देख कर गहरा दुख होता है

15 से 21 जुलाई 2010 वाले प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्रा में प्रकाशित
भगवान राम को तो केवल 14 साल का वनवास भोगना पड़ा था। परन्तु उत्तराखण्ड के 60 लाख सपूतों को यहां के सत्तासीन कैकईयों के कारण पीढ़ी दर पीढ़...ी का वनवास झेलना पड़ रहा है। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान से यहां के लोग अपने घर परिजनों के खुशह...ाली के लिए दूर प्रदेश में रोजगार की तलाश में निकले। देश आजाद हुआ परन्तु शासकों ने यहां के विकास पर ध्यान न देने के कारण यहां से लोगों का पलायन रोजी रोटी व अच्छे जीवन की तलाश के कारण होता रहा। इसी विकास के लिए लोगों ने ऐतिहासिक संघर्ष करके व अनैकों शहादतें दे कर पृथक राज्य भी बनवाया। परन्तु यहां के शासकों की मानसिकता पर रत्ती भर का अंतर नहीं आया। उत्तराखण्ड का जी भर कर दौहन करना यहां के नौकरशाही व राजनेताओं ने अपना प्रथम अध्किार समझा। मेरा मानना रहा है कि पलायन प्रतिभा का हो कोई बात नहीं, परन्तु पेट का पलायन बहुत शर्मनाक है। पेट के पलायन को रोकने के लिए ही पृथक राज्य का गठन किया गया था। प्रदेश का समग्र विकास हो व प्रदेश का स्वाभिमान जीवंत रहे। परन्तु स्थिति आज राज्य गठन के दस साल बाद भी ऐसी शर्मनाक है जिसको देख कर गहरा दुख होता है। मेरे इन जख्मों को गत सप्ताह धेनी की शादी प्रकण ने पिफर हवा दी।
Sabhar uttarkahand vichar..
Thursday, February 24, 2011
स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-
स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-
खण्डाः पञ्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥
अर्थात हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ) , केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश), और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है।<७>
एक शिलाशिल्प जिसमें महाराज भगीरथ को अपने ६०,००० पूर्वजों की मुक्ति के लिए पश्चाताप करते दिखाया गया है।
पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे। अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग, खश आदि जातियाँ भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है।
मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन १७९० तक रहा। सन १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने आधीन कर लिया। गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन १७९० से १८१५ तक शासन रहा। सन १८१५ में अंग्रेंजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापस चली गई किन्तु अंग्रेजों ने कुमाऊँ का शासन चन्द राजाओं को न देकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन कर दिया। इस प्रकार कुमाऊँ पर अंग्रेजो का शासन १८१५ से आरम्भ हुआ।
संयुक्त प्रांत का भाग उत्तराखण्ड,
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढ़ों (किले) में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग-अलग राजा थे जिनका अपना-अपना आधिपत्य क्षेत्र था। इतिहासकारों के अनुसार पँवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीनकर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढ़वाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया। यह आक्रमण लोकजन में गोरखाली के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजो से सहायता मांगी। अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया। किन्तु गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रेजों ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य राजा गढ़वाल को न सौंप कर अलकनन्दा-मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसंबर १८१५ को<८> टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर छोटा सा गाँव था, अपनी राजधानी स्थापित की।<९> कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्रनगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की। सन १८१५ से देहरादून व पौड़ी गढ़वाल (वर्तमान चमोली जिला और रुद्रप्रयाग जिले का अगस्त्यमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजो के अधीन व टिहरी गढ़वाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।<१०><११><१२>
भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (उ.प्र.) का एक जिला घोषित किया गया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठ भूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया। एक नए राज्य के रुप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०००) उत्तराखण्ड की स्थापना ९ नवंबर २००० को हुई। इसलिए इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सन १९६९ तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ मण्डल के अधीन थे। सन १९६९ में गढ़वाल मण्डल की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। सन १९७५ में देहरादून जिले को जो मेरठ प्रमण्डल में सम्मिलित था, गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया। इससे गढवाल मण्डल में जिलों की संख्या पाँच हो गई। कुमाऊँ मण्डल में नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, तीन जिले सम्मिलित थे। सन १९९४ में उधमसिंह नगर और सन १९९७ में रुद्रप्रयाग , चम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डलों में छः-छः जिले सम्मिलित थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने के पश्चात गढ़वाल मण्डल में सात और कुमाऊँ मण्डल में छः जिले सम्मिलित हैं। १ जनवरी २००७ से राज्य का नाम "उत्तराञ्चल" से बदलकर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया है।
य़ू मेसेज खास वूं लूखों कुन चा II" जू आज गढ़वाल की संस्कृति ते भूली गेनी ,
कबूतरी देवी जी को भी यंग उत्तराखण्ड अवार्ड २०११ समारोह मैं विसेस सम्मान.......
सुर सम्राट नरेंदर सिंह नेगी को यंग उत्तराखण्ड अवार्ड 2011 समारोह मैं बेस्ट सिंगर(गाने) और बेस्ट म्यूजिक का अवार्ड.....
जाग जाग जाग ज्वान वक्त सेण को नि छ ज्वानी को उमाल फिर दुबारा औण को नि छ

भोत कुछ ह्वैगी भुला कैन बोली कुछ नि ह्वै सभी देखण लग्यां पैली क्या थो, अब क्या ह्वै घी दूध न मुख लुकैली

सभी देखण लग्यां पैली क्या थो, अब क्या ह्वै
घी दूध न मुख लुकैली
सब डालडा खाना
पैली काखी नि जांदा था
अब भैर बी खाना
दयाधर्म कम और भ्रष्टाचार सीवे, कैन बोली कुछ नि ह्वै
पाणी सुखिगे पर
नल बिछांया
गिलास काखी नि रै
अब प्याला लांया
भीतर फुंड कुछ नि पर
भैर खूब सज्याँन
पैली गों मा कम था
अब ज्यादा रज्याँ
मम्मी डैडी लैगी बोलन, क्वी नि बोल्दु बई, कैन बोली कुछ नि ह्वै
पैली मनखी का खातिर
मनखी था मरणा
अब मनखी देखि
मनखी डरना
अस्पताल खुलीगे
धडाधड गोली खाना
क्वी बचण लग्याँ
क्वी मरी जाणा
कखी नि रै अब बैदु की दवई, कैन बोली कुछ नि ह्वै
गों वाला लाख्डा पाणिक रोणा
विकास का नौ पर उद्घाटन होणा
पर छोरा सरा-सर भैर भागणा
कखी सुखी धार मा बिजली कु उजालू जग्णु
पर निस बीटी माटु सफा बग्णु
डाला फंडा कटे दिनी
अब डाला लाणा
पैली कट दारों न खाई
अब लगान वाला खाना
पर नयां डाला कखी नि दिखेना, कुजाणी क्या ह्वै, कैन बोली कुछ नि ह्वै .
Subscribe to:
Posts (Atom)